रायपुर: छत्तीसगढ़ में सरकारी आपातकालीन एंबुलेंस सेवा आखिर क्यों पीड़ितों को समय पर उपलब्ध नहीं हो पाती ? इसे लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की सख्ती सामने आई है, 108 और 102 एम्बुलेंस सेवा अपने तय प्रावधानों के तहत सेवाएं प्रदान करने में फिसड्डी साबित हुई है। नतीजतन, हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी के साथ आपातकालीन सेवाओं को सुचारु बनाये रखने का फरमान जारी किया है। अदालत ने रेलवे स्टेशन में कैंसर पीड़ित महिला को एंबुलेंस मुहैया नही होने पर सख्त फैसला सुनाया है, इसके साथ ही 3 लाख रुपए बतौर मुआवजा पीड़ित कों देने का आदेश दिया है, इसमें 1 लाख रुपए रेलवे मंत्रालय और 2 लाख रुपए छत्तीसगढ़ शासन को प्रदान करना होगा, इस आदेश देने के साथ ही कोर्ट ने पीड़ित की याचिका निराकृत कर दी है।

प्रदेश के कई जिलों में आपातकालीन एम्बुलेंस सेवाएं अपने मार्ग से भटकती नजर आ रही है। इनकी दशा-दिशा को लेकर आम नागरिक हैरान है। एक ऐसे ही प्रकरण के मीडिया में सुर्खियां बनने के बाद हरकत में आई अदालत ने मामले का स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की थी। जानकारी के मुताबिक स्थानीय रेलवे स्टेशन में बीमारों को एंबुलेंस सुविधा नहीं मिलने पर हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ शासन के स्वास्थ्य विभाग और रेलवे की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताते हुए पीड़िता को फौरी राहत दी है। कोर्ट ने राज्य शासन और रेलवे को शपथपत्र के साथ अपना जवाब देने के लिए पर्याप्त मौका दिया था।

अदालत में मामले की सुनवाई के दौरान रेलवे की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने जवाब देते हुए बताया था कि रेलवे की ओर से मौके पर स्टाफ भेजा गया था, पर वहां कोई नहीं मिला। जबकि राज्य शासन की ओर से भी एंबुलेंस सुविधा के संबंध में ऐसी ही औपचारिक जानकारी अदालत को दी गई थी। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद रेलवे और राज्य सरकार के जवाब को अपर्याप्त माना। इसके साथ ही अदालत ने रेलवे और शासन की ओर से कुल 3 लाख रुपए क्षतिपूर्ति मृतका के परिजनों को देने के निर्देश दिए।

अदालत ने सरकारी एम्बुलेंस सेवाओं के मद्देनजर भविष्य में मरीजों को स्वास्थ्य सुविधा और एंबुलेंस उपलब्ध कराने के निर्देश दिए है। चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने पिछली सुनवाई का हवाला देते हुए राज्य सरकार से पूछा था कि आपातकालीन एम्बुलेंस सेवा व्यवस्था सुधार के लिए क्या किया जा रहा है। कोर्ट ने पूरी जानकारी प्रस्तुत करने के निर्देश देते हुए यह सवाल किया था कि पीड़ितों को इमरजेंसी एंबुलेंस सुविधा आखिर समय पर उपलब्ध क्यों नहीं हो पाती ? सरकार के जवाब से असंतुष्ट कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए सख्त अंदाज में कहा था कि राज्य सरकार की मुफ्त की योजनाएं हैं, फिर भी लोगों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।

जानकारी के मुताबिक मध्यप्रदेश के बुढ़ार निवासी 62 वर्षीय कैंसर पीड़िता महिला 18 मार्च 2024 को अपने परिजनों के साथ ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के जनरल कोच में रायपुर से बिलासपुर सफर पर निकली थी। बिलासपुर में ट्रेन बदल कर बुढ़ार लौटते वक़्त ट्रेन में ही उनकी तबीयत बिगड़ गई। पीड़ित महिला के परिजन ने इसकी जानकारी रेल कर्मचारियों को दी थी। यह भी बताया जाता है कि महिला यात्री की स्थिति खराब होने की सूचना पर जनरल कोच में रेलवे कर्मियों ने स्ट्रेचर जरूर भेजा। यहां कुलियों ने स्ट्रेचर में रख कर पीड़ित महिला को स्टेशन गेट के बाहर लाकर छोड़ दिया था। इस घटनाक्रम के करीब एक घंटे तक पीड़ित परिजन एम्बुलेंस उपलब्ध कराने के लिए हाथ पांव मारते रहे। लेकिन उनकी फरियाद नक्कारखाने में तूती की आवाज़ की तरह दबकर रह गई। चंद मिनटों बाद पीड़िता ने दम तोड़ दिया।

