रिपोर्टर – गेंदलाल शुक्ल
कोरबा / देश के कोरोना संक्रमित जिलों के रेड जोन में शामिल छत्तीसगढ़ का कोरबा बीते तीन दिनों से मिल रही राहत भरी खबरों से उत्साहित है। जिले के 28 कोरोना संक्रमित मरीजों में से 15 लोग स्वस्थ होकर घर लौट आये हैं। अब केवल 13 मरीज एम्स रायपुर में उपचार के लिए शेष रह गए हैं। जिस रफ्तार से कोरबा जिले के मरीज स्वस्थ हो रहे हैं, उससे सहज भरोसा हो जाता है, कि 20 अप्रैल तक बाकी लोग भी स्वास्थ्य लाभ लेकर अपने अपने घर पहुंच जाएंगे। लेकिन जानकारों का मानें तो कोरबा वासियों को अभी ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए। वास्तव में कोरबा अभी कोरोना के खतरे से मुक्त नहीं हुआ है, बल्कि अभी भी बारूद के ढेर पर बैठा है। बीती रात तीन नए पाजिटिव्ह केस मिलने से इसकी पुष्टि होती है।
बीते 30 मार्च को कोरबा में पहला कोरोना पीड़ित मिला था। वह लन्दन रिटर्न युवक एक हप्ते में स्वस्थ होकर एम्स से वापस आ गया, लेकिन अभी भी होम आइसोलेट है। युवक के सम्पर्क में आये लोगों की रिपोर्ट भले ही अभी निगेटिव्ह हो पर 28 दिन तक उन पर निगाह रखना जरूरी है। इसके बाद तबलीगी जमात का एक 16 साल का किशोर कटघोरा में संक्रमित पाया गया। सात दिन बाद यह किशोर भी चंगा हो गया। मगर इसके पीछे कटघोरा में कोरोना मरीजों की लाइन ही लग गयी। 8 से लेकर 13 अप्रैल के बीच 23 नए मरीज कोरबा में पाए गए और कटघोरा के सिर पर छत्तीसगढ का हॉट स्पॉट का ताज सज गया। इससे पहले 30 मार्च और 4 अप्रैल को दो मरीज मिले ही थे, लिहाजा जिले की संख्या 25 हो गई थी। फिर मरीजों के दनादन स्वस्थ होने औऱ कटघोरा में नए केस नहीं मिलने का क्रम शुरू हुआ। 14 से 16 अप्रैल के दरम्यान13 लोग स्वस्थ हो गए। अब एम्स में मात्र 10 पेसेंट बचे थे, लेकिन 16 अप्रैल की रात 11 बजे एक मनहूस खबर आ गई। कटघोरा में 3 नए बीमार मिलने से संख्या बढ़कर फिर 13 हो गई। इस खबर के चंद घण्टों पहले ही सी एम भूपेश बघेल ने 48 घण्टे के ड्राई डे के लिए कलेक्टर-एस पी को शाबासी दी थी।
कहना न होगा कि तबलीगी जमात का कहर अभी थमा नहीं है। कटघोरा और कोरबा में 4 अप्रैल के बाद मस्जिदों में मिले 51 जमातियों का सेम्पल अभी अवेटेड है। ये सभी गेवरा क्वेरेन्टीन सेंटर में हैं। इनके अलावे कटघोरा के जमातियों के सम्पर्क में आये 20 से अधिक लोग अलग हैं। इन सब को कम से कम 28 दिन विशेष निगरानी में रखना होगा। परन्तु इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि कोरबा के लन्दन रिटर्न युवक ने क्या बोया है? इसकी जांच थम गई है। कोरबा में जमातियों ने कहाँ कहाँ क्या बिखेरा है, यह पता नहीं लग रहा है। दरअसल कटघोरा में जो कहर बरपा है, उसके चलते प्रशासन का पूरा ध्यान वहीं केंद्रित हो गया है। कोरबा में केवल लाग डाउन का शोर है। क्योंकि प्रशासन के पास कोरोना का सेम्पल लेने का संसाधन सीमित है। पडोसी जिलों से लेब टेक्नीशियन बुलाने के बाद भी आवश्यकता के अनुसार बडी संख्या में सेम्पल लिया जाना संभव नहीं हो रहा है। कटघोरा की स्थिति को देखते हुए अमला और बढ़ाने की जरूरत महसूस होने लगी है। वैसे भी सी एम ने पूरे कटघोरा की जांच कराने का निर्देश दिया है। यहां की आबादी 26 हजार है। अभी जिस रफ्तार से सेम्पल लेने की व्यवस्था है, उसके अनुपात में चार माह का समय तो लग ही जायेगा। अब रहा कोरबा का सवाल तो इस पर तो अभी बात करना ही बेमानी लगता है।
उधर कटघोरा के मरीजों के उपचार को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। लोग आश्चर्य जता रहे हैं कि कोरोना संदिग्ध को जब 28 दिन आइसोलेशन जरूरी है तो संक्रमित मरीज पांच-पांच दिन में स्वस्थ कैसे हो रहे हैं। एक ओर पूरी दुनिया कोरोना का अभी इलाज ही ढूंढ रही है, वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में पांच पांच दिन में ही कोरोना संक्रमितों का इलाज हो जा रहा है। देश में शासन की योजनाओं को लागू करने में आये दिन अव्वल रहने वाले छत्तीसगढ़ के नाम कोरोना से निपटने के लिए एक और तमगा जुडना तय माना जा रहा है। वैसे भी राजधानी के एक हॉस्पिटल को लेकर तंज कसा ही जाता है कि वह तो नक्सलियों के चलते चांदी काट रहा है। आर्म फोर्स के जितने जवान और बस्तर के जितने वनवासी इन नक्सलियों के शिकार बनते हैं, उनका एक वही ठिकाना है। बहरहाल विशेषज्ञ और स्वयं स्वास्थ्य मंत्री मानते हैं कि आने वाले दो से तीन सप्ताह में कोरोना और विकराल रूप ले सकता है। ऐसी स्थिति में रेड जोन में जा चुके कोरबा जिला पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है।