छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल ने क्या अपनी कुर्सी बचाने के लिए कराई संत काली चरण की गिरफ्तारी……? बापू – बापू मे फर्क तो देखिए, अपने बापू के खिलाफ साधारण धाराओं में कराया गया था मुकदमा दर्ज लेकिन ऐसे ही मामले में कालीचरण के खिलाफ देशद्रोह की धारायें लगाई गई, नन्दलाल बघेल बनाम मोहन दास करमचंद ‘गाँधी’ पर एक नजर

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में इन दिनों पत्रकारो से लेकर साधू-संतो की गिरफ्तारी से मामला गरमाया हुआ है। ताजा मामला संत कालीचरण की मध्यप्रदेश के खजूराहो से हुई गिरफ्तारी से जूड़ा है। उनकी गिरफ्तारी के तौर तरीको को लेकर दोनो ही राज्यो की पुलिस आमने सामने है। बीजेपी और कांग्रेस दोनो पार्टी के नेता महात्मा गाँधी को लेकर अपना अपना राॅग अलाप रहे हैं। इस बीच बापू-बापू में बरते गये फर्क का मुद्दा भी चर्चा में आ गया है। राजनैतिक पण्डितो की दलील है कि लखनऊ में नन्द कुमार बघेल के भगवान राम और ब्राह्मणो पर दिये गये बयानो से कांग्रेस की होने वाली फजीहत की तर्ज पर कालीचरण और धर्म संसद का मामला भी पार्टी के लिए गले की फाॅस बन सकता है। मौके की नजाकत को देखते हुए कालीचरण की गिरफ्तारी मुख्यमंत्री बघेल की कुर्सी के लिए वरदान साबित होगी या फिर अभिशाप यह तो वक्त ही बतायेगा। रायपुर मे हुई धर्म संसद में इस संत ने जब मुँह खोला तो काग्रेसियों के होश उड़ गये।

दरअसल इस धर्म संसद का आयोजन काग्रेंस से जुड़े लोगो के द्वारा ही किया गया था। बताया जाता है कि धर्म संसद में कालीचरण ने महात्मा गाँधी के बारे में अर्नगल टिप्पणी कर दी थी। उनका बयान जब लोगों के बीच आया तो हंगामा मच गया। मुख्यमंत्री बघेल समेत काग्रेंस पार्टी इस आयोजन को लेकर घिरती चली गयी। ऐसे वक्त मोर्चा संभाला प्रदेश काग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने, उन्होंने फौरन कालीचरण के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया लेकिन एफआईआर में धर्म संसद के आयोजको का जिक्र तक नहीं किया। इससे यह मामला बीजेपी की आँखों की किरकीरी बन गया। वो तुरन्त हमलावर हो गई। जबकि सेफ गेम खेलते हुए मोहन मरकाॅम ने महात्मा गाँधी को लेकर कालीचरण के वक्तव्यों को घोर आपत्तिजनक बताते हुए तत्काल उनकी गिरफ्तारी की मांग की। सम्भावित खतरे के मद्देनजर मुख्यमंत्री बघेल ब्रिगेड भी मामले को लेकर सक्रिय हो गयी। रायपुर रेन्ज के आईजी आनन्द छाबड़ा ने मोर्चा संभाला और इस संत की गिरफ्तारी का बीड़ा उठाया। उनके निर्देश पर रातो-रात छत्तीसगढ़ पुलिस मध्यप्रदेश के खजुराहो में दाखिल हो गयी। उसने प्रोटोकाॅल को दरकिनार कर कालीचरण को अपनी गिरफ्त मे ले लिया।

कालीचरण के गिरफ्त में होने की सूचना मिलते ही पुलिस के आलाधिकारियों और सरकार ने ऐसी खुशी जाहिर की जैसे ओसामा बिन लादेन को उन्होंने धर दबोचा हो। फिलहाल कालीचरण की गिरफ्तारी और उन पर दर्ज मामले को लेकर राजनीति गरमाई हुई है। बीजेपी इस मामले को लेकर कांग्रेस पर तीखा हमला बोल रही है। वहीं मुख्यमंत्री भुपेश बघेल बीजेपी से सवाल पूछ रहे है कि वो बताये कालीचरण के वक्तव्य का वो समर्थन कर रहे है क्या? इस वार-पलटवार के बीच इस तथ्य की भी चर्चा जोरो पर है कि मुख्यमंत्री बघेल ने काग्रेस आलाकमान के सामने अपने अंक बढ़ाने के लिए इस घटना को अन्जाम दिया है। उन्होने एक साधारण घटना को राजनैतिक रूप देकर तिल का ताड़ बनाने मे अपनी पूरी ताकत झोक दी। जबकि मामला बेहद सामान्य था। दरअसल यू-ट्यूब मे महात्मा गाँधी को लेकर कई तर्क-कु-तर्क एतिहासिक प्रमाणो के साथ मौजूद है। राजनीति में महात्मा गाँधी को लेकर तर्क वितर्क कोई नई बात नही है। कालीचरण से ज्यादा आपत्तिजनक बयान इसके पहले भी कई नेता जाहिर कर चूके है।

