दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ की डेढ़ साल पुरानी विष्णुदेव सरकार को अनावश्यक विवादों में घेरे जाने का मामला सामने आया है। प्रदेश सरकार जहाँ संवैधानिक रूप से अपने कदम आगे बढ़ाते हुए विकास की नई राह तय कर रही है, वही टॉप क्लास नौकरशाही के असंवैधानिक फैसलों से पीड़ित अधिकारी- कर्मचारी भी अदालतों का रुख कर रहे है। अदालत में विचाराधीन ज्यादातर मामलों में ‘राज्य शासन’ को फटकार के साथ शर्मिंदगी भी उठानी पड़ रही है। हालत यह है कि पीड़ितों की संवैधानिक गुहार को सरकार के बैनर तले सुने जाने-विचारण की कोई कारगर व्यवस्था स्थापित नहीं हो पाई है। नतीजतन, कई महत्वपूर्ण प्रकरणों में कायदे कानूनों का हवाला देते हुए अदालत से ही पीड़ितों को राहत महसूस हो रही है, अन्यथा सरकारी तंत्र में उनकी गुहार सुनने वाला भी कोई नहीं। यह भारतीय प्रशासनिक सेवा के उन वरिष्ठ अधिकारियों का दुःख-दर्द है, जो कई सालों से राज्य सरकार की सेवा में जुटे है।

ऐसे अधिकारियों को कांग्रेस के बाद बीजेपी सरकार के कार्यकाल में भी ‘इंसाफ’ को लेकर दो-चार होना पड़ रहा है। पीड़ितों के मुताबिक कायदे-कानूनों और तथ्यों से अवगत कराये किसको ? यहाँ तो प्रभावशील अधिकारी मनमानी में उतारू है, मुख्यमंत्री से मेल-मुलाकात तक के लाले पड़े है, कई कोशिशों के बावजूद भी अपॉइनमेंट नहीं मिल पाता, यहाँ सुनियोजित रणनीति के तहत जूनियर अधिकारी वरिष्ठ अधिकारियों को ठिकाने लगाने के लिए फिर लामबंध हो गए है, मुख्य सचिव भी क़ानूनी नहीं बल्कि राजनैतिक फैसलों पर अपनी मुहर लगा रहे है। विवाद, डीजीपी पद के लिए केंद्र को भेजी गई पैनल के मापदंडों से जुड़ा बताया जाता है। राज्य के प्रशासनिक मुखिया और जूनियर अधिकारियों की पसंद-ना पसंद के चलते डीजीपी का पद विवादों से घिरा बताया जा रहा है। यह भी बताया जा रहा है कि मुख्य सचिव की कार्यप्रणाली के चलते पुलिस मुख्यालय में पुनः गतिरोध कायम हो गया है।

दरअसल, 1992 बैच के आईपीएस पवन देव और 1994 बैच के जीपी सिंह का नाम छत्तीसगढ़ के प्रस्तावित डीजीपी के चयन हेतु केंद्र को भेजी गई पैनल लिस्ट से हटाये जाने के मामले ने गंभीर रुख ले लिया है। सूत्र तस्दीक करते है कि मामले की शिकायत पीएमओ और सीबीआई से किये जाने के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की गई है। इस याचिका के तथ्यों से सत्ता के गलियारों में हड़कंप है। प्रशासनिक और पुलिस गलियारों में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के इशारों पर लिए जा रहे फैसलों से छत्तीसगढ़ का राजनैतिक गलियारा सरगर्म है।
इस मामले को लेकर पीड़ित पक्ष ने बिलासपुर हाईकोर्ट ने याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई है। सूत्र तस्दीक कर रहे है कि वरिष्ठ डीजी पवन देव ने याचिका दायर कर अदालत से जल्द सुनवाई की गुहार लगाई है। यह भी बताया जाता है कि भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के वरिष्ठ अधिकारियों की वरिष्ठता तय करने को लेकर मुख्य सचिव का कार्यालय ने आपराधिक कार्यशैली का परिचय देते हुए बड़ी धांधली की है, पहली डीपीसी में गुरजिंदर पाल सिंह की पदोन्नति से जुड़ा बंद लिफाफा प्रस्तुत करने में कोताही बरती गई।

