छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदले जाने की अटकलों के बीच वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव की छवि खराब करने के लिए शिकायत अभियान,एक गुट ने झोंकी पूरी ताकत,राहुल गांधी के रायपुर आने के पूर्व कांग्रेस के भीतर तेज़ हुआ सियासी संग्राम, विधायक पार्टी आलाकमान के साथ…

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रायपुर:- छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी के आगमन से पूर्व कांग्रेस के भीतर गुटबाजी तेज हो गई है. राहुल गांधी 3 फ़रवरी को सरकारी योजनाओं के उद्घाटन में शामिल होने के लिए रायपुर का दौरा करेंगे. चंद घंटो के प्रवास के दौरान स्थानीय कार्यक्रमों में शामिल होने के साथ साथ कांग्रेस के तीन साल के प्रदर्शन पर राहुल गांधी मंत्रियों और संगठन के नेताओं से भी चर्चा कर सकते है. इसे लेकर कांग्रेस के भीतर राजनीति तेज हो गई है. रायपुर में राहुल गांधी से मेल मुलाकात करने वालों की सूची में अपना नाम नदारत देख आदिवासी और ओबीसी समुदाय के कुछ चुनिन्दा नेता राहुल गांधी से व्यक्तिगत मुलाक़ात के लिए हांथ पैर मार रहे हैं. इसके लिए इन नेताओं ने ‘आरजी’ आफिस से सीधा सम्पर्क साधा है. सूत्र बताते हैं कि मंत्रीमंडल में शामिल कुछ चेहरों को ही राहुल गांधी के निकट पहुचने के मामले में तरजीह दी गई है. शेष नेताओं को किनारे कर दिया गया है. सूत्र यह भी बताते हैं कि, एक खास गुट के नेता ही राहुल गांधी के करीब पहुंच पाएगें. ख़ास मकसद से इनका ‘आरजी’ से सम्पर्क कराया जा रहा है. इस दौरान ये नेता मुख्यमंत्री के ना बदले जाने को लेकर उनसे मिन्नतें करेंगे. यही नहीं वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव की छवि को ख़राब करने के लिए फर्जी शिकायतों का पिटारा आरजी के समक्ष खोलने की सम्भावना जताई जा रही है.

राहुल गांधी के रायपुर प्रवास का कार्यक्रम स्वीकृत होते ही टीएस सिंहदेव के खिलाफ शिकवे -शिकायतों को प्लांट करने का खेल शुरू हो गया है. इसके तहत तीस साल पुराने एक फर्जी प्रकरण को लेकर राहुल गांधी को शिकायत भेजी गई है. सूत्रों के मुताबिक़ कांग्रेस के एक गुट विशेष द्वारा सुनियोजित रूप से तैयार की गई इस शिकायत को सोशल मीडिया में भी वायरल किया जा रहा है. इसमें कहा गया है कि सिंहदेव परिवार द्वारा करोड़ो रुपए की जमीन फर्जी तरीके से अपने नाम करा कर बेची गई है. जबकि हकीकत यह है कि सिंहदेव राजपरिवार की मालिकाना हक़ वाली इस जमीन का पारदर्शी सरकारी रिकार्ड है. राजस्व न्यायालय और ग्रीन ट्रिब्यूनल भी सिंहदेव राजपरिवार के हक में पच्चीस साल पहले फैसला सुना चुका है. यही नहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी और रमन सिंह के कार्यकाल में इस जमीन को लेकर कई स्तरों में जांच की गई. जांच अधिकारियों ने भी कानूनन उस जमीन को सिंहदेव परिवार की पाया था. इतने वर्षों बाद अचानक इस जमीन की शिकायती चिट्ठी राहुल गांधी को भेजकर टीएस सिंहदेव के खिलाफ राजनैतिक माहौल खड़ा करने की कोशिश की जा रही है. हालाकि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता टीएस सिंहदेव ऐसी शिकायतों को दरकिनार कर अपने कामकाज में जुटे हुए है.

बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री और सरकार का ग्राफ तेजी से गिरा है. खासकर भ्रष्टाचार और अवैध उगाही के मामलों से सरकार की छवि पूरी तरह से धूमिल हो चुकी है. सरकार के तीन साल की उपलब्धि में गब्बर सिंह टैक्स, शराब की अवैध बिक्री, रेत-बालू के ठेकों और खदानों के आवंटन में खास गुट की हिस्सेदारी के मामले भी गिने जा रहे हैं. सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करने वाले लोंगों को जेल भेजे जाने से कांग्रेस के खिलाफ जनाक्रोश बढ़ा है. पार्टी घोषणापत्र को तोड़ मरोड़ कर लागू करने के असफल प्रयासों से खुद कांग्रेसी कार्यकर्त्ता सरकार की खिलाफत करने लगे हैं. शराबबंदी के बजाए उसे एक खास गुट की आय का साधन बनाए जाने से कांगेस के प्रति लोगों का मोहभंग हो रहा है. बेरोजगारों को ढाई हज़ार रूपए प्रतिमाह भत्ता देने की वादाखिलाफी से युवावर्ग भी आक्रोशित है. लोगों के बीच विपक्ष यह बताने में कामयाब रहा है कि छतीसगढ़ राज्य दस जनपथ का एटीएम बन चुका है. नवा रायपुर समेत कई योजनाओं में सरकार के गैर जिम्मेदाराना रेवैये से विकास कार्य ठप है. बड़ी तादात में किसान भी सरकार के खिलाफ आन्दोलन में उतरने लगे हैं. इसकी बानगी नवा रायपुर में किसान आन्दोलन से दिख रही है. ऐसे में राजनीति के जानकार मौजूदा मुख्यमंत्री के नेतृत्व को कांग्रेस के सफाये के लिए पर्याप्त बता रहे है. उनके मुताबिक़ ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री का फार्मूला ही अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी की वैतरणी पार लगा सकता है.

छत्तीसगढ़ में मौजूदा मुख्यमंत्री की कुर्सी को बचाए रखने के लिए एक खास गुट ने कुछ माह पूर्व दिल्ली में विधायकों की परेड कराई गई थी. राजनीति के जानकारों का कहना है कि, यह सबकुछ कांग्रेस आलाकमान की फजीहत कराने का हिस्सा था. उनके मुताबिक़ इस दौरान सत्ताशीर्ष के इशारे पर विधायक बृहस्पति सिंह ने टीएस सिंहदेव से जान का खतरा बताकर सुर्खियां बटोरी थी. हालाकि चंद घंटो बाद अपने आरोपों पर माफ़ी मांगते हुए वो बैकफुट पर भी आ गए थे. साफ़ है कि सरकार के भीतरखाने में ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री का फार्मूला उफान पर है. सूत्र बताते है कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के उपरान्त पंजाब की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी नेतृत्व परिवर्तन से इनकार नहीं किया जा सकता. पहले दौर में कांग्रेस का सिक्का पिटता नज़र आ रहा है. ऐसे में शेष बचे दो सालों में कांग्रेस की मजबूती और जनता के बीच साख बचाए रखने के लिए लोकप्रियता के पैमाने में टीएस सिंहदेव की दावेदारी संजीवनी का काम कर सकती है.