रायपुर/कवर्धा/रायगढ़: छत्तीसगढ़ में वन एवं जलवायु विभाग में फारेस्ट गॉर्ड और ड्राइवरों की भर्ती में बड़ी धांधली सामने आई है। सरकारी नियुक्ति वाले कुल 1628 पदों पर विभागीय प्रमुख ने ही एक बड़ा भर्ती घोटाले को अंजाम दे दिया। जानकारी के मुताबिक इस घोटाले को अंजाम देने के लिए ऑनलाइन डिजिटल सिस्टम को आखिरी वक़्त ऑफलाइन कर दिया गया। इसमें 1990 बैच के आईएफएस अधिकारी श्रीनिवास राव की महत्वपूर्ण भूमिका सामने आई है। उनकी कार्यप्रणाली के चलते एक बार फिर बेरोजगारों के अरमानों पर पानी फिर गया है। दरअसल, वन एवं जलवायु विभाग में फॉरेस्ट गार्ड के 1484 और ड्राइवर के 144, कुल 1628 पदों पर सुनियोजित धांधली होने से हज़ारों बेरोजगारों के अरमानों पर पानी फिर गया है।
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वन एवं जलवायु विभाग में भर्ती के दौरान शारीरिक दक्षता परीक्षा को प्रक्रिया में लाने के लिए प्रदेश की विष्णुदेव साय सरकार ने स्पष्ट गाइडलाइन जारी की थी। ताकि भर्ती में पारदर्शिता अपनाई जा सके। इसके तहत उम्मीदवारों के शारीरिक नाप-जोख एवं दक्षता का आकलन डिजिटल प्रणाली से किये जाने के निर्देश दिए गए थे। इसके लिए राज्य सरकार द्वारा टेंडर जारी कर हैदराबाद की एक कंपनी ‘टाइमिंग टेक्नोलॉजीज इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ को करोड़ों का ठेका सौंपा गया था। बताया जाता है कि इस कुपात्र कंपनी को करोड़ो का ठेका दिलाने में विभाग प्रमुख श्रीनिवास राव की महत्वपूर्ण भूमिका सामने आई है।
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छत्तीसगढ़ में इन दिनों वन एवं जलवायु विभाग में फॉरेस्ट गार्ड और ड्राइवर भर्ती घोटाले को लेकर कोहराम मचा है।भर्ती में बेरोजगारों को सुनहरे भविष्य का मौका देने में बीजेपी सरकार ने त्वरित कार्यवाही कर पारदर्शितापूर्ण प्रक्रिया अपनाने के लिए जोर दिया था। लेकिन सरकार की गाइड लाइन सुनिश्चित करने के लिए ठेका कंपनी ने आखिरी समय प्रदेश के ढ़ाई लाख से ज्यादा उम्मीदवारों के अरमानों पर पानी फेर दिया।
जानकारी के मुताबिक भर्ती केंद्रों में उस समय गहमा-गहमी शुरू हो गई, जब तय समय पर ना तो डिजिटल उपकरण स्थापित किये गए और ना ही गाइडलाइन सुनिश्चित करने की दिशा में ठेका कंपनी द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया। नतीजतन, भर्ती अधिकारियों ने अपनी मनमर्जी के तहत पुराने ढर्रे पर लगभग ढ़ाई लाख उम्मीदवारों का नाप-जोख और शारीरिक परीक्षण कर खानापूर्ति कर दी।
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सूत्रों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में फॉरेस्ट गार्ड और ड्राइवर भर्ती प्रक्रिया में सुनियोजित धांधली की शिकायतें जोरो पर है। बताया जाता है कि ठेका कंपनी ‘टाइमिंग टेक्नोलॉजीज इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ और वन एवं जलवायु विभाग के प्रमुख, मुखिया श्रीनिवास राव के बीच बड़ी सांठ-गांठ है, आपसी रिश्तेदारी और सामंजस्य के चलते इस कुपात्र कंपनी को देश की सबसे ऊंची दरों पर छत्तीसगढ़ में डिजिटल टेक्नोलॉजी का ठेका सौंप दिया गया था। जबकि अनुबंध का समुचित पालन करने के मामले में यह कंपनी फिसड्डी साबित हुई है। उसने बहुप्रतीक्षित रोजगार के अवसरों पर सवालियां निशान लगा दिया है।
