दिल्ली / रायपुर: छत्तीसगढ़ के 2 हजार करोड़ के शराब घोटाले में अभी तक बमुश्किल 180 करोड़ की संपत्ति ही जब्त हो पाई है। सरकारी तिजोरी पर मारे गए हाथ की 1820 करोड़ की जब्ती के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियां हाथ-पांव मार रही है। इस सिलसिले में मुख्य अभियुक्त डॉ. एपी त्रिपाठी उसकी पत्नी डॉ.मंजुला त्रिपाठी से ED की पूछताछ जारी है। अरुणपति त्रिपाठी पूछताछ से बचने के लिए कई तिकड़म आजमा रहा है,इसके लिए कई मौको पर अपनी याददाश्त तक खो जाने का ढोंग कर रहा है। अब उसकी पत्नी डॉ. मंजुला त्रिपाठी भी अपने पति की तर्ज पर गिरफ़्तारी की कगार पर है।
इस दंपत्ति की हराम की कमाई भी अटैच हो रही है। यह रकम,उन गरीब जनता के हितो पर खर्च की जानी थी,जिसे राज्य सरकार और मुख्यमंत्री पीना-पिलाना सिखा रहे है। शराब घोटाले की मार झेल रहे आबकारी विभाग की हालत खस्ता है।
ईडी ने आज अदालत में आबकारी विभाग के विशेष सचिव अरुण पति त्रिपाठी और त्रिलोक सिंह ढिल्लन उर्फ पप्पू ढिल्लन को पेश किया। दोनों आरोपियों की आज 23 मई को रिमांड समाप्त होने पर जमानत याचिका दाखिल होने की तैयारी चल ही रही थी की ED ने बचाव पक्ष के अरमानों पर पानी फेर दिया। कोर्ट में लंबी बहस के बाद दोनों आरोपियों की ED रिमांड क्रमशः 3 और 2 दिनों के लिए बढ़ा दी गई है।
छत्तीसगढ़ सरकार के कर्णधारो की मधुशाला गांव-कस्बो में लोगो को नजर आ रही है। शराब के सेवन से उत्पन होने वाली बीमारियों के समुचित इलाज की जवाबदारी भी छत्तीसगढ़ शासन के कंधो पर है, कई पीड़ितों का सरकारी अस्पतालों में ठीक ढग से इलाज तक नहीं हो पा रहा है। राज्य में शराब के सरकारी धंधे में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के शामिल हो जाने के बाद राज्य की पहचान “दारु बाज प्रदेश” के रूप में बन गई है।
देश में मात्र ढाई करोड़ की आबादी वाला ये राज्य,छत्तीसगढ़, शराब की खपत और बिक्री के मामले में एशिया महादीप के भारत गणराज्य का अव्वल राज्य है। यहाँ सर्वाधिक लोग अचानक शराब का सेवन करने लगे है,मौजूदा पौने पांच सालो के कार्यकाल में मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली किसी मंझे हुए सरकारी शराब ठेकेदार के रूप में तब्दील हो गई है।
दरअसल,आबकारी घोटाला बता रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी सरकार राज्य की एक बड़ी आबादी को नशे की लत में डालकर सिर्फ लाभ ही लाभ कमा रही है। वही दूसरी ओर पीड़ित घर-परिवारों में सामाजिक बुराई को लेकर रोजाना कलह हो रहा है,असली-नकली शराब पीने से कई घरो के चिराग बुझ रहे है,श्रमवीरो की कार्य की शक्ति प्रभावित,कम हो रही है। इस पर गौर किए बगैर ही राज्य सरकार और मुख्यमंत्री की टोली जनता को शराब पीने-पिलाने के लिए प्रवृत्त कर रही है।
