CJI गवई ने क्रीमी लेयर फैसले पर दिया दृष्टिकोण
भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने गोवा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन में शनिवार को अपने कई महत्वपूर्ण और विवादास्पद फैसलों पर खुलकर बात की। उन्होंने क्रीमी लेयर और अनुसूचित जातियों में उप-वर्गीकरण के फैसले पर कहा कि इस पर उन्हें अपने ही समुदाय की आलोचना झेलनी पड़ी। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके निर्णय कानून और अंतरात्मा के अनुसार होते हैं, न कि जनता की इच्छा या दबाव के आधार पर।
CJI गवई ने उदाहरण देते हुए कहा कि आरक्षित वर्ग से पहली पीढ़ी आईएएस बनती है, तो क्या दूसरी या तीसरी पीढ़ी भी उसी कोटे का लाभ उठाकर सीमित संसाधनों वाले ग्रामीण बच्चों के बराबर हो सकती है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए कहा कि समानता का अर्थ सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना नहीं, बल्कि असमानताओं को दूर करने के लिए असमान व्यवहार करना है।
सेपरेशन ऑफ पावर और नागरिक अधिकार
सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया बुलडोजर एक्शन फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि संविधान कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के बीच ‘सेपरेशन ऑफ पावर’ को मान्यता देता है। बिना उचित प्रक्रिया के किसी का घर उजाड़ने से रोकने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
सामाजिक और आर्थिक न्याय
CJI गवई ने विदर्भ के झुडपी जंगल मामले का उल्लेख करते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 86,000 हेक्टेयर भूमि को जंगल माना, लेकिन वहां दशकों से रह रहे लोगों और किसानों को बेदखल नहीं किया। उन्होंने हाई कोर्ट के जजों की स्वतंत्रता और सम्मान पर भी जोर दिया और कहा कि आलोचना स्वीकार्य है, क्योंकि जज भी इंसान हैं और गलतियां कर सकते हैं।
CJI गवई ने अपने संबोधन में न्याय, समानता और संवैधानिक मूल्यों पर स्पष्ट दृष्टिकोण पेश किया, जो सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण संदेश देता है।
