पूर्व मुख्यमंत्री भूपे के हेलीकॉप्टर पर सवार मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ? 67 वर्षीय बुजुर्ग चीफ पायलट की आसमानी उड़ान से जोखिम में ‘सरकार’ की जान, वो 2 घंटे….
छत्तीसगढ़ के बहुआयामी उद्योगपति और पूर्व मुख्यमंत्री करप्शन बघेल के कारोबार की जड़े एवियेशन सेक्टर तक फैली बताई जाती है। दिलचस्प बात यह है कि शराब घोटाले की तर्ज पर पूर्व मुख्यमंत्री, सरकारी तिजोरी पर हाथ मारते हुए 24X7 आसमानी पर उड़ रहे। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद गिने-चुने 5 सालों के भीतर ही एक कंपनी और करप्शन बघेल ने आसमान पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया था। पूर्व मुख्यमंत्री का कारोबार अभी भी जारी बताया जाता है। यह भी बताते है कि पूर्ववर्ती सरकार के मुखिया ने हवा-हवाई दौरों पर जितनी रकम खर्च कर दी थी, उससे छत्तीसगढ़ सरकार 2 नए उन्नत किस्म के हेलीकॉप्टर और 8 सीटर 1 हवाई जहाज आसानी से खरीद सकती थी। लेकिन बेपरवाह नौकरशाही और तत्कालीन सरकार ने 250 करोड़ से ज्यादा की रकम पानी की तरह बहा दी।

सरकारी-गैर-सरकारी उपक्रमों में हवाई यात्राओं पर सालाना मोटी रकम खर्च की गई थी। कांग्रेस के कई नेताओं के आसमानी सफर पर इस गरीब प्रदेश की तिजोरी से अरबों की रकम खर्च कर दी गई। लेकिन किसी ने भी फिजूल खर्ची के खिलाफ अपना मुँह तक खोलना मुनासिब नहीं समझा था। सूत्र तस्दीक करते है कि एक ‘ढिल्लन’ नामक शख्स को अनुचित फायदा पहुंचाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री ने सरकारी तिजोरी खोल दी थी। तिजोरी से यह रकम आज भी पानी की तरह बहाई जा रही है। यह भी बताया जाता है कि प्रदेश के विमानन मंत्रालय ने हेलीकॉप्टर और हवाई जहाज की उड़ानों को लेकर टेंडर-निविदा कई वर्षों से जारी नहीं की है, सिर्फ रेट कॉन्ट्रेक्ट के तहत ही ढिल्लन को एवियेशन सेक्टर का ‘किंग-पिंग’ बनाया जा रहा है। इस मामले की सीबीआई जांच अनिवार्य बताई जा रही है।

जानकारों के मुताबिक देश में बगैर प्रतिस्पर्धा भारी भरकम दरों पर केवल छत्तीसगढ़ प्रदेश में ही आसमानी उड़ान भरी जा रही है। जबकि आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस नए विमान उपलब्ध कराने वाली दर्जनों कंपनियां राजधानी रायपुर में सस्ती दरों पर सुरक्षित हवाई सफर सुनिश्चित करने के लिए जमीन पर हाथ-पैर मार रही है। प्रदेश के एवियेशन सेक्टर में पूर्व मुख्यमंत्री का कारोबार जमकर फल-फूल रहा है। आसमानी कारोबार में करप्शन बघेल की हिस्सेदारी भी बताई जाती है। यह भी बताते है कि 12 मई 2022 को छत्तीसगढ़ शासन का सरकारी हेलीकॉप्टर अगुस्ता 109 बगैर मेंटेनेंस आसमान छू रहा था।