छत्तीसगढ़ में लेबर इंडेक्स से जुडी रिसर्च बताती है कि शराब के अत्यधिक प्रचलन से लोगो की श्रम शक्ति जहां घटी है,वही राज्य की बड़ी आबादी भी दिनों-दिन निठठ्ली होती जा रही है। आर्थिक तंत्र कमजोर होने से पीड़ित परिवारों की राजनैतिक दलों पर आत्मनिर्भरता भी लगातार बढ़ती जा रही है।
राज्य में चुनाव के दौरान मुफ्त की रेवड़ियां पाने के चक्कर में इस आबादी का बड़ा हिस्सा बगैर सोचे समझे अपने मताधिकारों का उपयोग कर रहा है। नतीजतन गांव की आबादी आत्मनिर्भरता के अवसरों से वंचित होते हुए,झूठे वादे करने वाले नेताओ के जाल में उलझ कर अपना वर्तमान नष्ट कर रहे है।
सामाजिक चिंतक,शराब के कुप्रभाव और प्रचलन पर चिंता जाहिर करते हुए अंदेशा भी जाहिर कर रहे है कि शराबबंदी लागू होने से ज्यादातर कामगार-श्रमिक अपने घर-परिवार और खेत-खलिहानों तक ही सीमित हो जाएंगे। उनके मुताबिक राज्य सरकार अपनी अलग-अलग योजनाओं के जरिए जन्म से लेकर मृत्यु तक मुफ्त और मुफ्त,रेवड़ियों से भरी योजनाए संचालित कर रही है। इसके लाभान्वितों और कई हितग्राहियो को घर बैठे योजनाओ का लाभ मिल रहा है।
वही दूसरी ओर शराब पीने की लत के चलते कामगारों का एक बड़ा वर्ग रोजगार की तलाश में कार्य करता है,मेहनत-मजदूरी के बाद मिलने वाली रोजी के रूप में नगद रकम का बड़ा हिस्सा ऐसे लोगो द्वारा शराब पीने-पिलाने में उड़ा दिया जा रहा है।
चिंतक बता रहे है कि शराब पीने वाली बड़ी आबादी की सामाजिक जिम्मेदारी,जैसे मुफ्त शिक्षा,स्वास्थ्य,अनाज,रोजगार,रोटी कपड़ा और मकान,मुख्यमंत्री विवाह योजना में बतौर गिफ्ट,दहेज़ का सामान तक मुहैया करा देने से लोगो के भीतर जहां श्रम शक्ति का हास हुआ है,वही नौजवान पीढ़ी में जिम्मेदारी के एहसास की भावना का विकास भी बाधित हुआ है। मुफ्त की रेवड़ियों के चलते देश-प्रदेश के टेक्स पेयर की बड़ी राशि लोक कल्याण के नाम पर मुफ्त में बहाई जा रही है।
इसके लिए राजनीति से ज्यादा वो अफसर घातक साबित हो रहे है,जो जनता की भलाई के कार्य के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा तैनात किए जा रहे है,लेकिन उनकी कार्यप्रणाली बताती है कि वे लोक सेवक के रूप में रक्षक नहीं बल्कि भक्षक है।
छत्तीसगढ़ में आबकारी घोटाले की जद में आए त्रिपाठी दंपत्ति की दास्तान भी मुख्यमंत्री बघेल से मिलती-जुलती है,दोनों पेशे से डॉक्टर नहीं है,लेकिन प्राइवेट यूनिवर्सिटी ने दोनों को डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा है। राज्य में 3 नग डॉक्टरेट की उपाधि, देश प्रदेश में सुर्खिया बटोर रही है,ये तीनो ही महाशय शराब कारोबार के महारथी बताए जाते है।
इनमे, जूनियर डॉक्टर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ब्लैक मनी उत्पादन करने वाले आबकारी अस्पताल के डायरेक्टर बन गए। दुर्ग में आयोजित हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह और आठवें विश्वविद्यालय स्थापना दिवस समारोह की ख़ुशी में उच्चशिक्षा के कर्णधारो ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को डॉक्टरेड की मानक उपाधि से नवाजा था।
जबकि इस दुर्घटना से पूर्व दारू बेचने वाले दंपत्ति,अरुणपति त्रिपाठी और उसकी पत्नी मंजुला त्रिपाठी को उनके अनेक प्रकार के शोध पर अलौकिक ज्ञान का प्रकाश फैलने के चलते बिलासपुर की डॉ,सीवी रमन यूनिवर्सिटी द्वारा,डॉक्टरेड की उपाधि से नवाजा गया था। बताते है कि सीनियर डॉक्टर दंपत्ति त्रिपाठी,जूनियर डॉक्टर मुख्यमंत्री बघेल का डंडा-झंडा थाम कर चौबीस घंटे सिर्फ नोट गिन रहे थे।
दुर्ग के हेमचंद यादव यूनिवर्सिटी का दावा है कि डॉक्टरेट की यह उपाधि मुख्यमंत्री को पर्यावरण संरक्षण और समाज कल्याण में बेहतर काम करने को लेकर दी गई है। इस संस्थान के कर्णधारों का आकलन अपनी जगह है,लेकिन डॉक्टर सीवी रमन यूनिवर्सिटी बिलासपुर के कर्णधारों का हैरतअंगेज कारनामा देख सुनकर आप भी दांतो तले ऊँगली दबा लेंगे।
इस दंपत्ति की शिक्षा-दीक्षा और प्रखंड विद्वता से रूबरू होने से पूर्व उनका कारोबार भी जान लीजिए। मंजुला त्रिपाठी किसी सरकारी विद्यालय में नौकरी करने के उपरांत लेक्चरर के पद से मुक्त हुई है।
जबकि उनके पति अरुणपति त्रिपाठी टेलीकॉम सर्विस के अधिकारी थे। उन्हें तत्कालीन रमन सिंह सरकार के दौर में डेप्यूटेशन पर वाणिज्यिक कर विभाग में नियुक्त किया गया था। नंबर एक और नंबर दो की रकम का हिसाब-किताब चोखे ढंग से रखने के चलते त्रिपाठी,अपने विभाग में अच्छे खासे ढंग से जाने-पहचाने जाते है। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार ने तत्कालीन सचिव,समुंदर सिंह को ठिकाने लगाकर,अरुणपति त्रिपाठी को आबकारी विभाग के विशेष सचिव के पद पर काबिज कर दिया।
बीजेपी सरकार के कार्यकाल में नियुक्त इस अधिकारी पर भी मुख्यमंत्री बघेल ने अपनी कृपा बनाए रखी। नान घोटाले के कुख्यात आरोपी अनिल टुटेजा की तर्ज पर मुख्यमंत्री ने इस दागी अफसर को भी तमाम मलाईदार महकमों की जवाबदारी भी सौंप दी। आबकारी विभाग के सचिव के अतिरिक्त उन्हें छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर की जिम्मेदारी तक सौंपी गई थी। ये एजेंसी प्रदेश में शराब के वितरण और बिक्री का नेटवर्क संभालती है।
अदालत में ED के वकील सौरभ पांडेय ने विशेष न्यायाधीश को बताया कि त्रिपाठी भ्रष्टाचार के पितामह है, पूरा अवैध कारोबार और घोटाला इन्ही की निगरानी में अंजाम दिया जा रहा था। सरकारी विभाग के बड़े अफसर सचिव होने के नाते शराब सिंडिकेट को हर मुमकिन फायदा इनके द्वारा पहुंचाया गया। अधिवक्ता सौरभ पांडे ने कोर्ट को बताया कि एपी त्रिपाठी ने ऐसा सिस्टम बनाया था कि विदेशी मदिरा तीन लोगो के एकाधिकार में थी।
