“राज दरबारी”, पढ़िए छत्तीसगढ़ के राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों की खोज परख खबर, व्यंग्यात्मक शैली में, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार ‘राज’ की कलम से, व्यंग-लेख का मकसद किसी की भी मानहानि नहीं बल्कि कार्यप्रणाली का इज़हार मात्र है… (इस कॉलम के लिए संपादक की सहमति आवश्यक नहीं, यह लेखक के निजी विचार भी हो सकते है)

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रायपुर से सटे खरोरा में 700 एकड़ जमीन पर ‘हीरा’ और उसका ग्रुप, जमीन घोटाले की ओर, प्रशासन के बढ़ते कदम….

रायपुर से सटे बलौदाबाजार के खरोरा इलाके की लगभग 700 एकड़ सरकारी जमीन पर जल्द ही हीरा और उसके औद्योगिक ग्रुप का कब्ज़ा हो जायेगा। इसकी कवायत जोरो पर बताई जा रही है। जानकारों के मुताबिक खरोरा ग्राम पंचायत इस बेशकीमती सरकारी जमीन की बंदरबांट से खासी नाराज है। एक जानकारी के मुताबिक आवंटन प्रक्रिया की मुहीम में शामिल की गई जमीन का बड़ा हिस्सा कृषि विभाग का है, जबकि शेष वन भूमि बताई जाती है। ऐसी स्थिति में अचानक अधिकारीयों ने ग्राम पंचायत की भूमिका को दरकिनार कर दिया है। खरोरा ग्राम पंचायत के मुताबिक जन सुनवाई की कार्यवाही हो चुकी है, ग्रामीणों ने सरकारी जमीन आवंटन का विरोध किया था।ग्राम पंचायत भी इसके पक्ष में नहीं है, जबकि खसरा रकबा नंबर 646/647 एवं 2020/21/22 समेत कुल 5 अलग-अलग हिस्सों की जमीन आवंटन प्रक्रिया बगैर पंचायत को विश्वास में लिए शुरू कर दी गई है। राज्य में सरकारी जमीनों की बंदरबांट के खिलाफ बीजेपी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। वरिष्ठ नेता धरमलाल कौशिक ने जमीन आवंटन मामलों को सरकारी संपत्ति की लूट करार देकर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के फैसलों को अदालत में चुनौती दी थी। इस घटनाक्रम को बीते चंद माह ही बीत पाए थे कि ग्राम पंचायत खरोरा में एक औद्योगिक घराने को जमीन आवंटन की बुनियाद रख दी गई थी। जन सुनवाई स्थगित हुए पूरा डेढ़ साल बीत चूका है, लेकिन अचानक एक बार फिर हीरा और उसके ग्रुप को जमीन आवंटन की सुगबुगाहट तेज हो गई है।

डीजीपी बनाम पुलिसिंग सुधार पैमाना

छत्तीसगढ़ में डीजीपी के पद को लेकर जारी रस्साकसी नए मोड़ में है। केंद्र सरकार ने मौजूदा प्रभारी डीजीपी अरुण देव गौतम और हिमांशु गुप्ता को डीजीपी के पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार माना है। बताते है कि बगैर किसी ठोस कारण के पवन देव और जीपी सिंह का पत्ता साफ़ कर दिया गया है। जबकि इन दोनों अधिकारियों का नाम भी पैनल में शुमार था। उनके नाम पर मुहर ना लगने का मामला भी अब राजनैतिक चश्मे से जांचा-परखा जाने लगा है। सूत्र तस्दीक करते है कि सेवानिवृत होने से पूर्व, मौजूदा मुख्य सचिव महोदय बड़ा खेला कर गए है। सरकार और मुख्यमंत्री की मंशा जाहिर करने के बाद डीजीपी पैनल में कैंची चलाये जाने की जानकारी सामने आई है। फ़िलहाल, केंद्र से मंजूरी मिलने के बाद प्रभारी डीजीपी अरुण देव गौतम को स्थाई डीजीपी के पद पर आसीन करने की तैयारी परवान चढ़ रही है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में पुलिस की गिरती साख और अपराधियों के बुलंद हौसलों को लेकर राजनैतिक गलियारों में माथापच्ची जोरो पर है। प्रभारी डीजीपी के कार्यकाल को लेकर विचार मंथन जारी है, स्थाई डीजीपी के रूप में उनकी सेवाएं कितनी यादगार रहेंगी ? यह तो वक़्त ही बताएगा। लेकिन डीजीपी के पद पर गौतम के स्थाई आर्डर आने से पूर्व पुलिस महकमे में वीकली ऑफ (साप्ताहिक छुट्टी) को लेकर घमासान छिड़ा है। पुलिस कर्मियों की साप्ताहिक छुट्टी रद्द किये जाने का फरमान जारी हो गया है। बताते है कि पहले ही यह आदेश पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया था। लेकिन अब इसके रद्द होने से फिर पुलिसिंग पुराने दौर में लौट चली है।

पूर्व मुख्यमंत्री बघेल अब कभी नहीं बन पाएंगे दंडकारण्य देश के प्रधानमंत्री

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की कमर टूट चुकी है। बीजेपी के नेता फूले नहीं समां रहे है, उनकी बांछे खिल गई है। प्रदेश की 40 साल पुरानी समस्या पर प्रभावी अंकुश लग चूका है। देश के लगभग दो दर्जन राज्यों में भी छत्तीसगढ़ की तर्ज पर नक्सलवाद का सफाया सुनिश्चित माना जा रहा है। इस बीच कांग्रेस पार्टी के भीतर उग आये अल्ट्रा लेफ्टिस्ट विंग के गलियारों में मातम पसरा है। उन्हें अब पूर्व मुख्यमंत्री का भविष्य अंधकार मय नजर आने लगा है। दरअसल केंद्र सरकार ने तमाम बड़े नक्सली नेताओं और उनके ठिकानों को नेस्तनाबूत कर दिया है। ताजा जानकारी के मुताबिक देश में नक्सलवाद का सफाया होने से नक्सली समर्थक देश दंडकारण्य का अस्तित्व भी अब संकटों के दौर से गुजर रहा है।

पशुपति से लेकर तिरुपति तक का कॉरिडोर रेड कॉरपेट के रूप में जाना-पहचाना जाता था। इस हिस्से को दंडकारण्य देश का नाम दिया गया था। नक्सली संगठन इस नए देश के गठन में जुटे थे। राजनीति के जानकार तस्दीक करते है कि इस देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल ने खूब हाथ-पांव मारे थे। कई कुख्यात नक्सलियों और उनके संगठनों को बढ़ावा दिया गया था। लेकिन केंद्र सरकार ने अब देश की विभाजनकारी शक्तियों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। इसके चलते इस नए देश दंडकारण्य के अस्तित्व में आने के पहले ही उसका भी सफाया हो गया है। ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी, अब बघेल का नाम इस नए देश की पीएम इन वेटिंग वाली लिस्ट में कालातीत माना जा रहा है।

भ्रष्टाचार के बादशाह दागी पूर्व मंत्री अकबर की बीजेपी शासन में भी मौजा ही मौजा

छत्तीसगढ़ में शासन बीजेपी का है, यहाँ बांग्लादेशी, पाकिस्तानी और रोहिंग्याओं की जमकर खोज खबर ली जा रही है। लेकिन सत्ता के गलियारों में चर्चा पूर्व मंत्री अबकर के मौजा ही मौजा की है। बालोद में एक शिक्षक की आत्महत्या मामले में नामजद पूर्व मंत्री अकबर की गिरफ्तारी को लेकर पहले तो प्रदेश के गृहमंत्रालय के हाथ-पांव फूल गए, लेकिन अब सरकार के भी कदम ठोस हो चुके है। ये कदम उन ठिकानों की ओर नहीं बढ़ पाते जहाँ पूर्व मंत्री अकबर और उनका कुनबा गतिमान है। मसलन, NRDA में करोड़ों के भ्रष्टाचार की जांच को लेकर सरकार के जिम्मेदार अधिकारियों को सांप सूंघ गया है, पूर्व मंत्री अकबर के भाई की कंपनी के करीब 300 करोड़ के ठेके बीजेपी सरकार ने रद्द कर दिए थे। लेकिन जिस तेजी से NRDA में ठेके रद्द किये गए, उसी तेजी से CSIDC में भ्रष्टाचार के नए दरवाजे खोल दिए गए।

बताते है कि NRDA ने ठेकेदार अजगर से करीब 50 करोड़ की जुर्माने की रकम वसूली का मामला रफा-दफा कर दिया है। जबकि नई राजधानी क्षेत्र के विकास कार्यों में कागजी घोड़े दौड़ा कर अरबों की सरकारी रकम डकारे जाने के मामले में अब तक कोई जांच ही नहीं शुरू की है। अलबत्ता CSIDC में नए ठेकों की सेटिंग के लिए निविदा-टेंडर में छेड़छाड़ का दौर जारी है। बताते है कि बादशाह अकबर की हुकूमत यहाँ भी कायम है। यही नहीं छत्तीसगढ़ में पाकिस्तानी संस्था दावते इस्लामी को सरकारी जमीन आवंटित किये जाने के मामले में भी पूर्व मुख्यमंत्री अकबर को क्लीन चिट दिए जाने का प्रकरण कम हैरतअंगेज नहीं बताया जा रहा है। पाकिस्तानी मूल के धार्मिक और सामाजिक संगठन को रायपुर में सरकारी जमीन दिए जाने के मामले ने तूल पकड़ा तो तत्कालीन प्रशासन ने दो अधिकारियों के खिलाफ नोटिस जारी किया था। प्रशासन ने साफ किया था कि संस्था का आवेदन रद्द कर दिया गया है। लेकिन देश के दुश्मनों के लिए रायपुर में मुफीद जमीन मुहैया कराने का मामला ISI की प्रदेश में जमती जड़ों की ओर इशारा कर रहा है। जमीन आवंटन के मामले में भी बादशाह अकबर बड़े खिलाड़ी बताये जाते है। फ़िलहाल, पूर्व मंत्री अकबर और उसके कुनबे के प्रति राज्य की बीजेपी सरकार की नरमी जनता से छिपाये नहीं छिप रही है।