नई दिल्ली:- सातवीं शताब्दी में मोहम्मद बिन कासिम के भारत पर किए गए आक्रमण के दौरान देशभर में इस्लाम को फैलाने की कोशिश की गई. वह अधूरा ख्वाब, जो इस्लामिक कट्टरपंथियों की आंखों में पिछले 1300 सालों से लगातार बसा हुआ है. हालांकि वह सफल नहीं हो पाया. हालांकि वह सफल नहीं हो पाया. क्या 2 साल पहले CAA के खिलाफ हुए प्रोटेस्ट और अब कर्नाटक में हिजाब विवाद के बहाने हो रहे प्रदर्शन भारत में गजवा-ए-हिंद करने की दिशा में आगे बढ़ने की साजिश है.
मुस्लिम धर्म के सिद्धांतों के अनुसार दुनिया दो भागों में विभाजित है. पहला हिस्सा दारुल इस्लाम कहा जाता है. इसमें वह देश आते हैं, जहां मुस्लिम रहते हैं और मुस्लिमों का ही शासन है. जबकि भाग दूसरा दारुल हर्ब कहा जाता है, जहां मुस्लिम रहते हैं, लेकिन शासन गैर-मुस्लिम करते हैं. इस्लामी सिद्धांत के मुताबिक भारत भी ऐसा ही एक दारुल हर्ब है. जिसे दारुल इस्लाम करने की जरूरत है. इस दारुल इस्लाम में भूमि मुसलमानों की तो हो सकती है लेकिन हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, यहूदी और पारसियों की नहीं हो सकती.
गजवा-ए-हिंद की थ्योरी के मुताबिक भारत को मुस्लिम मुल्क के रूप में बदलने से पहले मुसलमानों को उसके आसपास के देशों में मजबूत होना पड़ेगा. जिससे उस पर चारों ओर से शिकंजा कस सकेगा और वक्त आने पर इस्लामी ताकतें चारों ओर से उस पर हमला कर भारत में गजवा-ए-हिंद कर सकेंगी. भारत के पड़ोस में पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव और अफगानिस्तान का उदाहरण सामने है, जहां पर कट्टरपंथी ताकतें इतनी मजबूत हैं कि इस्लाम के नाम पर किसी का भी गला काट सकती हैं.
ट्टर इस्लाम को मानने वाले कहते हैं कि इतने वर्षों में गजवा-ए-हिंद इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि इससे पहले भारत पर जितने भी मुसलमान आक्रमणकारियों ने हमला किया था वो इस्लाम की कट्टर विचारधारा से तो प्रेरित थे, लेकिन उनका असली सपना भारत के धन और दौलत को लूटना था. वहीं अगली बार जो लोग गजवा-ए-हिंद करेंगे वो भारत को लूटने नहीं बल्कि उसे एक इस्लामिक राष्ट्र में बदलने के इरादे से हमला करेंगे.