विदेशी शराब खरीदने के बाद ये तीनो लोग अपने हिसाब से उसकी कीमत सेट किया करते थे।विदेशी शराब कंपनियों को भुगतान करने के बाद शेष बची रकम कमीशनखोरी के तहत सरकारी और प्राइवेट पार्टनर के बीच इस रकम का बंटवारा होता था। इसका बड़ा हिस्सा त्रिपाठी दंपत्ति के पास जाता था।
डॉ. त्रिपाठी की इस दास्तान से मेल खाती उनकी भ्रष्टाचार में लिप्त पत्नी डॉ. मंजुला त्रिपाठी की कहानी भी कम रोचक नहीं है। ED के अधिवक्ता सौरभ पांडे ने अदालत को बताया कि भ्रष्टाचार में भी अरुणपति त्रिपाठी ने पति धर्म भी निभाया था। उन्होंने पत्नी मंजुला के नाम पर एक नई कंपनी स्थापित की। इसी कंपनी ने शराब की बोतलों में चस्पा होने वाला होलोग्राम तैयार किया था। इसका भुगतान सरकार के द्वारा उनकी पत्नी के नाम रजिस्टर्ड कंपनी को किया गया था। आबकारी घोटाले को अंजाम देने में यही होलोग्राम रीढ़ की हड्डी साबित हुआ है।
अब जान लीजिए,त्रिपाठी दंपत्ति की विद्वता के बारे में,चौबीस घंटे दारु बेचते-बेचते इस दंपत्ति को कब PHD हासिल हो गई,इन्हे ही नहीं पता। बताते है कि विदेशी दारू की ऊँची कीमतों की तर्ज पर बाजार में PHD की डिग्री भी गली-मोहल्लों के पान ठेलो बिक रही है।
उनकी कीमतों का निर्धारण भी शोधकर्ता की शैक्षणिक क्षमता से नहीं बल्कि गुलाबी-गुलाबी, 2 हजार के नोटों से हो रहा है। शिक्षा का धंधा करने वाले कलयुगी चाणक्य घर बैठे,शराब की डिलीवरी की तर्ज पर PHD की डिग्री सौंप रहे है। दिलचस्प बात यह है कि सरकारी संस्थानों में प्राइवेट यूनिवर्सिटी की डॉक्टरेट की डिग्री का मूल्यांकन भी समान सेवा शर्तो के अनुरूप हो रहा है।
जानकारी के मुताबिक अरुण पति त्रिपाठी, विशेष सचिव, छत्तीसगढ़ शासन, आबकारी विभाग तथा राज्य शासन के सार्वजनिक उपक्रम छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड के प्रबंध संचालक को उनके द्वारा छत्तीसगढ़ के दूरसंचार उद्योग में ग्राहक प्रतिधारण से संबंधित विषय पर किए गये शोध पर डॉ. सी.वी. रमन यूनिवर्सिटी बिलासपुर के द्वारा पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई है।
यह पीएचडी डॉ. विवेक बाजपेयी, प्रोफेसर डॉ. सी. वी. रमन यूनिवर्सिटी बिलासपुर तथा डॉ. मनोज शर्मा, प्राचार्य, श्री शंकराचार्य इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, रायपुर के मार्गदर्शन में पूरी कराई गई है, जबकि दारू बेचने वाले त्रिपाठी के द्वारा कभी भी ना तो मौके का रुख किया गया और ना ही वे गाइड को पहचानते है।
दावा किया जा रहा है कि प्रदेश में दूरसंचार सेवाओं के प्रति ग्राहकों की धारणा, सार्वजनिक और निजी दूरसंचार सेवाओं के बीच ग्राहक की धारणा, दूरसंचार सेवाओं के प्रति ग्राहकों की संतुष्टि के कारक, सार्वजनिक और निजी दूरसंचार सेवाओं के बीच ग्राहकों की संतुष्टि, दूरसंचार सेवाओं के प्रति प्रतिधारण के कारक, सार्वजनिक और निजी दूरसंचार सेवाओं के बीच ग्राहक प्रतिधारण और दूरसंचार बाजार में कंपनियों को ग्राहकों को बनाए रखने के लिए सुझावात्मक उपाय सुझाते हुए शोध किया था। इसी के बाद एपी त्रिपाठी को पीएचडी प्रदान की गई हैं।
