
रायपुर : छत्तीसगढ़ में कांग्रेस राज में पटरी से उतरी जल जीवन मिशन की नैय्या बीजेपी शासनकाल में भी भ्रष्टाचार की गहरी खाई में गोता लगाते नजर आ रही है। पीड़ितों के मुताबिक भू -पे राज में बिल भुगतान का कमीशन 7 फ़ीसदी पर स्थिर था, जो मौजूदा शासनकाल में 10 फीसदी का आंकड़ा पार करने के मिशन पर अग्रसर है। उनके मुताबिक राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए गाँव – कस्बों में कार्यरत सैकड़ों छोटे ठेकेदारों की सुध लेते हुए उनका भुगतान सुनिचित करने हेतु बजट आवंटित कर दिया था। लेकिन अफसरों की प्रभावशील टोली ने सिंगल विलेज ठेकेदारों के हिस्से की रकम मल्टी विलेज ठेकेदारों की तिजोरी में डाल दी। ऐसे मल्टीविलेज ठेकेदारों की संख्या सिर्फ आधा दर्जन बताई जाती है, जबकि सिंगल विलेज ठेकेदार महज कुछ सैकड़ा ही है।

जल -जीवन मिशन की कामयाबी इन्ही सिंगल विलेज ठेकेदारों के कामकाज पर निर्भर बताई जाती है। यह भी तस्दीक की जा रही है कि मैदानी इलाको में कार्यरत छोटे ठेकेदारों का भुगतान नहीं होने से इस महती योजना का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने में आज भी कठिनाई का दौर जस की तस है। जल जीवन मिशन में लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार के ग्राफ से राज्य की बीजेपी सरकार की साख भी दांव पर बताई जाती है।

रायपुर में जल जीवन मिशन के मुख्यालय में सिंगल विलेज ठेकेदारो का ताँता लगा हुआ है। प्रदेश के विभिन्न जिलों से कई ठेकेदार अपने लंबित भुगतान को लेकर डेरा डाले हुए है। उन्हें उस समय निराशा हाथ लग रही है, जब पता पड़ रहा है कि इस योजना अंतर्गत आबंटित राज्यांश की रकम अचानक वापस लेने का फरमान जारी हो गया है। दावा किया जा रहा है कि मोटा कमीशन का अग्रिम भुगतान वसूलने के बाद उनके हिस्से की रकम चुनिंदा मल्टीविलेज एजेंसियों को भुगतान के लिए परिवर्तित कर दी गई है। इस रकम को एडिशनल MD SN पांडेय की क़वायतो के कारण डिवीजनल कार्यालयों से वापस ले लिया गया है। यही नहीं जिला कार्यालयों में पदस्थ अधिकारियों को कमीशन का टारगेट भी सौंपा गया है। इसकी भरपाई न करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों को ट्रांसफर करने की धमकी भी दी जा रही है।

शिकायतकर्ताओं के मुताबिक एडिशनल MD का पद ENC स्तर के अधिकारियों के लिए पूर्व निर्धारित है, लेकिन मौजूदा दौर में ”कमीशनखोरी” को यथावत जारी रखने के लिए ”E” अर्थात इंजिनियर के पद पर काबिज कनिष्ठ अधिकारी को इतने महत्वपूर्ण और जिम्मेदार पद की कुर्सी पर बैठा दिया गया है। इस अफसर की कार्यप्रणाली को लेकर महकमें में कोहराम मचा है। पीड़ितों के मुताबिक विभागीय बैठकों में खुलकर कमीशन माँगा जा रहा है, अन्यथा अधिकारियो को ट्रांसफर करने की धमकी भी दी जा रही है। पीड़ित तस्दीक करते है कि एडिशनल MD की कार्यप्रणाली उच्चस्तरीय जाँच के दायरे में है, लेकिन राजनैतिक सरंक्षण के चलते उपकृत करने का सिलसिला जारी है। सूत्रों के मुताबिक राज्य को योजना में अपेक्षित विकास कार्य नहीं होने के चलते केन्द्रांश स्वीकृत नहीं हो रहा है। हालांकि कुछ माह पहले ही लगभग 371 करोड़ का राज्यांश के रूप में धनराशि सीधे तौर पर जिलों को आवंटित की गई थी। लेकिन प्रीपेड कमीशन के चलते अधिकारियों ने प्रभावशाली और चहेती एजेंसियों का भुगतान सुनिश्चित कर दिया। उसने विभिन्न जिलों को आबंटित राशि भी वापस लेने का फरमान जारी कर विभागीय गतिरोध पैदा कर दिया। बताया जाता है कि सभी खंड कार्यालयों से यह आबंटित राशि वापस ली जा रही है। पीड़ितों के मुताबिक रायपुर, सारंगढ़ बिलाईगढ़, गरियाबंद, धमतरी, बेमेतरा,महासमुंद समेत कई जिलों से यह राशि वापस हो गई है।

उधर पीएम मोदी की जल जीवन मिशन योजना भ्रष्टाचार की भेट चढ़ रही है। इस योजना के अंतर्गत उपयोग में आने वाली सामग्री की आपूर्ति के लिए अधिकारियों का एक समूह कुछ चुनिंदा कम्पनियो के सीधे संपर्क में है। बीजेपी शासनकाल में भी इस योजना के कामकाज में कोई बेहतर सुधार नहीं हो पाया है। बल्कि महकमें की राह कमीशनखोरी की ओर तेजी से बढ़ रही है। एक ओर सिंगल विलीज ठेकेदारों को लम्बे समय से भुगतान नहीं होने से मैदानी इलाको में योजना ठप्प हो गई है, वही पीने योग्य शुद्ध जल नहीं मिलने से बीजेपी सरकार के प्रति लोगो का आक्रोश लगातार बढ़ते जा रहा है। ग्रामीणों की यह दलील है कि काम पूरा होने के बावजूद ठेकेदारों को राशि नहीं मिलने से अन्य विकास कार्यों में बाधा खड़ी हो गई है। पीड़ित ठेकेदार यह भी तस्दीक कर रहे है कि कमीशन की रकम नहीं देने के चलते ”हर घर नल से जल” के प्रमाणन के बावजूद कई तकनीकी और दस्तावेजी आपत्ति लगाकर उच्चाधिकारी भुगतान रोकने के नुस्खें आजमा रहे है। राज्यांश राशि वापस लेने के मामले में अफसर भी कोई ठोस वजह नहीं बता पा रहे हैं। उधर न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ ने विभागीय मंत्री से इस बारे में प्रतिक्रिया लेनी चाही, लेकिन उनसे सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाया।