दिल्ली वेब डेस्क / कोरोना वायरस की वैक्सीन की अंतिम तैयारी और ट्रायल के दौरान एक बढ़ी घटना ने वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया है | इन वैज्ञानिकों को अब चिंता सताने लगी है कि कही अब तक की उनकी मेहनत ख़राब ना हो जाये | दरअसल दुनियाभर में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में जुटे वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि कोरोना वायरस कई मौकों पर अपना रूप बदल रहा है | उसका बर्ताव स्यूडो मोनास नामक बैक्ट्रिया की तर्ज पर मालुम होता है |
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इसी वजह से वैज्ञानिक इस तथ्य को मॉनिटर करने में जुटे हैं कि SARS-CoV-2 में किस तरह का आनुवांशिक बदलाव हो रहा है | npr.org में छापी रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने बताया कि कोरोना वायरस में बदलाव हो रहा है | यही बदलाव वैक्सीन बनाने को लेकर उनके लिए मुसीबत जैसा है | हालाँकि उनका यह भी कहना है कि इस बदलाव पर उनकी पूरी निगाह है | इसका तोड़ भी निकाला जा रहा है | ताकि वैक्सीन बेकार ना हो जाए | जॉन्स हॉपकिन्स अप्लाइड फिजिक्स लैब के सीनियर साइंटिस्ट पीटर थीलेन कहते हैं कि उन्हें आज की तारीख तक, बहुत कम म्यूटेशंस मिले हैं |
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उनके मुताबिक अब तक उन्होंने जो देखा है, संभवत: उसका वायरस के काम करने के तरीके पर कोई असर नहीं होता | थीलेन ने बताया कि आज कोरोना वायरस के 47 हजार Genomes इंटरनेशनल डेटाबेस में स्टोर किए गए हैं | उसकी स्टडी से ये पता चलता है कि वायरस में किस प्रकार का बदलाव हो रहा है | साइंटिस्ट पीटर थीलेन बताते हैं कि जब भी दुनिया के किसी हिस्से से कोई वैज्ञानिक इंटरनेशनल डेटाबेस में नया Genomes डालते हैं तो उसकी पूरी स्टडी की जाती है |
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उन्होंने कहा कि गौरतलब बात ये है कि आज जो भी वायरस फैल रहा हैं, वह चीन में मिले वायरस की तरह ही हैं | पीटर थीलेन के मुताबिक वैक्सीन तैयार करने की कोशिश की जा रही है | उधर स्विट्जरलैंड के बसेल यूनिवर्सिटी में महामारी मामलों की जानकार एम्मा हॉडक्रॉफ्ट के मुताबिक कोरोना वायरस में जो भी म्यूटेशन हो रहा है और जिस स्पीड से हो रहा है, इसमें घबराने जैसी कोई बात नहीं है | उन्होंने कहा कि बड़ा सवाल है कि क्या वैक्सीन एक बार देना होगा या फिर हर कुछ साल के बाद वैक्सीन को मरीजों के जेनेटिक प्रभाव को देखते हुए अपडेट करने की जरूरत होगी?