रायपुर/बिलासपुर – छत्तीसगढ़ में कई गंभीर अपराधों को अंजाम देने वाले एडीजी मुकेश गुप्ता के साथ एक बार फिर सरकार की फिक्सिंग सामने आई है | लोगों को यकीन होने लगा है कि पिछले दरवाजे से ही सही मुकेश गुप्ता की PHQ में एंट्री होने वाली है | हालांकि कुख्यात आरोपी मुकेश गुप्ता इस बारे में कई बार तस्दीक कर चूका है | इस आरोपी को सबक सिखाने के बजाए कांग्रेस सरकार के कर्णधार जिस तरह से आम जनता के साथ आंख मिचौली का खेल खेल रहे है , वह वाकई हैरत में करने वाला है |
ताजा मामला बिलासपुर जिले के सिविल लाइन थानाक्षेत्र का है | यहां की जिला अदालत ने मुकेश गुप्ता समेत आधा दर्जन से अधिक EOW-ACB के अधिकारीयों के खिलाफ नामजद करते हुए चार सौ बीसी समेत अन्य धाराओं में अपराध दर्ज करने के निर्देश दिए थे | लेकिन स्थानीय पुलिस ने अदालत की अवमानना करते हुए स्थानीय थाने में प्रकरण तो दर्ज किया , लेकिन अज्ञात के खिलाफ | अदालत के निर्देश के बावजूद नामजद आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज ना करने के सवाल पर पुलिस जवाब दे रही है कि ऊपर से ही अज्ञात के खिलाफ प्रकरण दर्ज करने के निर्देश दिए गए थे | लेकिन कितनी ऊपर से आदेश आया , इसे लेकर अफसर चुप्पी साधे हुए है | आमतौर पर अदालत के निर्देश पर नामजद आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर संबंधित पुलिस सबूतों और तथ्यों के साथ चालान पेश करती है | लेकिन इस मामले में मुकेश गुप्ता को नामजद किये जाने के चलते अदालत के निर्देश को भी धत्ता बताने में शासन पीछे नहीं है |
फ़िलहाल लोग पूछने लगे है कि आखिर कब गिरफ्तार होगा डबल 420 एडीजी मुकेश गुप्ता | बिलासपुर की जिला अदालत के निर्देश पर लगभग 7 माह से ज्यादा दिनों बाद इस कुख्यात आरोपी को लेकर प्रकरण दर्ज तो हुआ , लेकिन सिर्फ खानापूर्ति के लिए | ऐसे में “अब होगा न्याय” नाम से सुर्ख़ियों में आए कांग्रेस सरकार का स्लोगन सिर्फ शगूफा ही साबित हो रहा है | इस बीच कुख्यात आरोपी मुकेश गुप्ता को उसके अपराधों को लेकर होने वाली सजा से बचाने की सरकारी कोशिशे-फिक्सिंग की चर्चा जोरो पर है |
बिलासपुर की जिला अदालत ने कुख्यात और निलंबित एडीजी मुकेश गुप्ता एवं उसके गिरोह के खिलाफ चार सौ बीसी समेत कई गंभीर धाराओं में अपराध दर्ज करने के निर्देश दिनांक 24/12/2019 को दिए थे | राज्य में अदालत के निर्देश के बाद किसी भी शख्स के खिलाफ FIR दर्ज करने पर पुलिस कोताही नहीं बरतती | लेकिन छत्तीसगढ़ में राज्य की कांग्रेस सरकार और कुख्यात आरोपी मुकेश गुप्ता की फिक्सिंग का अनूठा संयोग देखने को मिल रहा है | बिलासपुर की जिला अदालत के बाद अब जाकर क्राईम नंबर 0791/2020 के तहत कायमी की है | वो भी तब जब पीड़ित पक्षकार ने अदालत की अवमानना की सूचना कोर्ट में पेश की |
तत्कालीन बीजेपी सरकार में कुख्यात आपराधिक गतिविधियों में लिप्त पुलिस के आला अफसरों के साथ कांग्रेस सरकार की सांठगांठ हो जाना राज्य की कानून व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रहा है | अदालत ने अपने निर्देश में आरोपियों को नामजद किया था | लेकिन पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ प्रकरण पंजीबद्ध कर साफ़ कर दिया है कि वो पीड़ित को न्याय नहीं दिलाना चाहती बल्कि कुख्यात आरोपियों को बचाना चाहती है | इस मामले में पीड़ित परिवार की दलील तो यही है | यह परिवार राज्य के मुख्यमंत्री से न्याय की गुहार लगा रहा है | उसकी दलील है कि कम से कम अदालत निर्देशित कार्रवाई को तो सरकार वैधानिक तरीके से अंजाम तक पहुंचाए |
छत्तीसगढ़ में पुलिस मुख्यालय से लेकर EOW-ACB में पदस्थ रहे कई गंभीर मामलों का आरोपी और कुख्यात एडीजी मुकेश गुप्ता के अपराधिक कारनामे प्याज के छिलकों की तरह सामने आ रहे है | अदालत ने जिन अफसरों के खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज करने के निर्देश दिए गए थे |,उनमे निलंबित मुकेश गुप्ता आईपीएस 1988 बैच , तत्कालीन एडीजी ACB-EOW , रजनेश सिंह तत्कालीन एसपी ACB , अरविंद कुजूर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक EOW , अशोक जोशी डीएसपी EOW , लॉरेंस खेस निरीक्षक EOW/ACB , संजय देव स्थले निरीक्षक ACB , ज्ञानेश्वर चन्द्रवंशी कम्प्यूटर ऑपरेटर ATS , राकेश जाट कम्प्यूटर प्रभारी ATS और अजितेश सिंह निरीक्षक ACB बिलासपुर शामिल है |
