दिल्ली वेब डेस्क / कोरोना संक्रमण के फैलाव की खबरों के बीच एक नई खबर भी सामने आ रही है | शहरी इलाकों में अनलॉक के शुरुआती दौर में ही बाल मजदूरी के मामले दिखाई देने लगे है | कई लोगों ने अपने घरों और दुकानों में निर्माण कार्य शुरू किये है | कई इलाकों में स्थानीय स्तर पर खाद्य पदार्थों का निर्माण भी शुरू हुआ है | इसके अलावा घरेलु उद्योगों के तहत निर्मित होने वाली वस्तुओं के उत्पादन ने भी जोर पकड़ना शुरू कर दिया है | इन इलाकों में अब बाल मजदूर भी नज़र आने लगे है | कई श्रमिक अपने परिवार सहित काम पर जुट गए है | उनमे इन श्रमिकों के बच्चे और रिश्तेदार शामिल है | ये मजदूर रोजीरोटी के संकट का हवाला देकर नाबालिग बच्चों से काम काज करवाने पर जोर दे रहे है |
बताया जाता है कि लॉक डाउन की वजह से ज्यादातर इलाकों में प्रवासी मजदूरों का पलायन हो गया है | ऐसे में काम काज के लिए स्थानीय मजदूर सामने आये है। ये मजदूर व्यापारिक गतिविधियों वाले केंद्रों, कल-कारखाने से लेकर कुटीर उद्योग केंद्रों में अपनी आमद दर्ज कर रहे है | ये मजदूर खुद के बेरोजगार होने और उनके परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़े होने की जानकारी देकर पूरे परिवार को मजदूरी के कार्य में झोक रहे है। उधर यूनिसेफ ने भी आशंका जताई है कि कोरोना संक्रमण और लॉक डाउन से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण बाल मजदूरी में बढ़ोतरी हो सकती है। उसके मुताबिक गरीबी से त्रस्त परिवार बच्चों को खतरनाक औद्योगिक गतिविधयों में भी काम करने को भेज सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि वर्ष 2016 में पांच वर्ष से 17 वर्ष की आयु के 15.2 करोड़ बच्चों को बाल मजदूरी करनी पड़ रही थी। इनमें पांच वर्ष से 14 वर्ष आयु के बाल मजदूरों की संख्या 11.4 करोड़ थी। यह संख्या कुल बाल मजदूरों की संख्या की 75 फीसदी थी। कुल 7.3 करोड़ बच्चे खतरनाक प्रकृति के उद्योगों में काम कर रहे थे, जहां उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सेक्रेटरी गाय रायडर ने कहा है कि ऐसे दौर में बच्चों को सामाजिक संरक्षण की विशेष आवश्यकता है। ऐसा न हो पाने पर उनके संपूर्ण विकास पर गहरी नकारात्मक चोट पहुंच सकती है।
उनके मुताबिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग से दुनिया में बाल श्रम को नब्बे के दशक के अंत में 26 करोड़ से घटाकर अब 15.2 करोड़ तक लाने में सफलता मिली है, लेकिन कोरोना काल के कारण उपजी विकट परिस्थितियों में इसमें फिर बढ़ोतरी की आशंका पैदा हो गई है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, यूनिसेफ और अन्य संगठनों के प्रयास के कारण 2012 से 2016 के दौरान खतरनाक क्षेत्रों में बच्चों को लगाए जाने के मामलों में कमी आई थी | लेकिन इस दौर में यह भी निराशा भरा मामला आया कि पांच से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के खतरनाक उद्योगों में काम करने के मामले में केवल सात फीसदी की कमी आई।
यूनिसेफ का अनुमान है कि किसी देश की गरीबी में अगर एक फीसदी की बढ़ोतरी होती है, तो इससे बालश्रम के मामलों में 0.7 फीसदी की बढ़ोतरी होने की आशंका बढ़ जाती है। कोरोना काल में गरीब देशों में इसका व्यापक नकारात्मक असर देखने को मिल सकता है। इस सूची में भारत काफी संवेदनशील बताया जा रहा है | दरअसल देश में कोरोना काल के दौरान बच्चों की शैक्षिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप पड़ी हुई हैं। अगर शैक्षिक गतिविधियों को ठप रखने की समस्या लंबी खिंचती है तो इससे बच्चों के विकास पर गहरा नकारात्मक असर देखने को मिल सकता है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में एक करोड़ से अधिक बाल श्रमिक विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे थे।
आज भी अकेले बिहार में 10.88 लाख बाल श्रमिक विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। यह संख्या भारत के कुल बाल श्रमिकों की लगभग 10.7 फीसदी है। भारत ने वर्ष 2025 तक देश से बाल श्रम मजदूरी को समूल नष्ट करने की प्रतिबद्धता जाहिर कर रखी है। लेकिन लॉक डाउन से उत्पन्न परिस्थिति इसके सफाये को लेकर बड़ी चुनौती बन गई है | एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश जैसे अपेक्षाकृत ज्यादा पिछड़े राज्यों में कोरोना काल में गरीबी बढ़ सकती है। औद्योगिक गतिविधयों के धीमेपन का असर लोगों की रोजी-रोटी पर पड़ सकता है। इससे इन राज्यों के गरीब लोग अपने बच्चों को बाल मजदूरी के लिए भेजने पर मजबूर हो सकते हैं।
उधर बचपन बचाओ आंदोलन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के हितों के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी मांगी है। केंद्र को जानकारी उपलब्ध कराने के लिए दो हफ्ते का समय दिया गया है। संगठन ने अपनी याचिका में इस बात की आशंका जाहिर की है कि कोरोना काल के बाद बच्चों को न सिर्फ मजदूरी में धकेला जा सकता है, बल्कि उन्हें वेश्यावृत्ति जैसे घोर अनैतिक पेशे में जाने को भी मजबूर किया जा सकता है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016 में बाल श्रम विरोधी कानून (CLPRA) के तहत 204 मामले दर्ज किए गये थे। इसी प्रकार 2017 में 462 और 2018 में 464 लोगों पर कार्रवाई हुई थी। इन मामलों में न्यूनतम 1879 बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त भी कराया गया था।
ये भी पढ़े : छत्तीसगढ़ के स्कूल- कॉलेजों में दाखिला जुलाई में, मास्क अनिवार्य, बसें फिलहाल बंद रहेंगी