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सपनों का घर : इस दंपत्ति ने बनाया ईको फ्रेंडली घर , न पंखा , टीवी , फ्रिज और न ही कोई बल्ब , इसके बावजूद चैन की नींद सो रहा है यह परिवार , आधुनिक चकाचौंध और भागम भाग की जिंदगी को किया टाटा बाय-बाय , एक अनूठी जिंदगी की दास्तान
बेंगलुरु / आधुनिक और चकाचौंध वाली जिंदगी को दरकिनार कर अब लोग प्रकृति के गोद में जाना ही मुनासिब समझ रहे है | उनकी जिंदगी पेड़ पौधों और पक्षियों की चह-चहाहट के बीच बड़ी अच्छी तरह से कट रही है | उनकी देखा सीखी अब कई लोग प्रकृति के बिल्कुल करीब रहना चाहते हैं। इस दम्पत्ति की दिनचर्या और रहन-सहन को देखकर कई करोड़पति भी हैरत में है | वो मानते है कि विकास की तेज रफ्तार में भौतिक सुविधाओं की आवश्यकता को सीमित करके वे लोग प्रकृति के बहुत करीब हो सकते है | उनके मुताबिक मौजूदा जिंदगी ने उन्हें प्रकृति से बेहद दूर कर दिया हैं। उनके लिए बेंगलुरु के एक दंपति का घर आदर्श घर के रूप में सामने आया है | दरअसल इस दंपत्ति ने ऐसा घर बनाया है, जो प्रकृति के अनुकूल है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस घर में आधुनिक संसाधनों को दूर रखा गया है | घर में ना टीवी फ्रिज है और ना ही बल्ब और पंखा है। रोजमर्रा के घरेलू और बाहरी कामकाज के लिए ये परिवार देशी नुस्खे आजमाता है |
दरअसल, यह रोचक जिंदगी जी रहे है , रंजन और रेवा मलिक । इस दंपत्ति ने ऐसा घर बनाया है, जो पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है। इस घर में हर सुबह धूप और मौसम की ताजा स्थिति ये तय करती है कि उनके सोलर कुकर में आज क्या बनेगा। अगर धूप तेज होती है, तो रेवा मलिक बाजरे से कोई डिश बनाती हैं। इस घर की डिजाइन ऐसे तैयार की गई है कि प्रत्येक कमरों में पर्याप्त क्रॉस वेंटिलेशन की सुविधा है, जिससे तापमान हमेशा सामान्य बना रहता है।
करीब 770 वर्ग फीट के एरिया में इस घर को मिट्टी से बनाया गया है। घर के नींव में भी मड कंक्रीट इस्तेमाल किया गया है। जरूरत के हिसाब से स्टील का भी इस्तेमाल किया गया है। इस घर में एक किचन लिविंग रूम और एक परछत्ती है। छत टेराकोटा टाइल से बनी है, जो सर्दियों में गर्म रहती है और गर्मी में ठंडी। इस घर में छत पर टाइलों को 30 डिग्री के स्लोप पर लगाया है, जिससे गर्मी सीमित करने में मदद मिलती है। वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से अंडर ग्राउंड टैंक में 10 हजार लीटर पानी जमा होता हैं। वहीं दूसरे टैंक में रीसायकल्ड पानी जमा किया जाता है और इसका इस्तेमाल 40 से अधिक जैविक सब्जियों और फलों की सिंचाई में होता है। पूरे घर में प्राकृतिक रोशनी और हवा के लिए खुली जगह और बड़ी खिड़कियां हैं। सबसे खास बात तो ये है कि दंपत्ति ने अभी तक अपने इस घर में कोई पंखा या बल्ब भी नहीं लगाया है।
रेवा मलिक बताती हैं कि शहरी जनजीवन से वे ऊब चुकी है | उनका अधिकांश समय शहर में गुजरा, लेकिन जिंदगी का बचा हुआ वक्त वो प्रकृति के करीब रहकर गुजारना चाहती है | इसलिए उन्होंने साल 2018 में अपनी जमीन पर इस इको-फ्रेंडली घर को तैयार किया है । उनके मुताबिक उनके पति की भी दिनचर्या भी प्रकृति के अनुकुल है। पति रंजन और वे सूर्योदय होने पर उठ जाते हैं और सू्र्यास्त होने पर सो जाते हैं। उनका मुर्गा सुबह-सुबह बांग देकर उन्हें उठा देता है | सुबह उठने के लिए उन्हें कभी भी अलार्म क्लॉक की जरूरत नहीं पड़ी | यही नहीं यह परिवार कैमिकल रहित खेती कर अपने जीवन यापन के लिए पर्याप्त खाद्य पदार्थो का संग्रहण कर लेता है | विशेष परिस्थितियों में ही उन्हें घर से बाजार का रुख करना पड़ता है | फ़िलहाल इस दंपत्ति को यहां स्वर्ग का आनंद प्राप्त होता है |