NEWS TODAY CG : बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया, छत्तीसगढ़ में शराब की सरकारी पाठशाला का सबक साढ़े चार सालो से जारी, कर्णधारो ने तय किया नशे का पैमाना, नई पीढ़ी के हाथो में बोतल और चखना थमाने की नीति सुर्खियों में

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दिल्ली / रायपुर : छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने शराबबंदी का वादा कर देश भर में खूब सुर्खियां बटोरी थी। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद भूपेश बघेल ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में शराब बंदी के तमाम चरणों का बखूबी बखान भी किया था। लेकिन अब चुनाव सिर पर है, आचार संहिता लगने में चंद महीने ही शेष है, लेकिन कांग्रेस सरकार इतने सालो बाद भी शराब बंदी के अपने वादे को निभा नहीं पाई।

अब भूपेश बघेल और उनकी सरकार की इस मामले में सांसे फूली हुई है। कांग्रेस सरकार अपना वादा निभाने के मामले में लड़खड़ाती नजर आ रही है। शराबबंदी के मुद्दे पर मुख्यमंत्री बघेल की जुबान किस तरह से लड़खड़ा रही है, इसकी बानगी देखते ही बन रही है। 

दुर्ग में आयोजित भेंट मुलाकात कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शराबबंदी के मुद्दे पर लोगो का भ्रम तोड़ते नजर आये। सीएम बघेल ने जनता के सवालों का सीधा-सीधा जवाब देने के बजाय शराब की बहती नदी में गोता लगाने से बचने का ज्ञान पेलना शुरू कर दिया। कांग्रेस के पार्टी घोषणा पत्र का मुख्य संकल्प शराबबंदी का मुद्दा रहा है।

इस मामले में कांग्रेस ने बीजेपी को जबरदस्त पटखनी दी थी। लेकिन साढ़े चार सालो में कभी भी बघेल सरकार ने शराब का प्रोत्साहन बंद नहीं किया। अलबत्ता प्रदेश भर में शराब की नई और बड़ी-बड़ी दुकाने खुल गई। ED की हालिया छापेमारी में एक बड़े शराब घोटाले का खुलासा हुआ है। 

दुर्ग में शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री बघेल ने अपनी मंशा साफ जाहिर कर दी है, इसके बाद राजनीति उफान पर है। बघेल के इरादे भांपते ही बीजेपी ने कांग्रेस पर हमला करने में देरी नहीं की। वरिष्ठ बीजेपी नेता बृजमोहन अग्रवाल ने मुख्यमंत्री बघेल पर करारा हमला करते हुए, उन्हें पल्टूराम तक करार दे दिया।

बृजमोहन अग्रवाल ने आरोप लगाया कि शराब के कारोबार से होने वाली वैध-अवैध कमाई के चलते ही मुख्यमंत्री बघेल और कांग्रेस जनता से किए गए अपने वादों से पीछे हट रहे है। बीजेपी नेता ने शराब माफियाओं के साथ सरकार की मिलीभगत का आरोप भी लगाया। उधर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी साफ़ कर दिया कि सत्ता हथियाने के लिए शराबबंदी समेत तमाम लोक लुभावन वादे किये गए थे। लेकिन अब असलियत सामने है, नौजवान पीढ़ी मुख्यमंत्री के सरकारी संरक्षण में नशे में डूब रही है। 

दरअसल, जनता के सवालों का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि, मैं कोई ऐसी घोषणा नहीं करूंगा, जिससे लोगों की जान जाए। दुर्ग में भेंट मुलाकात कार्यक्रम में कई लोगो ने शराबबंदी लागू किए जाने को लेकर सीएम भूपेश बघेल को उनका वादा याद दिलाया था। बताते है कि जनता से संवाद के दौरान महिलाएं और बच्चे भी शराबबंदी की मांग कर रहे थे।

कार्यक्रम में ग्रामीणों के सवाल पर बघेल ने कहा कि मैं कोई ऐसी घोषणा नहीं करूंगा, जिससे लोगों की जान जाए, जब लॉकडाउन में शराब बंदी नहीं हो सकी तो अब कैसे होगी ? सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि लॉकडाउन में लोग नशीली दवाई और स्प्रिट पीकर मर रहे थे. इसलिए पहले जन जागरूकता अभियान चलाया जाए. लोग नशा छोड़ने का संकल्प करें, तभी शराबबंदी होगी। इस बयान के बाद बीजेपी और बघेल आमने-सामने है, वही जनता भी सीएम बघेल के बोल सुनकर हैरानी जता रही है। 

छत्तीसगढ़ में शराब के कारोबार ने दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति की है। शराबबंदी के तमाम दावों और वादों के बीच कई महीनो से सरकारी प्रतिनिधि मंडल विधायक सत्यनारायण शर्मा की अगुवाई में कई राज्यों का दौरा कर रहा है, लेकिन साढ़े चार बरस बीत गए, 2018 के बाद 2023 में होने वाले विधान सभा चुनाव की बेला, करीब आन पड़ी है, बावजूद इसके सरकारी प्रतिनिधि मंडल का अध्ययन-अध्यापन दौरा ख़त्म नहीं हुआ है।

