दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज उत्तराखंड में जोशीमठ के घरों में दरार पड़ने के मामले को लेकर दायर याचिका पर तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों के लिए कोर्ट में आने की जरूरत नहीं है, इस पर लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित संस्थाएं पहले से काम कर रही हैं। मामले की 16 जनवरी को अगली सुनवाई होगी।
यह याचिका स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की ओर से दायर की गई थी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने बीते दिन 9 जनवरी को इस याचिका को मेंशन करने के लिए कहा था। कोर्ट में वकील परमेश्वर नाथ मिश्रा ने जल्द से जल्द में मामले में सुनवाई की मांग की।
इस याचिका में कहा गया है कि जोशीमठ में खनन, बड़ी-बड़ी परियोजनाओं का निर्माण और उसके लिए किए जा रहे ब्लास्ट के चलते ही शहर में लंबे समय से भू-धंसाव हो रहा है। लेकिन इसे नजरअंदाज किया जाता रहा है। याचिका में भूस्खलन, जमीन धंसने, जमीन फटने और भूमि और संपत्तियों में दरार की वर्तमान घटनाओं को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को निर्देश देने की मांग की गई थी।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद याचिका में उत्तराखंड के उन लोगों को तत्काल वित्तीय सहायता और मुआवजा प्रदान करने की मांग की गई है, जिन्हे जानमाल का नुकसान हुआ है, और अपने घर खो दिए हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य में केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से औद्योगीकरण, शहरीकरण और प्राकृतिक संसाधनों के विनाश के रूप में बड़े पैमाने पर मानव हस्तक्षेप के कारण आज यह दिन देखना पड़ रहा है।
उधर मुख्यमंत्री धामी ने प्रभावित इलाको और राहत कार्यो का जायजा लिया है। उन्होंने प्रभावितो को अधिक से अधिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए आश्वस्त किया है। जोशीमठ में नौ वार्ड के 678 मकान ऐसे हैं जिनमें बड़ी – बड़ी दरारें हैं। सुरक्षा की नजर से दो बड़े होटल को आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत बंद किया गया हैं। कई खतरनाक इमारते ढहाई जा रही है। कई लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है। हालांकि लोग अपने दशकों पुराने घर छोड़ने के लिए मजबूर और दुखी हो रहे हैं।