नतीजतन, क्रैस हो गया, इस हादसे में 2 पायलट की मौके पर ही मौत हो गई थी। लेकिन तत्कालीन भूपे ने इस दुर्घटना की ना तो वैधानिक जांच कराई और ना ही घटना के कारणों को लेकर कोई पता-साज़ी की थी। फाइलों में कैद प्रकरण में भूपे की दास्तान रहस्मयी बताई जाती है। यह भी बताया जाता है कि इतने बड़े नुकसान की जवाबदारी जिस चीफ पायलट और तत्कालीन एवियशन डायरेक्टर की थी, वे अभी भी मौज-मस्ती में बताये जाते है। जानकारी के मुताबिक प्रदेश सरकार के ‘चीफ पायलट’ को दफ्तर में ‘मक्खी मारने’ के लिए प्रतिमाह 3 लाख रुपये बतौर वेतनभत्ते के रूप में आज भी दिए जा रहे है। जबकि राज्य सरकार के पास अपना खुद का कोई हेलीकॉप्टर ही उपलब्ध नहीं है।
सरकार के मालिकाना हक़ वाले एक मात्र विमान V-200 को उड़ाने के लिए पर्याप्त 2 पायलट कार्यरत बताये जाते है। ऐसे में चीफ पायलट पर सालाना करोड़ों का खर्च आखिर क्यों जनता पर लादा जा रहा है ? मामले को लेकर एवियशन डिपार्टमेंट खूब सुर्खियां बटोर रहा है। जानकारों के मुताबिक चीफ पायलट की उम्र अब 67 पार कर चुकी है, ढलती उम्र के चलते उनका पायलट लाइसेंस भी कालातीत हो चूका है, ऐसे में कुपात्र चीफ पायलट के दिशानिर्देश जोखिम भरे बताये जा रहे है।
एक जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को भी ‘भूपे गठजोड़ वाले ढिल्लन साहब’ के ख़राब हेलीकॉप्टर को लेकर कई मौकों पर दो-चार भी होना पड़ा है। बताते है कि नवरात्र त्यौहार के दौरान पूर्व निर्धारित दौरे में रायपुर से जशपुर जाने के लिए मुख्यमंत्री साय पुलिस लाइन स्थित हेलीपेड पहुंचे थे। लेकिन खटारा हेलीकॉप्टर उड़ान ही नहीं भर पाया था।

अदद उड़नखटोले के लिए मुख्यमंत्री को 2 घंटे से अधिक वक़्त तक हेलीपेड पर ही इंतजार करना पड़ा था। बताते है कि मुख्यमंत्री के दौरे के मद्देनजर जगदलपुर से दूसरा उड़नखटोला आनन फानन में बुलाया गया था। जानकारों के मुताबिक राज्य सरकार को उपलब्ध कराये गए हेलीकॉप्टर का कई महीनों से मेंटेनेंस तक नहीं किया गया था। जानकार यह भी तस्दीक करते है कि ऐसे उड़नखटोले मुख्यमंत्री समेत अन्य VIP के लिए जोखिम भरे हो सकते है। यह भी बताया जाता है कि भले ही सरकार बीजेपी की हो, लेकिन ‘ढिल्लन साहब’ के कारोबार में कोई कमी नहीं आई है, भूपे की गोपनीय हिस्सेदारी वाली कंपनी पूर्ववर्ती सरकार की तर्ज पर मौजूदा बीजेपी शासन काल में भी मालामाल हो रही है।

बता दे कि विगत वर्ष रायपुर में कांग्रेस के राष्ट्रीय सम्मलेन के दौरान तत्कालीन मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने भूपे के हवाई दौरों पर एतराज जताते हुए खाली होती सरकारी तिजोरी को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की थी। लेकिन पार्टी के सत्ता में आने के बाद बीजेपी की प्राथमिकताएं भी राजनैतिक रंग में रंगी दिखाई देने लगी है। एवियशन डिपार्टमेंट की ओर से सरकार का मुँह फेर लेने से आसमानी उड़ाने एक खास कंपनी के लिए अभी भी फलदायी साबित हो रही है। घोटालों की फेहरिस्त वाले ठिकानो में छत्तीसगढ़ एवियशन डिपार्टमेंट भी शुमार बताया जाता है। बहरहाल, रहस्यों पर से पर्दा तो जांच के बाद ही हटेगा।

