
दिल्ली/रायपुर: देशभर में लगभग 60 स्थानों में छापेमारी के बाद सीबीआई के हौसले बुलंद है। एजेंसियां बड़ी कामयाबी की ओर अग्रसर बताई जा रही है। इस बीच छापेमारी की जद में आये छत्तीसगढ़ कैडर के जिम्मेदार आईपीएस अधिकारियों की कार्यप्रणाली से छत्तीसगढ़ शासन और पुलिस की छवि पर विपरीत असर देखा जा रहा है। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के बीजेपी सरकार के मंसूबों का भी जनता ने आंकलन शुरू कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सट्टे के कारोबार में प्रथम दृष्टया लिप्त पाए गए पुलिस अधिकारियों के निलंबन की मांग सरकारी महकमों से ही उठने लगी है।
पुलिस की वर्दी में दाग के चलते आईपीएस अधिकारियों के अलावा छापेमारी की जद में आये ASP स्तर के दोनों अधिकारियों के भी फ़ौरन निलंबन किये जाने पर पुलिस मुख्यालय से लेकर मंत्रालय तक गहमा-गहमी देखी रही है। कई वरिष्ठ अफसर साय सरकार की स्वच्छ छवि को लेकर माथापच्ची कर रहे है, प्रदेश में शासन-प्रशासन की छवि धूमिल करने वाले तमाम पुलिस अफसरों के निलंबन पर जोर दिया जा रहा है। मंत्रालय से लेकर पुलिस मुख्यालय के गलियारों में आम चर्चा है कि सीबीआई की छापेमारी, केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद का खास हिस्सा है। पीएम मोदी ने दिल्ली के लाल किले से लेकर छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में महादेव ऐप सट्टा, शराब समेत अन्य घोटालों में लिप्त लोगों को जेल भेजने का वादा किया था।
उनके आगमन से पूर्व सीबीआई ने उन मगरमच्छों के ठिकानों पर दबिश दी है, जो आल इंडिया सर्विस के दिशा-निर्देशों का माखौल उड़ा रहे थे। ऐसे अधिकारियों की कार्यप्रणाली से आम जनता के बीच छत्तीसगढ़ शासन की गरिमा हनन हुई है। जबकि पुलिस की छवि सुधारने के गृह मंत्रालय के प्रयासों पर भी विपरीत असर पड़ा है।
दावा यह भी किया जा रहा है कि महादेव ऐप सट्टा घोटाले में प्रथम दृष्टया लिप्त पाए गए पुलिस अधिकारियों को फ़ौरन निलंबित नहीं करने से विवेचना के प्रभावित होने के पूरे आसार है। राजनैतिक संरक्षण प्राप्त पुलिस अधिकारियों की शासन-प्रशासन में मजबूत पकड़ और तैनाती से सबूतों के साथ छेड़छाड़ का अंदेशा भी जाहिर किया जा रहा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति से राज्य में कई गड़बड़-झालों पर रोक लगी है।
EOW ने सक्रियता के साथ कई घोटालेबाजों के ठिकानों पर दबिश देकर, प्रभावशील आरोपियों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। प्रशासनिक मामलों के जानकार सीबीआई की छापेमारी को बीजेपी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के अंतर्गत देख रहे है। उनका मानना है कई दागी अफसरों कों नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए मुख्यमंत्री साय भी निलंबन जैसा ठोस कदम उठा सकते है। भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने के लिए आम जनता के बीच कड़े संदेशों का इंतजार किया जा रहा है।
ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप महादेव बुक केस में सीबीआई ने छत्तीसगढ़ में रायपुर, दुर्ग-भिलाई सहित देश के कई राज्यों में छापामार कार्रवाई की थी। छत्तीसगढ़ के अलावा भोपाल, कोलकाता और दिल्ली से सीबीआई को कई अहम सुराग हाथ लगे है। सूत्र तस्दीक करते है कि पूर्व मुख्यमंत्री बघेल गिरोह में शामिल आईपीएस अधिकारियों के अलावा पूर्व CM भूपेश बघेल समेत उनके दोनो ओएसडी रहे मनीष बंछोर और आशीष वर्मा के ठिकानों से चौकाने वाले डिजिटल सबूत एजेंसियों के हाथ लगे है। सूत्र यह भी तस्दीक करते है कि सीबीआई ने सटीक सूचनाओं की लंबे समय तक पड़ताल करने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बघेल और उनके गुर्गों के ठिकानों पर दबिश दी थी।
