दिल्ली / तिरुवनंतपुरम : तमिलनाडु में इन दिनों राजभवन और सरकार के बीच मधुर संबंध खटाई में पड़ गए है। राज्यपाल आरएन रवि के सक्रिय होते ही DMK मुश्किल में है। उसने राज्यपाल को विधिसंगत रूप से उनके सवालों का जवाब देने के बजाय मामले को राजनैतिक धरातल पर ला दिया है। DMK ने सीधे तौर पर राज्यपाल पर हमला बोला है। ‘शांति के लिए खतरा’ बताते हुए तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके ने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में ‘लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को लोगों की सेवा करने से रोकने’ के लिए उन्हें हटाने की मांग की गई है।
बताया जाता है कि विवाद राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति से जुड़ा है। जानकारों के मुताबिक संवैधानिक स्थिति यह है कि राज्यपाल को अगर राज्य मंत्रिमंडल कोई विधेयक भेजता है तो राज्यपाल उसे एक बार वापस भेज सकता है। अगर कैबिनेट विधेयक को राज्यपाल को दोबारा भेजती है, तो वे उसे वापस नहीं भेज सकते। बताया जाता है कि कई विधेयकों को लेकर शंका समाधान के लिए राज्यपाल सरकार से रायसुमारी करना चाहते है। इसे लेकर विवाद गहरा गया है।
DMK ने राष्ट्रपति को सौंपे गए ज्ञापन में कहा कि, “राज्यपाल आरएन रवि ने संविधान और कानून के संरक्षण, रक्षा और बचाव की शपथ का उल्लंघन किया है.” डीएमके ने आरोप लगाया कि वह विधानसभा के पारित विधेयकों को मंजूरी देने में अनावश्यक रूप से देरी करते हैं। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व में आरएन रवि को संवैधानिक पद के लिए अयोग्य करार देते हुए कहा, “कुछ लोग उनके बयानों को देशद्रोही मान सकते हैं क्योंकि उनके बयान सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने का प्रयास करते हैं. वह बर्खास्त होने के योग्य हैं.”
दरअसल कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के जोर पकड़ते ही डीएमके ने इस महीने की शुरुआत में नए समीकरण सेट किये है। उसने राज्यपाल पर दबाव बनाने के लिए गैर बीजेपी शासित राज्यों में मुहीम छेड़ी है। उसने “समान विचारधारा वाले सभी सांसदों” को पत्र लिखकर आरएन रवि को हटाने के प्रस्ताव का समर्थन करने का आग्रह किया था। DMK के सूत्रों की मानें तो तमिलनाडु में 20 विधायकों को राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है। अप्रैल में, डीएमके नेताओं ने राज्य विधानसभा में दो बार पारित होने के बाद राष्ट्रपति को NEET छूट विधेयक नहीं भेजने के लिए उनका विरोध किया था