शराबबंदी वाले प्रदेशो बिहार और गुजरात का जायजा लेने के बाद अध्यन में जुटी टीम ने अपनी कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है। लेकिन सीएम बघेल ने अपनी मंशा जाहिर कर इस कमेटी के इरादों पर भी पानी फेर दिया है।

वर्ष 2022—23 में आबकारी विभाग ने शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व का लक्ष्य बार-बार बढ़ाया। हालांकि, मदिरा प्रेमियों ने विभाग का अंतिम लक्ष्य भी पार कर दिया है। इस वर्ष राज्य में 15 हजार करोड़ रुपये की शराब बेची गई, जिससे सरकार को 6800 करोड़ रुपये का टैक्स मिला है। यह निर्धारित लक्ष्य से 300 करोड़ रुपये अधिक है। 

आबकारी विभाग ने वर्ष के प्रारंभ में 5000 करोड़ राजस्व का लक्ष्य निर्धारित किया था। बाद में इसे बढ़ाकर 5500 करोड़ फिर 6500 करोड़ किया। हासिल किया 6800 करोड़। शराब पर लगने वाले टैक्स में दस रुपये प्रति बोतल गोधन न्याय योजना का भी शामिल है। नेशनल हेल्थ सर्वे 2022 की दिसंबर की रिपोर्ट बताती है कि आबादी के अनुपात में सर्वाधिक शराब पीने वाले राज्यों में छत्तीसगढ़ सबसे आगे है। यहां 35.6 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं। 34.7 प्रतिशत के साथ त्रिपुरा दूसरे व 34.5 प्रतिशत के साथ आंध्र प्रदेश तीसरे स्थान पर है।

बताते है कि वर्ष 2003 में बीजेपी से पटखनी देने के बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री अजित जोगी ने शराब के प्रोत्साहन को लेकर सत्ताधारी बीजेपी पर अपना दबाव बनाया हुआ था। इस दौरान बीजेपी सरकार भी फूक-फूक कर कदम आगे बढ़ाते रही।

पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपने 15 वर्षो के कार्यकाल में आंशिक शराबबंदी के साथ आबकारी राजस्व को नियंत्रित रखने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। पहले UPA और फिर NDA के शासन काल में इस नए राज्य की आधारशिला और विकास कार्यो में आबकारी राजस्व ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। लेकिन वह सरकार की आय का मुख्य जरिया नहीं बन पाया था।  

बताते है कि वर्ष 2003 से लेकर वर्ष 2018 तक साल दर साल आबकारी राजस्व ने प्रगति कर वित्तीय वर्ष 2018-19 तक रिकॉर्ड 37 हजार करोड़ के लक्ष्य तक पहुंचाया था। इस दौरान सूबे की ढाई करोड़ की आबादी से शराब के जरिए इतनी अधिक आमदनी का लक्ष्य रखने को लेकर विपक्षी दल कांग्रेस कहा था कि बीजेपी छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा नहीं, बल्कि दारु का ग्लास थमाने में जुटी है।

हालांकि अब कांग्रेस का नारा ही उसे मुँह चिढ़ा रहा है। जानकारों के मुताबिक आंकड़े बताते है कि शराबबंदी का वादा कर साहब इसके धंधे में ऐसे रमे की इन दिनों शराब का नशा उनके सिर चढ़ कर बोल रहा है। बीजेपी के 15 वर्षो में 37 हजार करोड़ और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में 15 हजार करोड़ सालाना का आबकारी राजस्व का सरकारी तिजोरी में आना दर्शा रहा है कि राज्य में शराबबंदी सिर्फ शिगूफा है, असल में तो यह ऑफिस ही प्रॉफिट का है। बताते है कि राज्य में वैध-अवैध शराब का कारोबार सलाना 20 हजार करोड़ से ज्यादा का है।

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बकौल, छत्तीसगढ़ स्टेट बेवरेजेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड के एमडी अरुण पति त्रिपाठी के मुताबिक झारखण्ड के लिए 3 बार प्रेजेंटेशन और मीटिंग हुईं थी। इसके बाद झारखंड की आबकारी नीति को लागू किया गया था। उसके मुताबिक मध्य प्रदेश, हरियाणा और तमिलनाडु ने छत्तीसगढ़ की आबकारी नीति से प्रभावित होकर यहां अपना अध्ययन दल भेजने और रिसर्च करने के लिए उनसे संपर्क किया था। मतलब साफ है कि मुख्यमंत्री बघेल की अगुवाई में शराबबंदी के बजाय उसके प्रोत्साहन की ऐसी नीति कारगर साबित हुई है, जो देश के कई राज्यों को भी सरकारी लूटपाट के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

ED सूत्र ही नहीं बल्कि आम जनता तस्दीक करने लगी है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में शराब की नदियां बह रही है। आबकारी राजस्व की चकाचौंध में साहब की जुबान भी इन दिनों लड़खड़ाने लगी है, माना जा रहा है कि शराबबंदी और लोक कल्याणकारी सरकार दोनों एक ही रथ के अलग-अलग पहिये है, फ़िलहाल तो राजनेताओ के लिए जनता की जुबान पर सालो पुराना जुमला, बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया, खूब ट्रेंड कर रहा है।