नई दिल्ली / देश – दुनिया में कोरोना वैक्सीन का बेसब्री से इंतज़ार हो रहा है | चीन निर्मित वैक्सीन पर कोई भी देश यकीन नहीं कर पा रहा है | ऐसे भारत, इंगलैंड, अमेरिका फ़्रांस और जर्मनी की कंपनियों पर अमीर देशों की निगाहे लगी हुई है | अमीर देशों ने तो अपने नागरिकों के लिए एक नहीं बल्कि 5 -5 डोज की बुकिंग की है | उन्हें अंदेशा इस बात का है कि कौन सी वैक्सीन काम करेगी और कौन सी कारगर साबित नहीं होगी | लिहाजा विश्वसनीयता के तकाजे पर तोल मोल कर इन देशों ने 5 -5 डोज प्रति वैक्सीन के हिसाब से ऑर्डर बुक किया है | अमीर देशों ने प्रत्येक नागरिक के लिए पांच खुराकें बुकिंग कराई हैं, जबकि आवश्यकता केवल दो खुराक की बताई जा रही है | इन देशों की बुकिंग से दुनिया के कई देशों में वैक्सीन की आपूर्ति का संकट पैदा हो सकता है |
मॉर्डना के सीईओ स्टीफेन बांसेल ने कहा, “अमेरिकी सरकार के साथ जो पहला समझौता हुआ था, वह 100 मिलियन खुराक के ऑर्डर के लिए था. इसलिए, हम अनुमान लगाते हैं कि साल खत्म होने से पहले उन 100 मिलियन में से 20 मिलियन तक की हम शिपिंग कर सकेंगे।”
भारत में तैयार वैक्सीन भी नई तकनीक के साथ निर्मित की गई है | देश में कोविड-19 वैक्सीन विकसित करने के लिए कई स्वदेशी और अंतर्राष्ट्रीय स्टेकहोल्डर्स के साथ भारत पहले ही भागीदारी कर चुका है | एक्सपर्ट ग्रुप के प्रमुख वी के पॉल के मुताबिक “भारत बहुत भाग्यशाली है कि हमारे पास वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग के लिए एक बहुत व्यापक औद्योगिक आधार है और वैक्सीन के विकास के लिए हमारे पास रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेटअप भी है | इसके अलावा एक नियामक व्यवस्था भी है जो बहुत मजबूत है |” देश में, भारत बायोटेक का वैक्सीन कैंडीडेट ICMR के सहयोग से तीसरे चरण के ट्रायल में है | यही स्थिति भारत के सीरम इंस्टीट्यूट के सहयोग से विकसित हो रही ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की है | एस्ट्राजेनेका का लक्ष्य दिसंबर तक 100 मिलियन खुराक तैयार करना है |
डॉ पॉल ने इंगित किया कि रूस के कैंडिडेट स्पुतनिक के भी अगले सप्ताह भारत में मानव ट्रायल्स से गुजरने की संभावना है | Zydus Cadila के कैंडीडेट के दिसंबर तक अहम तीसरे चरण में प्रवेश करने और अगले साल मार्च तक तैयार होने की उम्मीद है | इसके 100 मिलियन खुराक तैयार करने की इन-हाउस क्षमता है |
अमेरिका की दो प्रमुख फार्मा कंपनियों की ओर से कोविड-19 वैक्सीन्स के ट्रायल टेस्टिंग के उत्साहजनक नतीजे सामने आने के बाद बाजार में उसकी मांग जोरो पर है | मॉडर्ना कंपनी ने घोषणा की कि उसका वैक्सीन कैंडिडेट लगभग 95 प्रतिशत असरदार है | जबकि फाइजर ने बायोएनटेक के साथ विकसित अपने कैंडीडेट के ट्रायल्स में 90 फीसदी प्रभावी रहने का ऐलान किया है |
मॉडर्ना और फाइजर दोनों ने अपनी वैक्सीन्स को डिजाइन करने में इनोवेटिव टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है | लंदन के इंपीरियल कॉलेज में एक शोध सहयोगी ज़ोल्टन किस ने बताया कि “इस तकनीक में RNA बनाना शामिल है, जो ऐसा मॉलीक्यूल है जो शरीर की कोशिकाओं को एंटीजन के निर्माण की जानकारी प्रदान करता है |”
दुनिया के कई बड़े देशों के सामने चुनौती यह है कि अपनी घनी आबादी के लिए टीकाकरण कार्यक्रम को वे आखिर किस तरह से अंजाम तक पहुंचाए | उन्हें अंदेशा है कि उनके हिस्से की वैक्सीन भी कही अमीर देशों में ना आपूर्ति हो जाये | दरअसल कई निजी कंपनियां मांग और पूर्ति के आधार पर वैक्सीन की कीमत तय कर रही है | इसके चलते अमीर देशों में वैक्सीन का बड़ी मात्रा स्टोरेज की जा सकती है |