बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में असंवैधानिक रूप से धर्मांतरण एक बड़ा मुद्दा बन गया है। इस मामले को लेकर जहां पुलिस – थानों में आए दिन कोहराम मच रहा है। वही अदालत में भी लगातार याचिकाएं दायर हो रही है, एक ऐसे ही प्रकरण में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है। कानून के जानकारों के मुताबिक, हाई कोर्ट के विद्वान न्यायाधीशों का फैसला “नज़ीर” के रूप में देखा जा रहा है।

अदालत ने संविधान की रक्षा और जनता के अधिकारों को लेकर महत्त्वाकांक्षी फैसला सुनाया है। दरअसल, छत्तीसगढ़ के कई गांव में अवैध रूप से धर्मांतरण रोकने के लिए पादरियों की आवाजाही पर रोक लगा दी गई है । इससे बिफरे एक समुदाय विशेष के लोगों ने पुलिस – थानों से लेकर अदालत तक का दरवाज़ा खटखटाया था।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कांकेर जिले के आठ गांवों में लगे होर्डिंग्स को हटाने की याचिका को खारिज कर दिया है, जिनमें पादरियों के आने पर रोक लगाने की बात लिखी गई थी। अदालत ने कहा है, कि ये होर्डिंग्स आदिवासी समुदाय के हितों और स्थानीय संस्कृति की विरासत की रक्षा के लिए लगाए गए हैं और ये असंवैधानिक नहीं हैं।

याचिकाकर्ता दिग्बल टांडी ने कहा, कि ईसाई समुदाय और उनके धार्मिक नेताओं को ग्रामीण समुदाय से अलग-थलग किया जा रहा है, जबकि राज्य सरकार ने कहा कि ये होर्डिंग्स जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए लगाए गए हैं और ये PESA Act, 1996 के तहत ग्राम सभाओं के अधिकारों के अंतर्गत आते हैं। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि लालच या धोखे से किए जाने वाले जबरन धर्म परिवर्तन से रोकने के लिए लगाए गए होर्डिंग्स को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।
