दिल्ली वेब डेस्क / दो मार्च की सुबह ठीक छह बजे पवन जल्लाद ने निर्भया के चारों आरोपियों को एक साथ फांसी के फंदे पर लटका कर लीवर खींचा था | तीन मार्च को होने वाली फांसी की रिहल्सल डमी पुतलों को फांसी के तख्ते पर लटका कर पूरी की गई थी | पवन जल्लाद ने हकीकत से रूबरू होने के लिए सेंट्रल जेल में डेरा डाला हुआ था | लेकिन दोपहर बाद जेल के अधिकारियों ने जब उससे कहा , कि पवन अभी और इंतजार करना पड़ेगा ? वो हैरत में पड़ गया | उसने फौरन सवाल दाग दिया कि आखिर मौत को लेकर इतनी तारीख पे तारीख क्यों पड़ रही है? ऐसा क्या हुआ सोमवार को जो तीसरी बार फांसी की तारीख टालनी पड़ी? और सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या चौथी तारीख या चौथा डेथ वॉरंट भी आखिरी होगा इसका फैसला कब और कैसे होगा? पवन के सवालों को सुनने के बाद जेल अधिकारी भी इस पहली को सुलझाने-बुझाने में जुट गए |
दरअसल निर्भया के गुनहगारों को पहली बार फांसी की सजा 22 जनवरी 2020 को मुकर्रर की गई थी | जबकि दूसरी बार 1 फरवरी 2020 को और इसकी हैट्रिक 3 मार्च 2020 को पूरी मुस्तैदी के साथ हुई | अब चौथी तारीख का इंतजार पवन जल्लाद और निर्भया की मां से लेकर करोड़ों की तादाद में उन लोगों को है | जो ऐसी घटनाओं को लेकर कड़े क़ानूनी प्रावधानों की मांग कर रहे है | तीसरी बार फिर से पटियाला हाऊस कोर्ट के “ये अदालत अगले आदेश तक चारों की फांसी पर रोक लगाती है.” फरमान को सुनकर लोग हैरत में है |
इस ताजा फैसले के बाद लोग कहने लगे है कि कोई और फांसी का मज़ाक बनाए तो कानून उसे सज़ा देती है | पर खुद कानून ही मौत का तमाशा बना दे तो किस अदालत से फरियाद की जाए | निर्भया की मां यही सवाल कानून की जानकारी रखने वालों से कर रही थी | दरअसल कानून की किसी किताब में सज़ा के लिए एक बार से ज़्यादा मौत का प्रावधान ही नहीं है | लेकिन निर्भया के मामले में उसी कानून की कमज़ोरिया लोगों के सामने आ रही है | आईपीसी के इस कानून ने निर्भया के चारों गुनहगारों को अब तक तीन बार सूली पर लटकाने का फरमान जारी किया है | चौबीसों घंटे हर पल मौत के साये में जीने के बावजूद उसके गुनहगारों के हिस्से में अब तक मौत नहीं आई है |
जब घिनौने अपराध को लेकर मौत को भी तारीख पे तारीख मिलने लगी | तब यह सवाल उठना लाजमी है कि इन चारों की फांसी की सजा को कानूनी तमाशा किसने बनाया ? पड़ताल करने पर इसका जवाब कानून की इन्हीं कमज़ोरियों में मिला | दरअसल जब कानूनी प्रावधानों में स्पष्ट है कि फांसी की सज़ा होने के बावजूद क्यूरेटिव से लेकर दया याचिका और फिर दया याचिका को भी चुनौती देने का अधिकार गुनहगारों के पास है , तो फिर अदालते इतनी बार डेथ वारंट जारी करने की जहमत क्यों उठाती है ? इसके बजाए क़ानूनी दांवपेचों के आधार पर डेथ वारंट जारी क्यों नहीं किया जाता | इसके चलते कम से कम फांसी की सजा तमाशा बनने से तो बच जाती | फ़िलहाल निर्भया के गुनहगारों के खिलाफ चौथी बार डेथ वारंट कब जारी होगा इस ओर देश की निगाहें लगी हुई है |