कथित तौर पर कूटरचित FIR तैयार करने और असत्य तथा अपूर्ण तथ्यों के साथ सर्च वारंट के आधार पर तलाशी लिए जाने के मसले पर पेश परिवाद पर CJM डमरुधर चौहान के आदेश पर धारा -120-B-IPC, 166-IPC, 167-IPC, 213-IPC, 218-IPC, 380-IPC, 382-IPC, 420-IPC, 467-IPC, 468-IPC, 471-IPC, 472-IPC के तहत अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना के निर्देश थाना सिविल साईंस थाने को दिए गए थे | लेकिन बिलासपुर की पुलिस ने किसी भी आरोपी को नामजद ना करते हुए अज्ञात के विरुद्ध क्राईम नंबर 0791/2020 कायम कर विवेचना शुरु कर दी गई है।जिस परिवाद पर जारी निर्देश पर यह मामला पंजीबद्ध किया गया है उसमें परिवादी पवन अग्रवाल हैं, जो कि जल संसाधन विभाग में पदस्थ रहे कार्यपालन अभियंता आलोक अग्रवाल के भाई हैं।
एंटी करप्शन ब्यूरो में 6 साल पहले दर्ज एक मामले में पीड़ित परिवार ने परिवाद दायर किया था | पीड़ित पवन अग्रवाल ने दायर परिवाद में तथ्य प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा था कि एसीबी ने साल 2014 में उनके भाई आलोक अग्रवाल के खिलाफ जांच संस्थित किया था, इस दौरान वे जल संसाधन विभाग में बतौर ईई पदस्थ थे। उनके साथ मुकेश गुप्ता और उसके गिरोह ने ज्यादती करते हुए पवन अग्रवाल के भी घर पर दबिश दी थी | इसमें उनकी चल-अचल करोड़ों की संपत्ति को गैर क़ानूनी रूप से जप्त कर लिया गया था। पवन अग्रवाल के मुताबिक पूरी कार्रवाई तात्कालीन एसीबी चीफ एडीजी मुकेश गुप्ता और एसपी रजनेश सिंह के निर्देश पर हुई थी, जबकि सर्च वारंट में एफआईआर नंबर दर्ज नहीं था। वहीं जप्ती के संदर्भ में कोई भी पत्रक न्यायालय में पेश नहीं किया गया था ।
परिवाद में यह आरोप लगाया गया था कि,30 दिसंबर 2014 को ACB के अधिकारी विजय कटरे और आलोक जोशी पहुँचे और सर्च वारंट दिखाया गया , सर्च वारंट में FIR नंबर अंकित नही था,अधिकारीयों ने सर्च के दौरान आवेदन की निजी संपत्ति, स्व अर्जित आय और स्त्रीधन के आभूषण को जप्त किया, और इसके लिए तत्कालीन ACB के मुखिया मुकेश गुप्ता और कप्तान रजनीश सिंह के मौखिक निर्देश का हवाला दिया। इस जप्ती का कोई पत्रक न्यायालय में पेश भी नही किया गया। वहीं यह सूचना भी प्राप्त हुई कि,जिस अपराध क्रमांक 56/14 के तहत सर्च किया गया, वैसी कोई FIR थाना ऐसीबी/ईओडब्लू में दर्ज नही है।
जेएम बिलासपुर ने इस परिवाद को पंजीबद्ध कर आदेश देते हुए लिखा है – “परिवादी के द्वारा पुलिस अधीक्षक राज्य आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो से जाँच कराए जाने का निवेदन किया गया है,किंतु प्रस्तुत परिवाद में आर्थिक अपराध के अपराध किए जाने के संबंध में परिवाद में उल्लेख नही किया गया है, और ना ही ऐसा कोई दस्तावेज पेश किया गया है,ऐसी स्थिति में प्रस्तुत परिवाद की जाँच पुलिस अधीक्षक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो रायपुर से कराये जाने की आवश्यकता दर्शित नही होती, बल्कि इस न्यायालय के सुनवाई क्षेत्राधिकार में स्थित थाना सिविल लाईंस से कराया जाना उचित प्रतीत होता है”
परिवाद पर अदालत के निर्देश पर थाना सिविल लाईंस ने अज्ञात के विरुद्ध धारा -120-B-IPC, 166-IPC, 167-IPC, 213-IPC, 218-IPC, 380-IPC, 382-IPC, 420-IPC, 467-IPC, 468-IPC, 471-IPC, 472-IPC के तहत अपराध पंजीबद्ध कर लिया गया है। जबकि अदालत में प्रस्तुत परिवाद में आरोपियों के नाम उल्लेखित किये गए है | पंजीबद्ध किए गए अपराध में आरोपीयो का नाम अज्ञात क्यों ? यह पूछे जाने पर विवेचना से जूड़े पुलिस अधिकारी ऊपर से आए निर्देश का हवला दे रहे है | पुलिस विवेचना के जानकारों और सेवा निवृत अधिकारियों के मुताबिक ऐसा तब किया जाता है जब किसी अधिकारी-आरोपी को बचाना हो | उनके मुताबिक यह प्रथम दृष्टया अदालत की अवमानना का मामला है | “किसने कूटरचित दस्तावेज बनाए या नही बनाए ? कौन दोषी है कौन दोषी नही है ? यह विवेचना के बाद स्पष्ट होगा | इसके लिए सबूतों का भार नामजद आरोपियों पर होगा | ना कि अज्ञात आरोपियों पर | उनके मुताबिक जाँच में जैसे जैसे तथ्य आते जाएँगे वैसे वैसे नए आरोपी भी बनेगे | लेकिन अदालत के निर्देश पर ज्ञात आरोपियों को बचाना गैर क़ानूनी गतिविधि के दायरे में है |