
दिल्ली: 2020 के दिल्ली दंगे केस में शामिल होने के आरोप झेल रहे कार्यकर्ता शरजील इमाम, उमर खालिद और अन्य की ज़मानत याचिकाओं पर बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायमूर्ति नवीन चावला और शैलिंदर कौर की पीठ ने अभियोजन और बचाव पक्ष की लंबी दलीलें सुनने के बाद यह फैसला सुरक्षित किया।
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन ज़मानत याचिकाओं का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह स्वतःस्फूर्त दंगे नहीं थे, बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर बदनाम करने के लिए रची गई साजिश का हिस्सा थे। उन्होंने कहा, “अगर आप देश के खिलाफ काम करते हैं, तो आपको बरी होने तक जेल में ही रहना चाहिए।”
शरजील इमाम के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल का उमर खालिद या अन्य सह-आरोपियों से कोई सीधा संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि न तो शरजील के भाषणों में और न ही व्हाट्सएप चैट में किसी तरह की हिंसा भड़काने की बात की गई।
2020 दिल्ली दंगे केस में उमर खालिद, इमाम, खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा सहित अन्य पर यूएपीए और आईपीसी की गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज है। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से अधिक घायल हुए थे। यह हिंसा नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़की थी।
अभियोजन का कहना है कि आरोपी जानबूझकर धार्मिक भावनाएं भड़का रहे थे और उनके भाषणों में कश्मीर, बाबरी मस्जिद और तीन तलाक जैसे मुद्दों का डर फैलाने के लिए इस्तेमाल किया गया। पुलिस ने ज़मानत का विरोध करते हुए कहा कि यह कोई सामान्य मामला नहीं, बल्कि एक “रोगात्मक साजिश” का हिस्सा है।