बीएसपी नेता मायावती हो या फिर वामसेफ के नेता मेश्राम या फिर अल्पसंख्यक समुदाय के नेता अरसफ मदनी, इनके आपत्तिजनक बयानो को लेकर किसी भी राज्य की कांग्रेस सरकार ने ‘‘चू’’ तक नहीं किया। लेकिन छत्तीसगढ़ मे अपने ही आयोजन मे कांग्रेस ने कालीचरण की नाटकीय गिरफ्तारी कर नये विवाद को जन्म दे दिया है। इस मामले को लेकर कांग्रेसी खुद एक दिवसीय मौन धरने पर बैठ गये जबकि धर्म संसद का आयोजन खुद कांग्रेस के लोगो ने किया था। आयोजको के खिलाफ कोई कार्यवाही न करते हुए कालीचरण को निशाने पर लेकर मुख्यमंत्री बघेल ने साधू संतो के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। हालाकि मुख्यमंत्री बघेल समर्थको की दलील है कि इस मामले का उनकी कुर्सी से कोई लेना-देना नही है। जब तक कांग्रेस अलाकमान चाहेगा वे तब तक इस कुर्सी पर काबिज रहेगें। उनके मुताबिक महात्मका गाँधी के प्रति बघेल के आदर भाव के चलते यह कार्यवाही की गई है।

उत्तर प्रदेश समेत आधा दर्जन राज्यो में होने वाले विधान सभा चूनाव में इस मामले की गूंज भी सुनाई दे, तो इस पर आश्चर्य नही होना चाहिए। छत्तीसगढ़ पुलिस ने कालीचरण की गिरफ्तारी को लेकर आखिर क्यों अंतराज्यीय प्रोटोकाॅल का पालन नही किया। यह भी चर्चा में है। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पुलिस द्वारा प्रोटोकाॅल का पालन नही करने को लेकर नाराजगी जाहिर की है। वही कांग्रेस सरकार ने त्वरित कार्यवाही के लिए आनन्द छाबड़ा और उनकी टीम की पीठ थप थपाई है। इस साहसिक कार्यवाही के लिए पुलिस कर्मियों को आउट आॅफ टर्न प्रमोशन देने की भी चर्चा शूरू हो गई है।

महात्मा गाँधी को आखिर कब मिला राष्ट्रपिता का दर्जा अब तक स्पष्ट नहीं: – मोहन दास करमचंद ‘गाँधी’ को राष्ट्रपिता के रूप में सम्बोधित किया जाता है। लेकिन राष्ट्रपिता की उपाधि उन्हें कब और किसने दी यह आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। केन्द्र में यूपीए की सरकार रही हो या फिर मौजूदा एनडीए, दोनों ही सरकार यह अधिकृत तौर पर नहीं बता पायी है कि महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि से कब नवाजा गया था। वाराणसी के कमलेश कुमार सिंह नामक एक शख्स ने केन्द्रीय ग्रहमंत्रालय से आरटीआई के तहत इसकी जनकारी मांगी थी लेकिन जवाब मे उन्हें साफ कर दिया गया कि आधिकारिक तौर पर महात्मा गाँधी कब राष्ट्रपिता बने इसका कोई लेखा जोखा ग्रह मंत्रालय के पास नहीं है। मंत्रालय की ओर से भेजे गये जवाब में एक लाईन में कहा गया था कि ‘‘आपके द्वारा मांगी गयी जानकारी के सम्बन्ध मे कोई विवरण मंत्रालय के पास उपलब्ध नहीं है।’’ हालाकि स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़े सेनानियांें और लेखको की पुस्तको का अध्ययन करने से पता चलता है कि आजादी के बाद 1947 में आयोजित एक प्रेस काॅन्फ्रेन्स मे सरोजनी नायडू ने गाँधी को राष्ट्रपिता कह कर पुकारा था। इसके उपरान्त से गाँधी राष्ट्रपिता के रूप में भी प्रचलित हो गये।

