बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में अदालत बोल रही है, इसके चलते आम जन-मानस के मन में देश की न्याय-पालिका के प्रति विश्वास बढ़ा है। उनके मन में तेजी से विश्वास कायम हो रहा है कि संवैधानिक दायित्वों के पालन की दिशा में अदालत ना केवल गंभीर है, बल्कि जनता को न्याय का आभास हो रहा है। ताजा मामला छत्तीसगढ़ में कायदे-कानूनों के पालन और संवैधानिक दायित्वों कों सुनिश्चित करने की दिशा में हाईकोर्ट की सख्ती से जुड़ा है। नए साल के आगमन के पूर्व और पुराने वर्ष की विदाई की बेला में एक बार फिर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की सक्रियता सुर्ख़ियों में है। अदालत की मंशा से पीड़ित जनता को न्याय की उम्मीद बंधी है।
दरअसल, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की स्पेशल डिवीजन बेंच ने गुरुवार को सरकारी छुट्टी के बावजूद प्रदेश के कई महत्वपूर्ण प्रकरणों पर स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई की है। इस दौरान अदालती कार्यवाही से हड़कंप है। राज्य में भ्रष्टाचार, अनियमितता और नौकरशाही की बेलगाम कार्यप्रणाली पर अदालत की तिरछी नजर से न्यायपालिका के महत्व से एक बड़ी आबादी को वाकिफ होने का मामला सामने आया है। अदालत की सक्रियता और मंशा से लोगों को राहत की उम्मीद बंधी है। राज्य में यह पहला मौका है, जब अवकाश के दिनों में हाईकोर्ट की स्पेशल बेंच ने एक साथ कई प्रकरणों पर संज्ञान लेकर सुनवाई की है। अदालत में जनहित से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई को प्रदेश में न्याय की दिशा में एक स्वास्थ्य नई परंपरा और सक्रियता के साथ गुणकारी कदम के रूप में देखा जा रहा है।
दरअसल, अदालत ने बस्तर, सरगुजा और चांपा जिले में बिना टेंडर करोड़ों के सोलर पैनल की खरीदी और रेलवे द्वारा यात्री सीटों को नाली के स्लैब के तौर पर उपयोग करने के चौंकाने वाले प्रकरणों पर सरकारी छुट्टी के बावजूद सुनवाई की है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविन्द्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने प्रदेश के कई सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली, मनमानी और लापरवाही पर अपनी नाराजगी-हैरानी भी जताई है। अदालत ने कायदे-कानूनों के उल्लंघन से जुड़े इन सभी प्रकरणों में संबंधित एजेंसियों और जिम्मेदार अधिकारियों से जवाब-तलब करने के निर्देश दिए हैं। जानकारी के मुताबिक ऐसे सभी प्रकरणों को अदालत ने जनहित से जुड़े प्रकरणों के आधार पर सुनवाई के बाद क़ानूनी कार्यवाही शुरू की है। अदालती सूत्रों के मुताबिक विभिन्न प्रकरणों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर अब क़ानूनी शिकंजा कस सकता है।
जानकारी के मुताबिक हालिया दिनों प्रेस-सोशल मीडिया में रेलवे से जुड़े एक मामले में हैरान करने वाली रिपोर्ट सामने आई थी। इसमें बताया गया था कि रेलवे कर्मचारियों ने ट्रेनों के गद्देदार सीटों से नाले का स्लैब बना दिया है। इस खतरनाक स्लैब से लोग नाला पार कर रहे हैं। यह रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी कि ट्रेनों में बैठने के लिए बनाई गई गद्देदार सीटों का दुरुपयोग कर रेलवे कर्मचारियों द्वारा नालियों के ऊपर रख देने से विभाग की लापरवाही और अकुशलता सामने आई है। नाली के ऊपर रखी गई सीटें न केवल रेलवे संसाधनों के दुरुपयोग और सड़क सुरक्षा एवं स्वच्छता के खतरे को भी इंगित करती है। यह स्थिति रेलवे विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है।
रिपोर्ट में इस्तेमाल की गई सीटों के टूटने के खतरे से भी लोगों को वाकिफ कराया गया था। जानकारी के मुताबिक इस खबर को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने संज्ञान में लेते हुए पीआईएल के रूप में सुनवाई प्रारंभ की है।हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे की जीएम को नोटिस जारी कर शपथ पत्र के साथ इस पूरे की जानकारी पेश करने का निर्देश दिया है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से डिप्टी सालिसिटर जनरल रमाकांत मिश्रा ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पैरवी की। जनहित याचिका की अगली सुनवाई के लिए 13 जनवरी की तिथि अदालत ने तय की है।