रायपुर : छत्तीसगढ़ की सुपर CM सौम्या चौरसिया ने प्रदेश में जिस तरह से लूटपाट मचाई है, वो प्रदेश के इतिहास में दर्ज हो गया है। इस प्रदेश ने गरीबी और बीमारू राज्य के रूप में उपलब्धि हासिल की थी। ”धान का कटोरा” के नाम से पहचाने जाने वाले इस राज्य को विकास के पथ पर ले जाने की नीव प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने रखी थी। वर्ष 2001 में सीमित बजट के बावजूद जोगी ने इस राज्य के गठन के सपने को साकार करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोक दी। उस दौर में भ्रष्टाचार के गिने चुने मामले ही सामने आए थे।
इस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री जोगी ने फ़ौरन सुध ली। उन्होंने दागी अफसरों के अरमानो पर पानी फेर दिया। हालांकि वर्ष 2003 से लेकर 2018 तक मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस प्रदेश को आधुनिक रूप देकर देश में विकासशील राज्यों में छत्तीसगढ़ को शुमार कर दिया। पहले यूपीए और फिर एनडीए के शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने रायपुर को महानगर के रूप में स्थापित किया। उन्होंने मौजूदा छत्तीसगढ़ को नए रूप में ढाल कर उद्द्योग धंधो की स्थापना की। यह प्रदेश विकास के रास्ते पर दौड़ने लगा।
लेकिन 15 सालो की उनकी कार्यशैली पर वर्ष 2018 में विराम लग गया। इस बार कांग्रेस ने बाजी मारी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने कई लम्बे -चौड़े वादे कर सत्ता अर्जित कर ली। लेकिन जब पार्टी घोषणा पत्र के वादों को निभाने का दौर आया तो भ्रष्टाचार के मामलो में सरकार सहभागी बन गई। सत्ता के करीबी अफसर सुनियोजित रूप से बड़े से बड़े आर्थिक अपराधों को अंजाम देने लगे। एक कुशल -प्रशासक के रूप में परिचय देने के बजाय मुख्यमंत्री बघेल उन अफसरों की हिफाजत में जुट गए जो रोजाना नए -नए अपराधों की आधारशिला रखते रहे।
प्रदेश में पहली बार जूनियर IAS और IPS अधिकारियों का ऐसा गिरोह बना, जो जनता की कमाई सीधे तौर पर अपनी तिजोरी में डालने लगा। प्रदेश में पहली बार लगभग 800 करोड़ की हर माह होने वाली उगाही जन चर्चा के रूप में लोगो की जुबान में आने लगी। आम हो गए भ्रष्टाचार के किस्से, गली -मोहल्लो और नुक्कड़ों में बघेल के करीबी अफसरों की नामी -बेनामी सम्पतियाँ सामने आने लगी। इस पर रोक लगाने की कवायतें मुख्यमंत्री बघेल के लिए टेढ़ी खीर साबित होने लगी। नतीजतन केंद्रीय जाँच एजेंसियों को छत्तीसगढ़ का रुख करना पड़ा।
आर्थिक अपराधों का गढ़ बन चुके इस प्रदेश को किस तरह से लुटा जा रहा है, इसकी बानगी IT -ED के छापो से उजागर हो रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की करीबी अफसर डिप्टी कलेक्टर सौम्या चौरसिया ने खुद बा खुद तो छोड़िए, अपने कुनबे को भी लूटपाट का काम सौंप दिया। उसने सरकारी सरंक्षण में प्रदेश की सरकारी मशीनरी जाम कर ”गब्बर सिंह उद्योग धंधे” की स्थापना की। उसके दो भाइयो अमित और नवनीत चौरसिया ने प्रदेश में सर्वाधिक धन कमाया। इसका अंदाजा आप लगा सकते है कि यह धन विदेशो तक में ठिकाना लगाया गया।
सिंगापूर के आलावा खाड़ी देशो खासकर क़तर और दुबई जैसे राज्यों में इस सुपर CM का बड़ा आर्थिक नेटवर्क बन गया। सौम्या अब फेमा कानून के उल्लंघन के दायरे में है जबकि उनकी बुजुर्ग माँ के नाम पर खरीदी गई अरबो की सम्पति की जाँच जारी है। ED उनकी माँ, शांति देवी से उन संपत्तियों की खरीद फरोख्त और आर्थिक स्रोतों के बारे में पूछताछ कर रही है। सूत्र बताते है कि शांति देवी ने अब तक यह नहीं बताया है कि इस संपत्ति को खरीदने के लिए उन्होंने इतनी मोटी रकम कहाँ से लाई थी।
उन्होंने यह भी नहीं बताया कि इस संपत्ति को खरीदने के लिए किसने हामी भरी ? जमीनों की रजिस्ट्री के लिए उन्होंने किनकी सहायता ली ? उन्होंने यह भी नहीं बताया कि उनके नाम पर संपत्ति ख़रीदे जाने के पीछे किनका हाथ है ? यही नहीं जिन लोगो से यह संपत्ति खरीदी गई, उनका पता ठिकाना और जान -पहचान तक शांति देवी नहीं जानती। मतलब साफ़ है कि इस बुजुर्ग महिला के नाम पर परिवार के किसी सदस्य ने बड़े पैमाने पर संपत्ति खरीदी थी। और तो और जमीन बेचने वालो को नगद में भुगतान कर ब्लैकमनी ठिकाने लगाई गई। अब ED इस सम्पत्ति के क्रेता -विक्रेता से भी पूछताछ में जुटी है।
बताया जाता है कि दुर्ग की पाटन तहसील से गुजरने वाली रेलवे लाइन और भारत सरकार के नए हाईवे ”भारत माला ” प्रोजेक्ट की सडको के दोनों और शांति देवी के नाम पर अरबो की सम्पत्ति खरीदी गई है। इस नामी -बेनामी सम्पत्ति के दस्तावेज न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ को प्राप्त हुए है। बताया जाता है कि इन जमीनों के आलावा भी सौम्या चौरसिया और उसके कुनबे के नाम पर देश के विभिन्न राज्यों में भी बड़े पैमाने पर ब्लैकमनी खपाई गई है। सूत्र बताते है कि ”शांति देवी” ने नामी -बेनामी संपत्ति के मामले में पूरी तरह से मौन साध लिया है।
सूत्रों के मुताबिक यह जानकारी भी सामने आई है कि रायपुर, दुर्ग और कुछ एक अन्य जिलों के पंजीयन सौम्या के कुनबे के नाम पर रजिस्ट्री के लिए घर पहुंच सेवा दे रहे थे। राज्य के आम नागरिकों को संपत्ति की खरीद फरोख्त पर मुहर लगाने के लिए रजिस्ट्री कार्यालय का चक्कर लगाना होता है। लेकिन सौम्या के कुनबे के नाम पर बेनामी संपत्ति को वैधानिक बनाने के लिए कुछ चुनिंदा पंजीयक और तहसीलदार अपना बोरियां -बिस्तर लेकर सौम्या के ठिकानो का चक्कर काटते थे।
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इनकी परिजनों के नाम पर जमीनों की खरीद फरोख्त घर बैठे हो जाया करती थी। फिलहाल छत्तीसगढ़ शासन और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की छवि पर सौम्या चौरसिया एक बदनुमा दाग साबित हो रही है। कई गैर क़ानूनी गतिविधियों में लिप्त रहने के बावजूद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का उसे प्राप्त अनुचित सरंक्षण चर्चा का विषय बना हुआ है।