जानकारी के मुताबिक राज्य प्रशासनिक सेवा की निलंबित तत्कालीन उप सचिव सौम्या चौरसिया के ठिकानों से पूर्व में ही विभिन्न एजेंसियों को भ्रष्टाचार से जुड़े कई दस्तावेजी सबूत हाथ लग चुके थे। लिहाजा, एजेंसियों ने पुख्ता सूचनाओं पर अमल करते हुए 4 IPS अधिकारियों क्रमशः 2001 बैच के आनंद छाबड़ा, 2005 आरिफ शेख, 2007 प्रशांत अग्रवाल और 2013 बैच के अभिषेक पल्लव के बंगलों में भी छापा मारा था। यह भी बताया जाता है कि इन अधिकारियों के बंगलों से प्राप्त डिजिटल सबूतों में कई ऐसे तथ्य सामने आये है, जिससे पता-पड़ता है कि पुलिस तंत्र में महादेव ऐप बुकी और उनका कारोबार क़ानूनी शक्ल ले चूका था। पुलिस के जिम्मेदार आला अफसर अवैध सट्टे पर रोक लगाने के बजाय मोटी रकम बतौर प्रोटेक्शन मनी के रूप में प्राप्त कर रहे थे।




सूत्रों के मुताबिक आला पुलिस अधिकारियों के बेनामी निवेश से जुड़े कई सटीक सबूत एजेंसियों के हाथ लगने के बाद उनके नाते-रिश्तेदारों की वैध-अवैध संपत्तियों की पड़ताल भी शुरू कर दी गई है। महाराष्ट्र में मुंबई और पुणे में आईपीएस शेख आरिफ के परिजनों के मालिकाना हक़ वाली फाइव स्टार होटल और रियल एस्टेट कारोबार से जुड़े कई अहम सबूत हाथ लगे है। इसकी भी पड़ताल की जा रही है। बताते है कि बीते 5 वर्षों के भीतर ही शेख आरिफ के साले एवं अन्य करीबी नाते-रिश्तेदारों के नाम पर बड़े पैमाने पर चल- अचल संपत्ति, और कृषि कार्यों में नामी-बेनामी निवेश किया गया था। शेख आरिफ के अलावा उनकी पत्नी 2001 बैच की आईएएस शम्मी आबिदी पर भी भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे थे।
पूर्ववर्ती भूपे सरकार के कार्यकाल में हाउसिंग बोर्ड समेत निर्माण कार्यों से जुड़ी अन्य सरकारी एजेंसियों की बागडोर उनके हाथों में सौंप दी गई थी। इन संस्थानों में ठेकेदारों के साथ मिलीभगत कर सरकारी योजनाओं में भारी भरकम भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़ी शिकायतों को राजनैतिक दबाव में रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया था। नतीजतन, इस दंपति को प्राप्त राजनैतिक संरक्षण के चलते सरकारी तिजोरी पर जहाँ करोड़ों की चपत लगी वही दागदार वर्दी के चलते पुलिस और छत्तीसगढ़ शासन की छवि धूमिल हुई।
छत्तीसगढ़ में सीबीआई की छापेमारी के जद में एडिशनल एसपी संजय ध्रुव और जेल में बंद दो निलंबित सिपाही नकुल-सहदेव के घरों से भी मोबाइल फ़ोन और अन्य डिजिटल उपकरण जब्त किये है। सीबीआई ने प्रेस नोट जारी कर दावा किया है कि, “तलाशी के दौरान आपत्तिजनक डिजिटल और दस्तावेजी साक्ष्य मिले हैं और उन्हें जब्त कर लिया गया है।
तलाशी अभियान अभी भी जारी है।” इसकी बानगी उस समय देखने मिली जब लगातार दूसरे दिन गुरुवार को भी सीबीआई ने राजनांदगांव में ASP अभिषेक माहेश्वरी के ठिकानों पर दस्तक दी। पूर्ववर्ती भूपे राज में रायपुर के क्राइम ASP अभिषेक माहेश्वरी पर सौम्या चौरसिया का वरदहस्त बताया जाता था। यह भी बताया जाता है कि महादेव ऐप सट्टा संचालन में डिजिटल बाधा दूर करने, अवैध फ़ोन टेपिंग एवं पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की खिलाफत करने वालों को ठिकाने लगाने की जवाबदारी ASP माहेश्वरी को ही सौंपी गई थी। उनकी भी चल-अचल संपत्तियों का ब्यौरा हासिल करने के बाद एजेंसियों ने उनके ठिकानों का रुख किया था।