पूर्व डीजीपी कुलदीप शर्मा को तीन महीने की जेल, 1000 जुर्माना, एसपी रहते कानून के दुरुपयोग के प्रकरण में अदालत का फैसला…

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अहमदाबाद: आईपीएस अधिकारी कानून से बंधे हुए है। उन पर प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारु रूप से बनाए रखने की संवैधानिक जवाबदारी है। लेकिन उनके द्वारा पद के दुरुपयोग के मामले अक्सर सुर्ख़ियों में रहते है। हालांकि ऐसे प्रकरण सामने आने पर सरकार और अदालत दोनों ही गंभीर है।एक ऐसे ही प्रकरण में गुजरात के भुज की अदालत ने राज्य के पूर्व डीजीपी कुलदीप शर्मा को तीन माह जेल की सजा सुनाई है। उन्हें 41 साल पहले कच्छ के एसपी रहते कांग्रेस नेता इब्राहिम मंधारा पर हमला करने और गलत तरीके से बंधक बनाने के मामले में दोषी ठहराया गया है।

एक आईपीएस अधिकारी के खिलाफ दर्ज कराये गए प्रकरण में पीड़ित ने 41 साल बाद भी उनका पीछा नहीं छोड़ा। इस मामले में पूर्व डीजीपी को अब तीन माह की सजा सुनाई गई है। प्रशासनिक जानकारों के मुताबिक इस रिटायर्ड डीजीपी पर सालों पुराने मामले में कड़ी कार्रवाई होने की घटना देश के उन तमाम आईपीएस और आईएएस अधिकारियों के लिए एक सबक है, जो अपने प्रभार वाले इलाकों में कानून का इस्तेमाल अपने हितों में करने की मंशा रखते है। अब पीड़ित पद के दुरुपयोग के प्रकरणों पर गंभीर रुख अपनाने से नहीं चूकते। कानून सब के लिए है, IAS और IPS अफसर भी इससे अछूते नहीं है। 

IPS Kuldeep Sharma, अंग्रेजी में यह नाम प्लेट भुज में सहज ही इलाके के लोगों का ध्यान खींचती थी। ये वो दौर था, जब कुलदीप शर्मा बतौर एसपी यहाँ पदस्थ थे। वे डायरेक्ट आईपीएस होने के कारण अपने दौर में काफी चर्चित रहे। गुजरात कैडर के इस अधिकारी को वर्ष 1995 में तब सीएम ऑफिस में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी ओएसडी (OSD) के पद तैनात गया था, जब सुरेश मेहता गुजरात के सीएम हुआ करते थे। कुलदीप शर्मा ने वर्ष 2002 में गुजरात दंगों के समय अहमदाबाद रेंज के आईजी का पदभार संभाला था। वे वर्ष 1993 में बने गुजरात एंटी टेरोरिस्‍ट स्‍क्‍वायड (ATS)के पहले डीआईजी (DIG) नियुक्त किये गए थे। 

कुलदीप शर्मा 1998 से 2001 के बीच राजकोट, बडोदरा, सूरत के पुलिस कमिश्नर के पद पर भी रहे. बाद में शर्मा को सीआईडी क्राइम ब्रांच का एडमिशन डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (ADGP) बनाया गया. इसी बीच उन पर सोहराबुद्दीन शेख के फेक एनकाउंटर के भी आरोप लगे थे। सोहराबुद्दीन की पत्‍नी कौसरबी ने इसे मर्डर बताया था। हालांकि उस समय शर्मा ने इन आरोपों से इनकार करते रहे। विवादों के बाद कुलदीप शर्मा अप्रैल 2011 में सेंट्रल डिप्‍यूटेशन पर होम मीनिस्‍ट्री के ब्‍यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (BPRD) में चले गए थे। यहाँ उन्होंने 2013-14 में गृह मंत्री के एडवाइजर के रूप में कार्य किया। 

कुलदीप शर्मा फरवरी 2014 में रिटायर हो गए थे। लेकिन रिटायर होते ही कांग्रेस का दामन थाम लिया था। एक जानकारी के मुताबिक 10 सितंबर 2015 को शर्मा ने कांग्रेस पार्टी  विधिवत ज्वाइन कर लिया था। इस दौरान दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उन्‍होंने 37 सालों तक पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी की है। अब रिटायर होने के बाद वह जनता की सेवा करना चाहते हैं. ऐसे में उनके पास दो ऑप्‍शन थे- एक या तो वह कोई एनजीओ ज्वाइन कर लें या फिर कोई राजनीतिक दल ? ऐसे में उन्होंने कांग्रेस में पॉलिटिकल करियर शुरू किया है। हालांकि गुजरात में सत्ता बीजेपी के हाथों चले गई, लेकिन उस केस ने उनका पीछा नहीं छोड़ा, जो यहाँ की एक अदालत में सालों से विचाराधीन था। गुजरात कैडर के आईपीएस कुलदीप शर्मा सालों बाद अब एक बार फ‍िर चर्चा में हैं। उन्हें अहमदाबाद की सत्र अदालत ने सोमवार को सजा सुना दी।

राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP) रहे कुलदीप शर्मा को 41 साल पहले के एक केस में अदालत ने दोषी ठहराया है और तीन महीने की सजा सुनाई है। पूर्व डीजीपी पर तत्कालीन दौर में कांग्रेस के एक स्थानीय नेता को गलत तरीके से कैद करने के आरोप लगे थे. यह मामला तब का है, जब शर्मा कच्छ जिले के पुलिस अधीक्षक (SP) हुआ करते थे। भुज की अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बीएम प्रजापति की कोर्ट ने इस मामले में पूर्व पुलिस निरीक्षक गिरीश वसावड़ा को भी दोषी ठहराते हुए तीन महीने की जेल के साथ जुर्माना भी लगाया है.अदालत ने शर्मा और वसावड़ा को आईपीसी की धारा 342 (गलत तरीके से कैद) के तहत दोषी करार दिया है. दोनों को तीन महीने की कैद और ₹1,000 जुर्माने की सजा सुनाई गई है। फ़िलहाल, न्यूज़ टुडे ने शर्मा से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई। इस प्रकरण से पुलिस मुख्यालय में हड़कंप है।