जशपुर प्रदेश का पहला नक्सलवाद मुक्त जिला…? मुख्यमंत्री की हरी झंडी का इंतज़ार…

सारे जहां से अच्छा जशपुर हमारा, इन दिनों सुरगुजा की पहाड़ियों से ऐसी ही स्वर लहरियां गूंज रही है। दरअसल, जशपुर प्रदेश का पहला नक्सलवाद मुक्त जिला घोषित होने की तैयारी में जुटा है, बस आउटर में खड़ा है, मुख्यमंत्री की हरी झंडी का सिर्फ इंतज़ार ही शेष बताया जा रहा है। प्रशासनिक तैयारियां जोरो पर बताई जा रही है, कुनकुरी समेत सभी चर्चित टॉउनशिप में निवासरत एक बड़ी आबादी वर्षों से नक्सलवाद का दंश झेल रही थी। लेकिन अब यह इलाका विकास की गति में तेजी से छलांग लगा रहा है। बुनियादी सुविधाओं के अलावा कई सरकारी योजनाएं गांव-गांव में परवान चढ़ रही है।

आदिवासियों के सच्चे मसीहा के रूप में मुख्यमंत्री साय की जय-जयकार करने वालो की झड़ी लगी है। लेकिन इलाके के कई सरकारी अधिकारी और नेता VIP सुविधाओं के छीनने से अपनी नाक-भौंए भी सिकोड़ रहे है, गनमैन से लेकर कई सुविधाएँ अपनी वापिसी सुनिश्चित कर रही है। VIP कल्चर पर अचानक विराम लगने से जनता उत्साहित है, उन्हें अब इलाके में तरक्की की राह नजर आ रही है। उपलब्धि का सेहरा, मुख्यमंत्री साय के प्रयत्नों पर बंध रहा है, ‘नक्सलवाद से मुक्ति’ जंगल के भीतर निवासरत एक जरुरतमंद बड़ी आबादी को उम्मीद की नई किरणों के रूप में नजर आ रही है। सुकमा जिले की बड़ेसट्टी ग्राम पंचायत प्रदेश की पहली नक्सल मुक्त पंचायत बन चुकी है, अब बारी जिले की बताई जाती है, इसमें जशपुर का नाम अव्वल नंबर पर बताया जा रहा है।

टुटेजा की पहली जेल बरसी पर आत्म शांति यज्ञ, सरदार को असरदार बताया यजमानों ने….
राजनैतिक गलियारे से लेकर प्रशासनिक गलियारों में तत्कालीन सुपर सीएम टुटेजा की पहली जेल बरसी धूमधाम के साथ मनाई गई। सरकारी दफ्तरों के टेबलों में चाय की चुस्कियों के साथ ‘साहब’ के चर्चे लोगों की जुबान पर रहे। साहब से करीब का नाता रखने वाले कई यजमानों ने पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ पहली वर्षगांठ का लुफ्त उठाया। इस मौके पर कभी ‘साहब’ के रुख तो कभी कामकाज के तौर-तरीकों मसलन काले कारनामों पर दूधिया रौशनी वाला प्रकाश डाला गया। एक यजमान ने ज्ञान का दीप जलाते हुए तस्दीक कि, अनिल भइया के कर कमलों से ही गाय गोबर और सरकार का सत्यानाश हुआ था। एक ओर ग्रामीण जनता को गोबर बीनने में व्यस्त कर दिया गया, वही दूसरी ओर भूपे की टोली काला सोना मतलब, कोयला निकालने में जुट गई थी।

इस योजना के दूरगामी परिणामों से जहाँ बीते 5 सालों में कई ग्रामीण होनहार ‘गोबर पति’ भी नहीं बन पाए, वही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जमे ‘कका का कुनबा’ ‘कुबेर पति’ बन कर रातों-रात उद्योग जगत में छा गया था ? ये और बात है कि सुपर सीएम जेल में और पूर्व सीएम जेल के आउटर में आह भर रहे हो। एक अन्य यजमान ने तो रहस्यों पर से पर्दा हटाते हुए वो किस्सा भी सुना डाला जब साहब को एक सरदार पर रौब झाड़ना महंगा पड़ गया था।
किस्सा यू बताया जाता है कि सुपर सीएम ने एक दिन नान घोटाले की फाइलों पर आंखे तरेरी फिर तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह को फ़साने का फरमान जारी किया। भूपे की मंशा से अवगत कराते हुए पहले सरदार जी को अपराध पंजीबद्ध करने के फार्मूले बताये ? फिर गिरफ्तारी का नुस्खा आजमाने का जौहर भी दिया। लेकिन दांव उल्टा पड़ गया। साहब के साथ टेबल पर माथापच्ची में जुटे एक सरदार जी का अचानक माथा फिर गया। फिर जो हुआ, वो कम असरदार घटनाक्रम नहीं था।