इसके बाद संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की अंतिम पैन-लिस्ट से उनका नाम अचानक बाहर कर दिया गया। जीपी सिंह के अलावा पवन देव का नाम भी डीजीपी पद की पैनल लिस्ट से आखिरी समय हटाए जाने का मामला विवादों से घिर गया है। पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के लिए नियुक्ति ने इस बात पर तीखे सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या योग्यता की बलि नौकरशाही की जड़ में समा गई है। प्रशासनिक और पुलिस हलकों के जानकार सूत्रों के अनुसार, यूपीएससी की विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) ने डीजीपी पैनल को अंतिम रूप देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रकाश सिंह आदेश के तहत 13 मई को बैठक की गई थी। इस सूची में विचार के लिए 4 नाम अरुण देव गौतम (1992 बैच), पवन देव (1992 बैच), हिमांशु गुप्ता (1994 बैच) और जीपी सिंह (1994 बैच) शामिल किये गए थे।

जानकार सूत्र तस्दीक कर रहे है कि मुख्य सचिव कार्यालय ने रहस्यमय तरीके से कैंची चलाते हुए केंद्र सरकार को भेजी गई पैनल में सिर्फ केवल दो अधिकारियों के नाम पर अंतिम मुहर लगाई, जबकि शेष दो अधिकारियों का पत्ता बगैर किसी ठोस कारणों के साफ कर दिया। जानकारी के मुताबिक मौजूदा प्रभारी डीजीपी अरुणदेव गौतम और डीजी हिमांशु गुप्ता का ही नाम अंतिम सूची में जगह बना पाया। जबकि प्रक्रियागत पात्रता के बावजूद जीपी सिंह और पवन देव का नाम पैनल से हटा दिया गया। प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री बघेल और उनकी लॉबी जीपी सिंह की डीजीपी पद पर नियुक्ति को रोकने के लिए जोर-शोर से जुटी हुई है। राजनैतिक गलियारों में चर्चा है कि डीजीपी की कुर्सी पर जीपी सिंह के बैठते ही बघेल समेत उसके गिरोह के कई आपराधिक तत्व हवालात में नजर आ सकते है, फ़िलहाल बीजेपी शासन काल में भी उनका फील गुड यथावत जारी है। ऐसे में भविष्य के समीकरणों को लेकर भूपे खेमा आशंकित नजर आ रहा है।

राजनैतिक लुटेरों- गुंडे-बदमाशों पर लगाम लगाने के मामले में जीपी सिंह का ट्रेक रिकॉर्ड बेहतर आँका जाता है। राजनैतिक संरक्षण प्राप्त तत्वों को उनके असल ठिकाने भेजे जाने के मामले में जीपी सिंह की गिनती कारगर और योग्य आईपीएस अधिकारियों के रूप में होती है। जीपी सिंह के शासन- प्रशासन की मुख्यधारा शामिल होने के अंदेशे मात्र से भूपे गिरोह की नींद हराम बताई जाती है। सूत्र तस्दीक करते है कि भूपे गिरोह के बचाव के मद्देनजर केंद्र सरकार को गलत जानकारी देकर दोनों वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों कों पैनल लिस्ट से दरकिनार किया गया है। यही नहीं प्रदेश के मुखिया की पसंद-नापसंद का हवाला देते हुए अनधिकृत कदम उठाये गए है। अब राज्य सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दिए जाने का मामला सुर्ख़ियों में बताया जा रहा है।

जीपी सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच कांग्रेस राज से ही तलवारे खींची बताई जाती है। भूपे राज में जीपी सिंह के कई क़ानूनी फैसलों से तत्कालीन मुख्यमंत्री के अरमानों पर पानी फिर गया था। बताया जाता है कि नान घोटाले में निर्दोषों को फंसाने और उनके खिलाफ फर्जी मामले दर्ज करने को लेकर जीपी सिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपे बघेल को स्पष्ट ‘ना’ कर दी थी। जबकि तत्कालीन सुपर सीएम अनिल टुटेजा को जमकर फटकार लगाई थी। इस मामले में टुटेजा का माफ़ीनामा सोशल मीडिया में खूब वायरल हुआ था।
हालांकि सत्ता की हनक में पूर्व मुख्यमंत्री ने षड्यंत्र और गैर-क़ानूनी गतिविधियों को अंजाम देते हुए जीपी सिंह को काफी प्रताड़ित भी किया था। लेकिन मौजूदा बीजेपी शासन काल में भी जीपी सिंह की मुसीबतें कम होती नजर नहीं आ रही है। भूपे उपकृत नौकरशाही का एक धड़ा जीपी सिंह की मुखालफत और बहिष्कार में आज भी जोर-शोर से जुटा बताया जाता है। प्रदेश में पिछली भूपे सरकार के भ्रष्टाचार समर्थक अभियानों के एक प्रमुख विरोधी व्यक्ति के रूप में जाने-पहचाने जाने वाले जीपी सिंह ने तीन आपराधिक मामलों का सामना किया था।

उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए पुनः सेवा का मौका प्रदान किया था। पूर्ववर्ती भूपे सरकार ने जीपी सिंह को गैर-क़ानूनी रूप से अनिवार्य सेवानिवृत्ति प्रदान की थी। जानकार पुलिस सूत्रों ने बताया कि न केवल छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बल्कि दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने भी जीपी सिंह को पूरी तरह दोषमुक्त करते हुए दुर्भावनापूर्ण दर्ज सभी मामलों को ख़ारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के बहाली आदेश के बाद छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने इस अधिकारी को महानिदेशक के पद पर पदोन्नत कर उनकी हौसला अफजाई की थी। लेकिन अब हाल यह बताया जा रहा है कि मुख्य सचिव कार्यालय UPSC को उनका नाम तक सिफारिश करने के मामले में अपने हाथ पीछे खींच रहा है। जानकार खुलासा कर रहे है कि 20 दिसंबर, 2024 को सेवा में बहाली के बाद से जीपी सिंह को अब तक कोई औपचारिक पोस्टिंग नहीं दी गई है।

नाम ना जाहिर करने पर कई वरिष्ठ अधिकारियों ने तस्दीक की है कि एक सख्त, समझौता न करने वाले पुलिस अधिकारी के रूप में सिंह की तैनाती प्रदेश के हितों को तय करेगी। उनके मुताबिक गैर राजनीतिक और आपराधिक गतिविधियों की रोकथाम के मामले में इस वक़्त जीपी सिंह से बेहतर विकल्प राज्य सरकार के पास नहीं है। बावजूद इसके उनकी दावेदारी जानबूझ कर कमजोर की जा रही है। इसका खामियाजा प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर पड़ रहा है। ये अफसर पुलिस तंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए एक तार्किक दावेदार रूप में जीपी सिंह को उपयुक्त बता रहे है। उनके मुताबिक एक नियमित डीजीपी की नियुक्ति राज्य की सुरक्षा, जनता के जान-माल की सुरक्षा, माओवादी विरोधी अभियानों से लेकर पुलिसिंग संरचनाओं के आधुनिकीकरण तक को मूर्त रूप देती है। ऐसे वरिष्ठ और उच्चतम पदों पर नियुक्ति के लिए शासन को भी गंभीरता दिखानी चाहिए थी। अंतिम पैनल लिस्ट चयन में दुर्भाग्यपूर्ण तरीका अपनाने पर ये अफसर नाराज भी नजर आये।

एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर ने टिप्पणी कि, “यह प्रकरण केवल सेवा रिकॉर्ड या मंजूरी के बारे में नहीं है, यह इस बारे में है कि बंद दरवाजों के पीछे कौन नियंत्रण रखता है।” यह टिप्पणी पुलिस महकमे में वरिष्ठ अफसरों की असहज भावना को दर्शा रही है। उधर अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), मनोज पिंगुआ ने पत्रकारों से चर्चा में कहा कि उन्हें डीजीपी के लिए यूपीएससी पैनल से जीपी सिंह के बहिष्कार के पीछे के कारणों की जानकारी नहीं है, बैठक में मुख्य सचिव ने भाग लिया था। पिंगुआ ने जीपी सिंह का नाम हटाए जाने को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि ऐसा कोई मौखिक या ठोस कोई रिकॉर्ड नहीं है। अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) के इस मामले से पल्ला झाड़ लेने के बाद मामला पेंचीदा बताया जा रहा है। मुख्य सचिव के अलावा प्रभावित आईपीएस अधिकारी पवन देव और जीपी सिंह से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हो पाई है। फ़िलहाल, केंद्र और UPSC को भेजी गई डीजीपी पैनल लिस्ट की वैधता और निष्पक्षता कानून के तकाजे पर है। इस मामले में राज्य सरकार के रुख पर लोगों की निगाहे लगी हुई है।