नई दिल्लीः शराब के नशे में गाड़ी चलाने के लिए सेवा से बर्खास्त किए गए ड्राइवर के प्रति नरमी दिखाने से इनकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ इसलिए कि कोई बड़ी दुर्घटना नहीं घटी, ऐसे मामले में यह नरमी दिखाने का आधार नहीं हो सकता है.
खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एक कर्मचारी द्वारा दायर एक सिविल अपील में यह टिप्पणी की. दरअसल, अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा कर्मचारी की बर्खास्तगी का आदेश दिया गया था. इसके खिलाफ उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. हाईकोर्ट ने प्राधिकरण के फैसले को रद्द करने से इनकार कर दिया था.
शराब पीकर गाड़ी चलाना गंभीर अपराध
न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्न की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, यह सौभाग्य की बात है कि दुर्घटना एक घातक दुर्घटना नहीं थी. यह एक घातक दुर्घटना हो सकती थी. कोर्ट ने कहा कि शराब पीकर गाड़ी चलाना और दूसरों की जिंदगी से खेलना बेहद गंभीर कदाचार है.
सरकारी कर्मचारी से हुई ये गलती
कर्मचारी बृजेश चंद्र द्विवेदी (अब मृतक) उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में 12वीं बटालियन, पीएसी में तैनात ड्राइवर था. जब वह कुंभ मेला ड्यूटी पर फतेहपुर से इलाहाबाद जा रहे पीएसी कर्मियों को ले जा रहे ट्रक को चला रहा था, तभी जीप से उनकी गाड़ी की टक्कर हो गई. कर्मचारी पर शराब के नशे में गाड़ी चलाते समय दुर्घटना का कारण बनने का आरोप लगाया गया था.
बर्खास्तगी की सजा का प्रस्ताव
विभागीय जांच पूरी होने पर जांच अधिकारी ने बर्खास्तगी की सजा का प्रस्ताव रखा, जिसकी पुष्टि अपीलीय अधिकारी ने की. बर्खास्तगी की सजा से दुखी और असंतुष्ट महसूस करते हुए, कर्मचारी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की, जिसने उसकी याचिका को खारिज कर दिया. इसके बाद उसने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया.
कर्मचारी की हो चुकी है मौत
शीर्ष अदालत के समक्ष कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, कर्मचारी की मृत्यु हो गई और उसके बाद उसके उत्तराधिकारियों को रिकॉर्ड में लाया गया. हालांकि, उसकी 25 साल की लंबी सेवा और उसके बाद उसकी मृत्यु पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि यह पता चलता है कि बर्खास्तगी की सजा को बहुत कठोर कहा जा सकता है और इसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति के रूप में माना जा सकता है.