कोरोना काल में इम्युनिटी बढ़ाने वाले औषधीय पौधों की ओर बढ़ा , कोरिया जिले के कृषकों का रूझान , केवीके द्वारा बनाई गई पोषण बाड़ियों में छुपे है कई रोगों के इलाज

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रिपोर्टर- राजन पांडेय 

कोरिया । कोरोना काल में नर्सरियों का मिजाज बदल गया है। पहले जहां नर्सरियों में खूबसूरत पौधों व महकते फूल ही दिखाई देते थे, अब उनके साथ ही औषधीय पौधें भी नजर आ रहे है। वर्तमान में इम्युनिटी बढ़ाने की कोशिश में औषधीय पौधों की ओर लोगों का रूझान बढ़ा है। ग्रामीण कृषक व महिलाएं भी अपनी बाड़ियों में साल भर सब्जी उत्पादन के साथ साथ औषधीय पौधे भी लगवाने हेतु उत्सुकता दिखा रहे है।

राज्य शासन की महत्वाकांक्षी सुराजी योजना- नरवा, गरुवा, घुरुवा अऊ बाड़ी के अंतर्गत कलेक्टर श्री एस एन राठौर के मार्गदर्शन में कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा बाड़ी विकास की संकल्पना को साकार करने के लिए विकासखंड सोनहत के ग्राम घुघरा, सोनहत, पुसला, कुशहा, सलगवांकला, बोड़ार इत्यादि में कृषकों की चयनित बाड़ियों में राज्य पोषित बाड़ी विकास कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष भर सब्जी व फल उत्पादन के साथ साथ विभिन्न प्रजातियों के औषधीय पौधे मनरेगा के अनुमेय कार्य में लगाए जा रहे है।

कोरिया जिले में कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा औषधीय व सगंध प्रक्षेत्र में मनरेगा अंतर्गत 50 हजार औषधीय पौधे तैयार किये जा रहे है। इनमें वन तुलसी, अश्वगंधा, पचैली, पत्थरचट्टा, स्टीविया, शतावरी, अपराजिता, हड़जोड़ और वन अजवाइन जैसे औषधीय पौधे शामिल हैं। इन तैयार पौधों को कृषकों की चयनित पोषण बाड़ियों में लगाया जाता है ताकि जिले में औषधीय पौधे की प्रजातियों महत्व व जानकारी कृषकों को मिले। भविष्य में कृषक समुदाय स्वयं किस तरह से पौधे तैयार कर सकते है, इसकी भी तकनीकी जानकारी कृषकों को केवीके के वैज्ञानिकों के माध्यम से दी जा रही है।

क्या है इन औषधीय पौधों की विशेषता
     

 वन तुलसी – रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर खांसी, जुखाम में लाभ पहुंचाती है। वनतुलसी के पत्ते के रस को नाक से देने से बेहोशी, सिर के दर्द, साइनस में फायदा होता है। अश्वगंधा – शारीरिक शक्ति के साथ-साथ रक्त साफ होता है और हड्डियों को मजबूती मिलती है। अश्वगंधा का सेवन करने से दिल संबंधित बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। पचैली – इस पौधे से प्राप्त तेल नसों, मांसपेशियों और त्वचा के संकुचन के उत्तेजक के रूप में काम करता है।
     

 इसी तहर पत्थरचट्टा – शरीर में किसी तरह के बाहरी रोग जैसे- घाव, खून का बहना, जलन फोडे व फुंसी आदि में बहुत फायदेमंद है। इसके अलावा यदि शरीर में आंतरिक रोग जैसे पथरी आदि में इसका उपयोग किया जाता है। पत्थरचूर – विभिन्न ह्रदय विकारों जैसे हाईपरटेंशन, हृदयाघात के उपचार में उपयोगी है। स्टीविया – मोटापे और उच्च रक्त चाप के इलाज में स्टेविया के संभव लाभ को दिखाया है। वन लहसुन – सांस के विकार को दूर करता है। पाचन विकार दूर करता है उच्च रक्त चाप, ह्रदय रोग, त्वचा विकार, हेतु फायदेमंद। गोटू कोला (मण्डकपर्णी)- मानसिक थकान दूर करता है, अवसाद के दूर करता है, बौद्धिक क्षमता बढ़ाता है, मिर्गी में उपयोगी, घाव भरने में सहायक है।

शतावरी – सतावर का इस्तेमाल दर्द कम करने में किया जाता है। इसकी जड़ तंत्रिका प्रणाली और पाचन तंत्र की बीमारियों के इलाज, ट्यूमर, गले के संक्रमण, ब्रोंकाइटिस और कमजोरी में फायदेमंद होती है। अपराजिता – माइग्रेन के दर्द में लाभदायक, पाचन तंत्र, नर्वस सिस्टम, हेतु लाभकारी, सूजन एवं दर्द में राहत देता है। अस्थिसंहार (हड़जोड़) – रीढ़ की हड्डी के दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद हड़जोड़ अगर रीढ़ की हड्डी के दर्द से परेशान हैं तो हड़जोड़ का औषधीय गुण बहुत फायदेमंद तरीके से काम करता है। वन अजवाइन – वन अजवाइन अपनी खुशबू की वजह से जाना जाता है। वन अजवाइन सिर दर्द, पेट दर्द और कई बीमारियों से बचाता है।