नई दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ में डीजीपी के पद पर नियुक्ति को लेकर घमासान है। प्रदेश के मौजूदा डीजीपी अशोक जुनेजा दो साल पहले वर्ष 2023 में रिटायर हो चुके है। उन्हें पहले पूर्ववर्ती भूपे सरकार ने और फिर मौजूदा मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने लगातार दूसरी बार एक्सटेंसन देकर उपकृत किया था। दो साल पूर्व 60 वर्ष की आयु पूर्ण कर रिटायर हो चुके जुनेजा की अब तीसरी बार भी ताजपोशी की तैयारी है। बताया जाता है कि मौजूदा डीजीपी को फिर एक्सटेंशन दिया जा रहा है, आने वाले किसी भी पल में सरकार के लिए कारगर डीजीपी को आम जनता पर थोपा जा सकता है। सिर्फ नौकरशाही ही नहीं आम जनता भी साय सरकार के फैसलों को देखकर हैरत में है।
दरअसल, प्रदेश के सबसे ज्यादा नाकामयाब डीजीपी के रूप में जुनेजा की कार्यप्रणाली को आंका जाता है। इसके बावजूद भी उनकी नियुक्ति, प्रदेश के उन जवाबदेह नौकरशाहों को मुँह चिढ़ा रही है, जिन्होंने आईपीएस बनने के बाद अपनी कर्तव्यनिष्ठा दिखाई और महकमे के इस सर्वोच्च पद पर आसीन होने का सपना संजोया था। राज्य में जुनेजा के बाद वरिष्ठता क्रम में आधा दर्जन वरिष्ठ अधिकारियों की लंबी फेहरिश्त है। उनकी योग्यता-अर्हता भी मौजूदा डीजीपी की तुलना में कम नहीं आंकी जा सकती। बावजूद इसके रिटायर अधिकारी को तीसरी बार मौका दिया जाना सवालों के घेरे में बताया जाता है।
छत्तीसगढ़ में डीजीपी की नियुक्ति को लेकर गहमा-गहमी है। इस पद के लिए कतारबद्ध कई वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष उस समय असहज स्थिति देखी जा रही है, जब उन्हें वरिष्ठता के बावजूद कुर्सी दौड़ से बाहर कर दिया गया है। सूत्र तस्दीक करते है कि मौजूदा डीजीपी के कार्यकाल खत्म होने से पूर्व उन्हें तीसरी बार भी इस पद पर आसीन रहने के लिए उच्च स्तरीय हरी झंडी मिल गई है। माना जा रहा है कि समीकरण यदि यथावत रहे तो एक बार फिर अशोक जुनेजा को डीजीपी बनाया रखा जा सकता है।
इस संबंध में अब उनका एक्सटेंशन आर्डर जल्द जारी होने का इंतज़ार किया जा रहा है। जबकि बेहतर सीआर और अन्य रिपोर्ट होने के बावजूद लगभग आधा दर्जन वरिष्ठ अफसर इस पद को लेकर अपना दावा ठोक रहे है। सूत्र तस्दीक करते है कि इस प्रतिस्पर्धा में जुनेजा अव्वल नंबर पर है। उन्हें दिल्ली से दम मिल रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय में सर्वोच्च पद से रिटायर और पूर्ववर्ती राज्य में हालिया राज्यपाल बनाये गए शख्स की गुड बुक में जुनेजा का नाम भी दर्ज बताया जाता है।
छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार के शुरूआती कार्यकाल में कानून व्यवस्था ख़राब होने की स्थिति के लिए डीजीपी जुनेजा को जिम्मेदार ठहरने वाले अफसरों की महकमे से लेकर नेता नगरी तक कोई कमी नहीं है। कवर्धा, बलौदाबाजार, अंबिकापुर समेत अन्य इलाकों में कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने की घटनाओं के पीछे मौजूदा डीजीपी की सुस्त कार्यप्रणाली को जिम्मेदार ठहराया गया था। यही नहीं भूपे राज में नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सली उन्मूलन अभियान ठप पड़ने और प्रभावी कार्यवाही से हाथ पीछे खींच लेने के कई प्रकरणों में डीजीपी जुनेजा सुर्ख़ियों में रहे है। जानकार बताते है कि बीते 5 वर्षों में केंद्रीय सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस के बीच समन्वय की भारी कमी देखी गई थी।
इसके चलते नक्सली हावी रहे थे। लेकिन केंद्र के ढृढ़ इरादे और प्रदेश की मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार की गंभीर रूचि लेने के बाद नक्सलवाद के मोर्चे पर सरकार हावी नजर आ रही है। बस्तर में नक्सलवाद की जड़ों पर प्रहार किया जा रहा है। जबकि भूपे राज में मौजूदा डीजीपी सुस्ती के साथ अपना कार्यालीन वक़्त गुजारने के लिए जाने-पहचाने जाते थे।
छत्तीसगढ़ में 15 हज़ार करोड़ के महादेव ऐप घोटाले, CGPSC और 2200 करोड़ के शराब घोटाले, 5 हज़ार करोड़ का चावल घोटाला, 700 करोड़ का कोल खनन परिवहन लेव्ही घोटाला समेत भ्रष्टाचार के दर्जनों मामले जुनेजा के डीजीपी बनने के बाद ही अंजाम दिए गए थे। इसमें PHQ में 13 करोड़ की घटिया बुलेट प्रूफ जैकेट तक सप्लाई कर दिए गए थे। इसके मुख्य सूत्रधार तत्कालीन सुपर सीएम अनिल टुटेजा को बताया जाता है।
केंद्र सरकार की डायल 112 योजना में ऊंची दरों पर ठेका दिए जाने के समीकरणों को लेकर भी जुनेजा की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में बताई जाती है। यह भी कहा जाता है कि जुनेजा का किसी पंजाबी लॉबी के तहत बीजेपी के खेमे में घनिष्ट गठजोड़ है। उन्हें इसका सीधा फायदा बीजेपी सरकार में भी मिल रहा है।
भूपे राज में अंजाम दिए गए तमाम घोटालों में पुलिस महानिदेशक की जिम्मेदारी तय करने के मामले में बीजेपी सरकार ने आखिर क्यों नरमी बरती? इसके भी अब मायने निकाले जाने लगे है। बहरहाल, 4 फरवरी 2025 से पूर्व राज्य में नए डीजीपी की नियुक्ति होंगी या नहीं ? इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। लामबंदी में जुटे कई कद्दावर नेताओं की दलील है कि दिल्ली दरबार में ही डीजीपी का फैसला होगा ?