प्रत्यक्षदर्शी बताते है कि टेबल के दूसरी ओर बैठे सरदार जी ने जब अपना मुँह खोला तो आकाशवाणी की तर्ज पर साहब के चेंबर से अचानक MC-BC जैसे कर्णप्रिय वाक्य गूंज उठे, विवेचना कैसी करनी है, आरोपी मुझे समझायेगा ? बताते है कि भड़कती हुई मुख-मुद्रा में दिखाई दे रहे सरदार जी की फटकार के बाद चेंबर में कुछ देर तक वीरानी छा गई थी। सरदार पर रौब झाड़ना महंगा पड़ता देख, भइया ने फ़ौरन माफ़ी मांगते हुए अपना फरमान वापिस ले लिया था। फ़िलहाल, टुटेजा एंड कंपनी के फले-फूले कारोबार पर केंद्रीय एजेंसियों की निगाहे इनायत बताई जाती है।

राजनीति की दहलीज पर वरिष्ठ नौकरशाहों का मान-सम्मान, पिक एंड चूज का नया सुशासन….
छत्तीसगढ़ में सुशासन तिहार सिर पर है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय जनता को नई सौगातें देंगे, तो सरकारी योजनाओं की नब्ज भी इस तिहार में टटोली जाएगी। विष्णुदेव के दरबार ने पीड़ित जनता को तहसीलदारों के क्रियाकर्मों से बड़ी राहत तो दे दी है, लेकिन जनता पटवारियों से भी उतनी ही हैरान परेशान बताई जाती है। इस बीच प्रदेश के वरिष्ठ नौकरशाहों के मान-सम्मान, स्वाभिमान और कर्तव्यनिष्ठा का मामला भी विष्णुदेव साय के दरबार में न्याय की बांट जोह रहा है। सेवाकाल के दौरान नौकरशाही का एक मजबूत धड़ा प्रशासनिक गतिविधियों के संचालन में पिक एंड चूज की नई बीमारी से ग्रसित बताया जाता है। प्रशासनिक मामलों के जानकार इसे नया सुशासन करार दे रहे है।

पुलिस, वन और प्रशासनिक महकमों में नए मुखिया की सुगबुगाहट तेज है। इस बीच उच्च स्तरीय पदों के लिए कई सरकारी सेवक अपनी वरिष्ठता और अहर्ता की नजरअंदाजी को लेकर दो-चार हो रहे है। उन्हें मुख्यमंत्री से न्याय की उम्मीद है। बताते है कि पूर्ववर्ती भूपे राज की तर्ज पर अभी भी कई वरिष्ठ अधिकारी गुमनामी के दौर से गुजर रहे है। उनकी पदोन्नति भी हो चुकी है, लेकिन पुलिस, प्रशासनिक, वन और जलवायु जैसे बड़े विभागों में योग्य अफसरों की प्रतिभा का लाभ उठाने के मामले में प्रदेश की जनता वंचित नजर आ रही है। कई वरिष्ठ नौकरशाहों के लिए पदस्थापना का लंबा इंतजार प्रताड़ना से कम नहीं नजर आ रहा है।

बताते है कि महकमों में रिक्त पदों के बावजूद कई वरिष्ठों को अपनी नियुक्ति के लिए महीनों से इंतजार कराया जा रहा है। लेकिन सत्ता और संगठन के आश्वासन नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह दब कर रह गए है। जानकारों के मुताबिक जूनियर अधिकारियों की वरिष्ठ अफसरों कों ठिकाने लगाने की प्रवृत्ति ‘सरकार’ की मंशा पर भारी पड़ रही है, अपनों का ख्याल रखने के लिए ‘कुर्सी रिजर्व’ रखने का नया चलन प्रदेश की नौकरशाही पर भारी गुजर रहा है। जूनियर अधिकारियों की टोली बीजेपी सरकार की राह को आसान बनाएगी या फिर कायदे-कानून और सरकार की मंशा पर फेरेगी पानी यह देखना गौरतलब होगा ?