रायपुर: छत्तीसगढ़ में कांग्रेस शासन काल के आखिरी 3 सालों में अरबों की सरकारी जमीन की बंदरबाट हो गई। बेजा कब्जे और अतिक्रमित भूमि के व्यवस्थापन के साथ – साथ सामुदायिक भवनों के लिए आवंटित होने वाली जमीनों को हड़पने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री ने कोई कसर बाकि नहीं छोड़ी थी। सरकारी जमीन कब्जाने के लिए बाकायदा मंत्रालय से आदेश निकाला गया था। इस आदेश के तहत भूमाफियाओं को फायदा पहुंचाने के लिए परिपत्र भी जारी किये गए थे। इसके बाद वर्ष 2019 से लेकर 2023 तक की अवधि के बीच प्रदेश भर में हज़ारों एकड़ सरकारी जमीन कुपात्रों के नाम कर दी गई। इस सरकारी बंदरबाट वाली योजना का लाभ उठाने वालों में सबसे अव्वल नंबर पर राज्य के पूर्व चीफ सेकेटरी विवेक ढांड का नाम है। उसे मात्र 50 – 60 लाख में 500 करोड़ से ज्यादा बाजार भाव वाली जमीन हाथ लगी है।
यह जमीन रायपुर के सिविल लाइन इलाके में स्थित है। बताते है कि इस स्थान में ढांड ने लगभग 4 एकड़ से ज्यादा जमीन पर अपना कब्ज़ा जमाया हुआ है। शहरों में 1 हज़ार फ़ीट से लेकर 44 हज़ार स्क्वायर फ़ीट जमीन वाले लाभार्थियों की संख्या भी सैकड़ों में बताई जा रही है। खास बात यह है कि सरकारी जमीन हथियाने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल के समर्थकों का नाम सबसे ऊपर है। प्रदेश के कई जिलों में अपने ऐसे सेवाभावी कार्यकर्ताओं को बघेल ने उपकृत किया है, जबकि पार्टी के निष्ठावान हज़ारों कार्यकर्ता कांग्रेस का झंडा – डंडा बुलंद कर सिर्फ सड़क नापते रहे। सरकारी जमीनों के आवंटन की लंबी फेहरिस्त सुर्ख़ियों में है। इसमें कई चौंकाने वाले ऐसे नेता और अफसरों के परिजनों का नाम भी शामिल है, जो करोड़पति होने के बावजूद योजना का लाभ उठाने के लिए खुद को कंगाल बताने में भी पीछे नहीं रहे। हालाँकि भूपे की सरकारी जमीनों की बंदरबाट योजना पर बीजेपी सरकार ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कैबिनेट में उस आदेश को ही रद्द कर दिया है, जिसके जरिये सरकारी जमीनों को कौड़ियों के दाम आवंटित कर अवसरवादियों को तश्तरी में रखकर परोसा जा रहा था। राज्य के नगरीय क्षेत्रों में शासकीय भूमि के आबंटन और भूमि स्वामी को हक प्रदान करने के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए इस संबंध में पूर्व में जारी निर्देश और परिपत्रों को कैबिनेट ने निरस्त कर दिया है। इससे सरकारी जमीनों की वापिसी भी तय हो सकेगी। कैबिनेट ने राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा नगरीय क्षेत्रों में अतिक्रमित भूमि के व्यवस्थापन, शासकीय भूमि के आबंटन एवं वार्षिक भू-भाटक के निर्धारण एवं वसूली प्रक्रिया संबंधी उस आदेश को ही रद्द कर दिया है, जो 11 सितम्बर 2019 को जारी किया गया था।
इसके तहत एक अन्य परिपत्र में नगरीय क्षेत्रों में प्रदत्त स्थायी पट्टों का भूमिस्वामी हक प्रदान किए जाने संबंधी 26 अक्टूबर 2019 को जारी परिपत्र, नजूल के स्थायी पट्टों की भूमि को भूमिस्वामी हक में परिवर्तित किए जाने के लिए 20 मई 2020 को जारी एक अन्य परिपत्र तथा नगरीय क्षेत्रों में शासकीय भूमि के आबंटन, अतिक्रमित भूमि के व्यवस्थापन और भूमि स्वामी हक प्रदान करने के संबंध में 24 फरवरी 2024 को जारी एक नए परिपत्र को भी ख़ारिज कर दिया गया हैं। बताया जाता है कि समय – समय पर जारी इन्ही आदेश – परिपत्रों के जरिये प्रदेशभर में सरकारी जमीनों की बंदरबाट चल रही थी। सरकारी जमीन हड़पे जाने वाली इस योजना का फायदा उन्ही लोगों को मिल रहा था, जिनका नाम पूर्व मुख्यमंत्री भूपे की गुड लिस्ट में शामिल बताया जाता है।
यह भी बताया जाता है कि जरूरतमंदों को सरकारी जमीन उपलब्ध कराने के बजाय कुपात्रों को आवंटित की जा रही थी। इसमें बड़ी संख्या में धन्ना सेठों, नेताओं और कई अफसरों के नाते – रिश्तेदारों का नाम भी शामिल है। सूत्रों के मुताबिक सामुदायिक भवनों के आवंटन में भी बड़े पैमाने पर धांधली बरती गई है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कुछ खास समुदायों कों सामुदायिक भवन निर्माण के लिए जमीन आवंटन और आर्थिक सहायता में भी भाई – भतीजावाद और भेदभाव बरता था। उनके समर्थक समुदायों को कई जिलों में जमीन स्वीकृत की गई। लेकिन प्रदेश में निवासरत अन्य जरूरतमंद समुदायों की ओर से मुँह मोड़ लिया गया था। नतीजतन बड़ी तादात में कई ऐसे समुदाय भवनों, आर्थिक सहायता और जमीन आवंटन को लेकर पूरे 5 साल तक तत्कालीन मुख्यमंत्री के फरमानों की राह तकते रहे।
फ़िलहाल प्रदेश में एक बड़े जमीन घोटाले की बू आते ही साय कैबिनेट ने उसकी रोकथाम शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि जल्द ही कुपात्रों को आवंटित की गई, सरकारी जमीन की वापिसी होगी। सरकार ने इस मामले में पारदर्शिता बरतने के निर्देश भी दिए है। बताते है कि आवंटन प्रक्रिया संबंधी इन प्रपत्रों के अंतर्गत जारी आदेशों के तहत आबंटित भूमि की जानकारी राजस्व विभाग की वेबसाइट में प्रदर्शित की जाएगी। यही नहीं इस विषय में कोई भी आपत्ति और शिकायत प्राप्त होने पर संभागीय आयुक्त द्वारा इसकी सुनवाई की जाएगी।