दिल्ली वेब डेस्क / लखनऊ में दंगाइयों के पोस्टर विवाद को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई की। याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। बहस के बाद अदालत ने मामले को विस्तृत सुनवाई के लिए तीन जजों की पीठ के पास भेज दिया है। हालांकि सुको ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक नहीं लगाई है। अदालत में योगी सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि जो लोग खुलेआम बंदूक लहरा रहे हैं, दंगा कर रहे है, उनकी कैसे निजता हो सकती है।
दंगे में सरकारी सम्पत्ति की नुकसान की वसूली का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीएए के विरोध प्रदर्शन के दौरान सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपाई के निर्देश दिए थे | उनके निर्देश के बाद प्रशासन ने दंगाइयों की पहचान कर उनके ख़िलाफ़ आपराधिक प्रकरण दर्ज किया था | यही नहीं सरकारी संपत्ति के नुकसान की वसूली के लिए स्थानीय प्रशासन ने आरोपियों के पोस्टर गली मौहल्लों में चस्पा किये थे | सीएए विरोधियों ने पोस्टर हटाए जाने को लेकर अदालत का दरवाजा खट खटाया था | इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद इसे निजता का उल्लंघन करार देते हुए विवादित पोस्टर हटाने के निर्देश दिए थे |
योगी आदित्यनाथ सरकार ने पोस्टर हटाने से साफ़ इंकार करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी | सरकार की ओर से दलील दी गई कि दंगाइयों की आखिर कैसी निजता ? इस दलील को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों की बैंच को मामला सौप दिया है | अदालत परिसर में योगी आदित्यनाथ की पुख्ता दलील की चर्चा दिन भर होते रही |
दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ ने लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाए जाने के मामले में सुनवाई की | इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि मामले पर विस्तार से विचार करने की जरूरत है। लिहाजा मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी।
अदालत ने रजिस्ट्रार को इस मामले की फाइल, प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस ए बोबडे के समक्ष रखने का निर्देश दिया | ताकि अगले सप्ताह सुनवाई के लिए पर्याप्त संख्या वाली पीठ का गठन किया जा सके। इससे पहले पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि यह मामला बेहद महत्वपूर्ण है। मेहता ने अदालत को बताया कि पोस्टर केवल प्रतिरोधक के तौर पर लगाए गए थे | उन्होंने बताया कि पोस्टर में केवल यह कहा गया है कि ये लोग हिंसा के दौरान अपने कथित कृत्यों के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उत्तरदायी हैं।
पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने पीठ से कहा कि राज्य सरकार अपनी कार्रवाई का कानूनी समर्थन दिखाने के लिये कर्तव्यबद्ध है। लखनऊ में दारापुरी का पोस्टर भी लगाया गया है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई मामले में अंतिम निर्णय से पहले ही इन लोगों के नाम सार्वजनिक करने और उन्हें शर्मिंदा करने की चाल है। उन्होंने कहा कि ऐसा करके आम लोगों को उन लोगों पीट-पीटकर मारने का बुलावा दिया जा रहा है क्योंकि पोस्टरों पर उनके पते और तस्वीरें भी दी गई हैं।
इस दलील को सुनने के बाद अदालत ने तुषार मेहता से पूछा कि क्या राज्य सरकार के पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है। हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और उन्हें सजा मिलनी चाहिए। गौरतलब है कि हिंसा – दंगे के दौरान सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपाई को लेकर शीर्ष अदालत पहले भी कई निर्देश दे चुकी है |
दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ समेत कई जिलों में सड़कों पर सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान तोड़फोड़ करने के आरोपियों के पोस्टर लगाए थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नौ मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार को उन पोस्टरों को हटाने का आदेश दिया था, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है।
फ़िलहाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पूर्व पोस्टर हटाने से साफ़ इंकार कर दिया है | उन्होंने कहा कि सरकारी संपत्ति देश के आम नागरिकों की है | इसे नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी तत्वों को बख्शा नहीं जायेगा | उन्होंने कहा कि इसे किसी धर्म या समुदाय से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए |