ब्यूरो डेस्क के साथ सुकमा से रफीक खान की रिपोर्ट
सुकमा / छत्तीसगढ़ में भले ही स्वास्थ्य विभाग सुविधाओं में इजाफे का दावा कर रहा हो | लेकिन जमीनी हकीकत उसके तमाम दावों को झुठला रही है | यकीन नहीं आता तो सुकमा में पहुंचकर स्वास्थ्य विभाग के तमाम दावे की पड़ताल आसानी से की जा सकती है | न्यूज टुडे छत्तीसगढ़ ने जब यहां की स्वास्थ्य सेवाओं की सुध ली तो कई चौकाने वाली जानकारियां सामने आई | इनमे से पहली हकीकत जानकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी | स्वास्थ्य विभाग के सिर्फ अधिकारी ही नहीं , मंत्री टीएस सिंहदेव से भी उम्मीद है कि कम से कम नक्सल प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की समुचित बहाली और और उसके विस्तार के लिए गंभीरता पूर्वक ठोस कदम उठाये जाए | वरना इस इलाके की एक बड़ी आबादी बेमौत काल के गाल में समा जाएगी | हालांकि स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना कार्यप्रणाली के चलते आज भी यहां हालात बत से बत्तर है | आप यह देखकर हैरत में पड़ जायेंगे कि यहां आज भी मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए परिजनों को कावड़ यात्रा करनी पड़ती है | कावड़ में मरीजों को बैठाकर उनके परिजन कई किलोमीटर तक का सफर तय कर अस्पताल पहुंचते है | अस्पताल पहुंचते पहुंचते कभी मरीज का तो कभी कावड़ ढोने वाला का दम निकल जाता है | मरीज को यदि समुचित स्वास्थ्य सेवाएं मिल जाए तो उसे भाग्यशाली माना जाता है | वरना बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के चलते उसका स्वर्ग सिधारना तय माना जाता है |
जरा गौर से देखिये इस वीडियो को | यह वीडियों नक्सल प्रभावित सुकमा जिले का है | यहां आज भी ना तो सरकारी एम्बुलेंस दौड़ती है , और ना ही संजीवनी 108 जैसी कोई सुविधाएं आदिवासियों को मुहैया हो रही है | जिले के छिंदगढ़ ब्लाक के तोंगपाल में एक मरीज को उसके परिवार वाले कावड़ में बैठा कर सरकारी अस्पताल तक ले जा रहे है | इस तरह से वो करीब 10 किलों मीटर का सफर तय कर अस्पताल तक की कावड़ यात्रा पूरी करते है | इस मरीज को उसके नाती और बहू ने कावड़ में लाद कर तोंगपाल स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का रुख किया | बताया जाता है कि यहां इस मरीज को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हो सकी | उसे अस्पताल में मौजूद पैरामेडिकल स्टाफ ने प्रयाप्त सुविधा न होने का हवाला देकर जगदलपुर के सरकारी अस्पताल में रिफर कर दिया | हालांकि खराब माली हालत होने और एम्बुलेंस सुविधा नहीं मुहैया होने के चलते उसके परिजन मरीज को वापस कावड़ में लाद कर अपने गांव लौट आये | ये नजारा सिर्फ छिंदगढ़ ब्लाक के तोंगपाल का ही नहीं है | सुकमा जिले के कई ऐसे गांव है जहाँ आज भी सरकारी योजनाएं नही पहुँच पाई है | कई गांव में मरीजो को इस तरह कावड़ में या चार पाई में लाद कर अस्पताल तक लाने-ले जाने को इस क्षेत्र के आदिवासी मजबूर है |
सबसे खराब हालत उन गांवों की है , जो जंगलों के भीतर पहाड़ियों में बसे है | बताया जाता है कि नक्सल प्रभावित इलाका होने के कारण ना तो स्वास्थ्य कर्मी अस्पतालों में दस्तक देते है और ना ही एम्बुलेंस सेवाएं उन गांव का रुख करती है | तोंगपाल के कुछ युवा राजेन्द्र खांडे ,दिलीप मेश्राम और विनोद भदौरिया के मुताबिक आज भी इन ईलाको में नक्सलयो की तूती बोलती है | वो बताते है कि मारजुम से लगभग 6 किमी पहाड़ियों से होकर लिटीरास आना पड़ता है लिटीरास से सड़क मार्ग से 4 किमी तोंगपाल स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के लिए आना पड़ता है । यहां कभी कभार ही डॉक्टर मिल पाते है , वरना इलाज के लिए सुकमा जिला मुख्यालय जाना होता है , जो मरीजों के लिए टेढ़ी खीर है | फ़िलहाल छत्तीसगढ़ सरकार को सुकमा के इन गांव की सुध लेनी होगी |
