
नागपुर: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में किसी भी प्रकार की अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव नहीं होता। उन्होंने इस संबंध में फैली भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता पर जोर दिया। साथ ही, उन्होंने अफसोस जताया कि अच्छे लोग राजनीति में आगे नहीं आ रहे हैं और युवाओं से राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेने की अपील की।
विजयादशमी समारोह में मुख्य अतिथि
कोविंद गुरुवार को नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में आयोजित विजयादशमी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस वर्ष संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने का जश्न भी समारोह का हिस्सा था।
अटल बिहारी वाजपेयी का उदाहरण
पूर्व राष्ट्रपति ने 2001 में लाल किला परिसर में आयोजित ‘दलित संगम रैली’ का जिक्र करते हुए बताया कि उस समय अटल बिहारी वाजपेयी ने साफ कहा था कि उनकी सरकार मनुस्मृति नहीं बल्कि संविधान यानी भीम स्मृति पर चलेगी। उन्होंने कहा कि संघ और इसकी विचारधारा के प्रति जो दुष्प्रचार हुआ, उसे दूर करने में अटल जी का यह संबोधन ऐतिहासिक साबित हुआ।
संघ का सामाजिक समावेशी दृष्टिकोण
कोविंद ने संघ के सामाजिक समावेशी दृष्टिकोण पर जोर देते हुए बताया कि संघ में प्रतिदिन गाए जाने वाले एकात्मता स्तोत्र में महर्षि वाल्मीकि, एकलव्य, रविदास, कबीर, तुकाराम, बिरसा मुंडा, नारायण गुरु और डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसी विभूतियों का उल्लेख किया जाता है। यह संघ की समावेशी समाज-दृष्टि का प्रमाण है।
गांधी और आंबेडकर के संघ के प्रति विचार
उन्होंने महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव आंबेडकर के संघ के प्रति दृष्टिकोण का भी उल्लेख किया। गांधीजी 1947 में संघ की रैली में अनुशासन और छुआछूत उन्मूलन से प्रभावित हुए थे। वहीं, डॉ. आंबेडकर ने 1940 में संघ की शाखा का अनुभव साझा किया और संघ के प्रति अपनेपन की भावना व्यक्त की।
“सौ वर्षों में और मजबूत हुआ संघ”
कोविंद ने कहा कि विश्व पटल पर कई संस्थान समय के साथ विलुप्त हो गए, लेकिन राष्ट्र प्रेम और भारतीय आदर्शों से पोषित संघ सौ वर्षों में और मजबूत हुआ है। उन्होंने याद दिलाया कि स्वतंत्रता के बाद 1948, 1975 और 1992 में संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाए गए, लेकिन हर बार यह और ज्यादा सशक्त रूप में सामने आया।