छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में सरकारी जमीन की बंदरबाट पर पशोपेस में सरकार, समय पर जवाब पेश करने के बजाये सरकारी वकीलों ने अतिरिक्त समय की मांग कर हैरान किया, सरकार की हुई किरकिरी, आखिरकार अदालत ने दिया दो हफ्ते का समय, फ्री होल्ड जमीन की बिक्री के तौर तरीकों पर अदालत की निगाहे, जवाब देना हुआ मुश्किल

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बिलासपुर / छत्तीसगढ़ में सरकारी जमीन की बंदरबाट को लेकर सरकार पशोपेस में है | उसने शासकीय भूमि के आवंटन फ्री होल्ड जमीन को बेचने का फैसला तो ले लिया | लेकिन क़ानूनी प्रक्रिया और ठोस आधार को लेकर कोई तैयारी नहीं की | नतीजतन हाईकोर्ट में छत्तीसगढ़ सरकार की जमकर किरकिरी हुई | सरकार की ओर से अदालत में जवाब पेश करने का जब वक़्त आया तो उसने अपने हाथ उठा लिए | बिलासपुर हाईकोर्ट से सरकारी जमीन बंदरबाट को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर बुधवार को चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन व जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई थी। इस दौरान राज्य शासन को जवाब पेश करना था।

अदालत और याचिकाकर्ता शासन के जवाब का इंतज़ार करते रहे | इसी बीच महाधिवक्ता कार्यालय के लॉ अफसर उपस्थित हुए | उन्होंने शासन के जवाब के लिए मोहलत मांगी। इसे देखकर अदालत में मौजूद लोग हैरत में पड़ गए | हालाँकि लॉ अफसर के अनुरोध को स्वीकार करते हुए डिवीजन बेंच ने जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय निर्धारित किया है। दरअसल याचिकाकर्ता सुशांत शुक्ला ने अपने वकील रोहित शर्मा के जरिए हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर छत्तीसगढ़ शासन के सरकारी जमीन की बिक्री के फैसले को चुनौती दी है। याचिका में इस पूरी प्रक्रिया को विवादित बताया है।

सरकार पर आरोप है कि वो फ्री होल्ड जमीन आवंटन के नाम पर अपने चहेतो, भू-माफियाओं को संरक्षण देने और प्रभावशील लोगों को सरकारी जमीन सौंपने के लिए इस तरह की बंदरबाट वाली योजना संचालित करना चाहती है | इससे समाज में जहाँ भू- माफियाओं का दबाव बढ़ेगा वहीँ जनहित के कार्यों के लिए सरकारी जमीन उपलब्ध नहीं होगी | दरअसल राज्य सरकार द्वारा 7500 वर्ग फीट शासकीय भूमि का आवंटन आवेदकों को किया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत राज्य सरकार ने भूमि आवंटन का अधिकार जिले के कलेक्टरों को दिया गया है। याचिका के अनुसार राज्य शासन केवल आवेदन देने पर ही सीधे तौर पर भूमि आवंटित कर रही है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि शासन ने इस योजना की शुरुआत सुनियोजित ढंग से भू माफियाओं और उच्च आय वर्ग को लाभ देने के लिए शुरू की है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि राज्य शासन की इस योजना का लाभ केवल उच्च आय वर्ग के लोगों को मिलेगा। वहीं दूसरी ओर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग इस योजना से वंचित रह जाएगा। छत्तीसगढ़ शासन की इस योजना को पूरी तरह असंवैधानिक करार देते हुए इस पर रोक की मांग अदालत से की गई है। बिलासपुर हाईकोर्ट में इस जनहित याचिका की सुनवाई पर लोगों की निगाहे लगी हुई थी | लेकिन जैसे ही सरकारी वकील ने जवाब देने के बजाये समय की मांग की वैसे ही लोगों को लग गया कि अफसरों ने आनन फानन में इस योजना को लागू कर दिया |

योजना से जिन्हे भी फायदा पहुंचता लेकिन इस योजना ने सरकार की साख दांव पर लगा दी है | लोगों को आभास होने लगा है कि सत्ता में बैठा वर्ग सरकार की जमीनों के संरक्षण के बजाये उसे ठिकाने लगाने में जुट गया है | हालाँकि याचिका में इस तथ्य को भी इंगित किया गया है कि बेशकीमती शासकीय भूमि की बंदरबाट से आने वाले दिनों में स्थिति बिगड़ेगी। यही नहीं विकास के कार्यों के लिए तब जमीन ही नहीं बचेगी।

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