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यह भी बताया जाता है कि जिला मुख्यालयों में पदस्थ DFO और अन्य भर्ती अधिकारियों ने इस कंपनी की गड़बड़ियों को लेकर लिखित पत्र में पूरा मामला विभाग प्रमुख श्रीनिवास राव के संज्ञान में लाया था। लेकिन उनकी कार्यप्रणाली के चलते समय पर कोई कदम नहीं उठाया गया। यहाँ तक की विभाग प्रमुख ने राज्य सरकार की गाइडलाइन का पालन कराने की दिशा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अलबत्ता धांधली छिपाने के लिए विभाग प्रमुख ने एक नया दांव खेल दिया। उनके द्वारा एक विभागीय कमेटी गठित कर ऑनलाइन सिस्टम को ऑफलाइन करने के लिए अनुमति प्राप्त कर ली गई। इस नए कारनामे से सरकार की मंशा पर भी सवालिया निशान लगने लगा है।
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जानकारी के मुताबिक वन एवं जलवायु विभाग में फॉरेस्ट गार्ड और ड्राइवरों की भर्ती में ऑफलाइन सिस्टम के चलते बड़े पैमाने पर धांधली बरती गई है। पीड़ित शिकायतकर्ता उम्मीदवारों ने यह आरोप लगाते हुए बताया है कि नियमों के विपरीत चयन सूची तैयार होने से ऊंची पहुँच और लेनदेन वाले कई कुपात्रों को रोजगार का अवसर मुहैया कराया गया है। शिकायतकर्ताओं के मुताबिक वन मंत्री को भी भर्ती में बरती जा रही धांधली से अवगत कराने के लिए प्रयास किये गए थे। लेकिन विभागीय मंत्री के महकमे में तैनात किसी ‘आरएन सिंह’ नामक कर्मी ने उन्हें बंगले से बैरंग लौटा दिया था।
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यह भी बताया जाता है कि भर्ती अधिकारियों ने ठेका कंपनी से डिजिटल सिस्टम स्थापित करने और अनुबंध की सेवा शर्तों के तहत उपकरण मुहैया कराने को लेकर कई बार मिन्नतें भी की थी। लेकिन विभाग प्रमुख के संरक्षण के चलते इस कंपनी ने DFO के निर्देशों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। शिकायत के मुताबिक ठेका कंपनी की अयोग्यता की वजह से भर्ती में ना तो पारदर्शिता रही और ना ही गाइडलाइन के तहत शारीरिक दक्षता परीक्षा अपनाई गई। इससे हज़ारों उम्मीदवारों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। उनके मुताबिक कई योग्य और पात्र उम्मीदवारों को अपनी दक्षता दिखाने का अवसर नहीं मिलने से भर्ती प्रक्रिया विवादित हो चुकी है।
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जानकारी के मुताबिक तमाम भर्ती केंद्रों में पूरे समय ऊहा-पोह की स्थिति बनी रही। कई भर्ती केंद्रों में उम्मीदवारों ने हंगामा किया तो कई ने पारदर्शिता अपनाने की मांग को लेकर मामले की स्थानीय बीजेपी नेताओं से भी शिकवा-शिकायतें की। इस मामले में भर्ती अधिकारियों द्वारा विभाग प्रमुख को अवगत कराये गए मामले को लेकर लिखे गए पत्रों का भी खुलासा हुआ है।
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बताया जाता है कि कवर्धा, बिलासपुर, रायगढ़ समेत दर्जनभर जिलों के DFO ने पत्र लिख कर विभागीय प्रमुख को हकीकत से रूबरू भी कराया था। लेकिन सेवा शर्तों का पालन कराने के बजाय विभाग प्रमुख ने स्वगठित एक कमेटी के फैसलों का हवाला देते हुए भर्ती अधिकारियों को चुप्पी साधने का फरमान सुना दिया। नतीजतन पुराने ढर्रे और परंपरागत तरीके से भर्ती प्रक्रिया पूर्ण कराने के फरमान सुनाये गए है। फ़िलहाल विभाग प्रमुख की कार्यप्रणाली और घोटालों के आरोपों को लेकर नया बखेड़ा जारी है।