गेंदलाल शुक्ला
कोरबा। जिले के रेत खदानों में ठेकेदारी प्रथा शुरू होने के बाद करीब पांच सौ परिवार बेरोजगार हो गये हैं । इन परिवारों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गयी है । दिहाड़ी से वंचित मजदूरों में आक्रोश व्याप्त है ।
राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद रेत खदानों के संचालन व्यवस्था में परिवर्तन किया गया है। पहले नगरीय निकाय और और पंचायत रेत खदानों का संचालन करते थे। राष्ट्रीय हरित अभिकरण (एन.जी.टी.) के निर्देश पर रेत खदानों में हैण्ड लोडिंग की व्यवस्था थी । लेकिन नयी नीति के तहत अब रेत खदानों में ठेका प्रथा शुरू हो गयी है। कोरबा शहरी क्षेत्र की रेत खदानें अब ठेकेदार संचालित कर रहे हैं। खदानों में हैण्ड लोडिंग बंद कर दी गयी हैं। शहर के मोतीसागर पारा और गेरवाघाट रेत खदान में जे.सी.बी.और पे-लोडर से रेत की लोडिंग की जा रही है। फलतः कोरबा के पांच सौ श्रमिक परिवारों की रोजी-रोटी बंद हो गयी है। जिले में ग्रामीण क्षेत्र की रेत खदानों को ठेके पर देने की प्रक्रिया चल रही है। सभी रेत खदानों को ठेके पर देने के बाद एक हजार से अधिक परिवारों की आजीविका छिन जायेगी।
एक ओर जहां मजदूरों की रोजी-रोटी छिन गयी हैं, वही दूसरी ओर आम-उपभोक्ताओं को रेत कर दोगुना से अधिक मूल्य चुकाना पड़ रहा है। पिछले वर्ष एक ट्रैक्टर (तीन घन मीटर) रेत सात सौ रूपये में शहर वासियों को मिल रही थी। अब इतनी ही मात्रा के लिए नागरिकों को एक हजार पांच सौ रूपये का भुगतान करना पड़ रहा है। आम नागरिक परेशान हो रहे है, लेकिन उनकी व्यथा-कथा सुनने वाला कोई नहीं है। नगर निगम कोरबा के वार्ड नंबर-08 के पार्षद सुफलदास महंत ने जिला प्रशासन से रेत खदानों की व्यवस्था मेंपरिवर्तन करने और रेत की हैण्ड लोडिंग पुनः प्रारंभ कर गरीब मजदूरों की रोजी-रोटी सुनिश्चित करने की मांग की है।