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बताया जाता है कि काफी विलंब से (एक घंटे बाद) एम्बुलेंस मौके पर आई, लेकिन मरीज की मौत हो जाने पर उसमे सवार कर्मियों ने मृतक को अस्पताल तक ले जाने से भी इंकार कर दिया। पीड़ित परिजन दूसरे वाहन की व्यवस्था कर शव ले गए थे। जानकारी के मुताबिक सिर्फ यही मामला नहीं, इसी तर्ज पर कई प्रकरण सामने आ चुके है। एक अन्य प्रकरण में दंतेवाड़ा जिले के गीदम में 11 घंटे तक एंबुलेंस नहीं पहुंचने के कारण इलाज में देरी हुई और एक मरीज की मौत हो गई थी। इस मामले में भी पीड़ित परिजन बार-बार 108 नंबर पर कॉल करते रहे। लेकिन, सुबह के बजाए एंबुलेंस रात में पहुंची थी। बताया जाता है कि इस प्रकरण की सुनवाई अदालत में अभी भी जारी है।

उधर, आपातकालीन एम्बुलेंस सेवा 102 और 108 के पहिये अभी भी लड़खड़ाते बताये जाते है, भुक्त भोगियों के मुताबिक सर्विस प्रदाता कंपनी अभी भी तय सेवा शर्तों के अनुरूप सुविधाएँ प्रदान नहीं कर रही है। स्वास्थ्य विभाग ने 108 सेवाओं के लिए नया टेंडर जारी कर दिया है, निविदा-टेंडर की म्याद हाल ही में ख़त्म भी हो चुकी है, लगभग आधा दर्जन कंपनियों ने टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा लिया है। यह भी बताया जाता है कि मौजूदा निविदा-टेंडर में अभी भी पारदर्शितापूर्ण सेवा शर्तों का आभाव है। भारी भरकम दरों पर टेंडर हथियाने के लिए पुरानी कंपनियां नए सिरे से जोड़ तोड़ में जुटी है। सूत्रों के मुताबिक सुविधाजनक टेंडर-निविदा के चलते भूतपूर्व सेवा प्रदाता जीवीके का नया खाता खोलने की तैयारी कर ली गई है।

यह भी तस्दीक की जा रही है कि निविदा-टेंडर में प्रतियोगियों को ज्यादा समय नहीं मिलने से पुराने खिलाड़ी ही अपना भाग्य आजमा रहे है। बता दे कि 108 एम्बुलेंस उपलब्ध कराने को लेकर हालिया जारी टेंडर-निविदा में प्रतियोगियों को महज एक माह के भीतर का ही समय निर्धारित किया गया था। बताते है कि निविदा-टेंडर में प्रतियोगियों को पर्याप्त समय नहीं दिए जाने के चलते कई नई कंपनियां स्वमेव प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गई है। पूर्व की भांति मौजूदा टेंडर में भी शर्ते यथावत रखी गई है, जबकि आपातकालीन सेवा प्रदाता कंपनियां मौजूदा सेवा शर्तों की धज्जियाँ उड़ा कर सरकार की मंशा पर पानी फेर रही है। जानकारों के मुताबिक टेंडर-निविदा में सेवा शर्तों पर खरी नहीं उतरने वाली कंपनियों पर कठोर क़ानूनी कार्यवाही के प्रावधानों का कोई उल्लेख नहीं किया गया है और ना ही ऐसी कंपनियों को बाऊंड करने का कोई दिशा निर्देश सेवा शर्तों में शामिल है।

यह भी बताते है कि मार्च माह में ज्यादातर कंपनियां आयकर रिटर्न समेत अन्य सरकारी प्रक्रिया में उलझी रही। इस बीच स्वास्थ्य विभाग ने अपनी कागजी खानापूर्ति कर कुछ खास सेवा शर्ते निर्धारित कर और टेंडर जारी कर दिए। फ़िलहाल, लगभग आधा दर्जन चुनिंदा कंपनियां ही प्रतिस्पर्धा में शामिल हो पाई है। बहरहाल, आपातकालीन सेवा प्रदाता कंपनियों के लिए स्वास्थ्य विभाग की सुविधाजनक ‘सेवा शर्तों’ वाली टेंडर-निविदा प्रक्रिया सुर्ख़ियों में है।