उधर डिग्री दानवीरो ने श्रीमती मंजुला त्रिपाठी, पूर्व वरिष्ठ व्याख्याता, गणित, पॉलीटेक्निक दुर्ग, को उनके द्वारा “Study Of Fixed-Point Theorems With Applications To Complex Valued B-Metric Spaces” विषय पर किए गये शोध पर भी हाथो-हाथ डॉक्टर बना दिया। बताते है कि डॉ सी. वी. रमन यूनिवर्सिटी बिलासपुर द्वारा उन्हें भी पीएचडी की उपाधि तोहफे में प्रदान की गई है।
जानकारी के मुताबिक कठिन परिश्रम कर श्रीमती त्रिपाठी ने यह पीएचडी की उपाधि डॉ. आर. पी. दूबे कुलपति, डॉ. सी. वी. रमन यूनिवर्सिटी बिलासपुर, डॉ. ए. के.दुबे, एसोसिएट प्रोफेसर, भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दुर्ग के मार्गदर्शन में संपन्न की। इसके साथ ही शिक्षा का भविष्य गढ़ने वाले कर्णधारो ने ना जाने कितने नौजवानो का वर्तमान चौपट कर दिया। रिटायरमेंट की उम्र में त्रिपाठी दंपत्ति का डॉक्टर बनना प्रदेश के हुनरमंद मुख्यमंत्री डॉ. भूपेश बघेल को मुँह चिढ़ा रहा है।
जानकार बताते है कि टेलीफोन विभाग से त्रिपाठी का नाता टूटे करीब 10 साल बीत चुके है,इस विभाग में कार्यरत रहते त्रिपाठी ने कभी भी शोध करने की मंशा तक जाहिर नहीं की,ना ही काम से उन्हें कभी फुर्सत ही मिल पाई थी। यहां भी राज्य सरकार के महत्वपूर्ण पद पर तैनात रहने से त्रिपाठी आए दिन दारु दुकानों के चक्कर लगाता रहा। कभी चखना खाता रहा,तो कभी मनी लॉन्ड्रिंग में व्यस्त रहा।
सूत्र बताते है कि रिटायरमेंट से पूर्व धन कमाने की ललक में जुगाड़ जंतर कर त्रिपाठी, डेप्युटेशन पर केंद्र सरकार के उपक्रम से राज्य सरकार की मशीनरी में फिट हो गया। उसने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी अपने सांचे में ढाल लिया। एक ओर डेप्युटेशन के कायदे कानूनों की धज्जियां उड़ते रही,वही त्रिपाठी अपने मूल विभाग में दोबारा पलट कर नहीं लौटा।
उसने दिन दूनी और रात चौगुनी कमाई कर उसका बड़ा हिस्सा विदेशो में ठिकाने लगा दिया। इसके लिए त्रिपाठी दंपत्ति ने अपनी औलादो को भी विदेशो में भेज दिया। मनी लॉन्ड्रिंग इस दंपत्ति का मुख्य धंधा बन गया।
छत्तीसगढ़ और झारखण्ड शासन के बैनर तले शराब का कारोबार इतना फला फूला की सालाना करीब 20 हजार करोड़ की उगाही का लक्ष्य अपने चरम पर पहुँच गया था। छत्तीसगढ़ सरकार की पुलिस और अन्य एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे बैठे रही, जबकि केंद्र सरकार की ED ने 2 हजार करोड़ के सबूत उजागर कर दिए। अभी तक मात्र 180 करोड़ की संपत्ति आरोपियों से अटैच की गई है। जबकि शेष रकम की वसूली के केंद्रीय प्रयास जारी है।