जूनियर बापू बनाम सीनियर बापूः- छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नन्द कुमार बघेल ब्रह्मणों और भगवान राम के बारे में कई बार आपत्तिजनक टिप्पणी कर चूके है। उनके बयानो से देश प्रदेश का सामाजिक माहौल भी बिगड़ा है। सालो से वे राम और ब्राह्मण दोनो ही के बारे में बिगड़े बोल बोलते रहे हैं। लेकिन इसी साल सितम्बर माह में मुख्यमंत्री बघेल ने पुलिस को निर्देश देकर उनके खिलाफ साधारण धाराओं के तहत रायपुर के डी0डी0 नगर थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। उन्हे संत कालीचरण की तर्ज पर गिरफ्तार नही किया गया बल्कि पुलिस हिरासत में आलाधिकारी उनके आगे नतमस्तक नजर आये। उनके खिलाफ न तो देशद्रोह की धारा लगाई गई और न ही अन्य मामलो को लेकर कोई दूसरा प्रकरण दर्ज किया गया। नन्द कुमार बघेल इस मामले में गिरफ्तार हुये और तीन-चार दिनों तक रायपुर सेन्ट्रल जेल में निरूद्ध भी रहे। उन्होने अपनी गिरफ्तारी के दौरान बयान दिया था कि वे जमानत नही लेगें। लेकिन जेल जाने के तीन चार दिनों के बाद ही उनकी ओर से जमानत ले ली गई। बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश के लखनऊ में उन्होने ब्राह्मणों के खिलाफ आपत्तिजनक बयान दिया था। इस राज्य में विधान सभा चूनाव के चलते उनका यह बयान कांग्रेस के गले की फाॅस बनता नजर आ रहा था। लिहाजा मामले को बिगड़ता देख भूपेश बघेल ने अपने पिता के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।

इसके बाद गोदी मीडिया के जरिये इसका खूब हो हल्ला किया गया कि मुख्यमंत्री बघेल ने कानून का पालन करते हुए अपने पिता को जेल भिजवाया था। राजनैतिक पण्डितो के मुताबिक उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणो ही नही बल्कि प्रियंका गाँधी को नन्द कुमार बघेल के बयानो से गहरा धक्का लगा था। इससे पहले की उनका यह बयान कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बनता, नन्द कुमार बघेल के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश प्रियंका गाँधी ब्रिगेड द्वारा दिये गये थे। इधर एक बार फिर ऐसी ही स्थिति छत्तीसगढ़ में उस समय निर्मित हुई जब सन्त कालीचरण ने धर्म संसद में महात्मा गाँधी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। कांग्रेस से जुडे़ लोगो के कार्यक्रम में नाथूराम गोडसे की वाहवाही और महात्मा गाँधी पर प्रतिकूल टिप्पणी मुख्यमंत्री बघेल के लिए एक नई मुसीबत बन कर टूटी थी।

उनके बचाव के लिए पार्टी ने कालीचरण को बलि का बकरा बना कर पेश कर दिया। महात्मा गाँधी राम के अनन्य भक्त थे। ब्राह्मणो के प्रति आदर भी कोटी-कोटी उनके भितर था। लेकिन जूनियर बापू के दोनो के प्रति बिगडे़ बोल को लेकर उनके खिलाफ कालीचरण जैसी कार्यवाही सिर्फ सपना बन कर रह गई। प्रदेश की चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता ममता शर्मा कहती है कि कालीचरण के मामले में सिर्फ राजनीति हो रही है। कांग्रेसी सरकार कानून की दुहाई दे रही है। जबकि नंदकुमार बघेल और संत कालीचरण का मामला एक जैसा है। लेकिन बघेल के खिलाफ देशद्रोह की धारा नही लगाई गई। उनके मुताबिक एक कानून के दो विधान साफ – साफ नजर आ रहे है।फिलहाल छत्तीसगढ़ का हाल बेहाल है। यहाँ संवैधानिक संकट के हालात दिनो दिन बत से बदतर होते जा रहे हैं। अघोषित इमजेन्सी के चलते हकीकत बया करने वाले पत्रकार जेल की हवा खा रहे है। जबकि कानून की धज्जियाँ उड़ाने वालो की पौ बारह है।