News Today Exclusive: कांग्रेस प्रवेश कर बुरे फंसे बीजेपी नेता नंदकुमार साय,छत्तीसगढ़ में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से आलाकमान का इंकार,आदिवासी नेताओ का डबल इंजन चर्चा में…..

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दिल्ली ब्यूरो//

दिल्ली: रायपुर में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने वाले पूर्व सांसद नंदकुमार साय ना तो इधर के नजर आ रहे है,और ना ही उधर के,ऐसे में उनके कांग्रेस प्रवेश कराने वाले सूत्रधार चर्चा में है। दिल्ली में हफ्तेभर से जारी कवायद के बीच साय का कांग्रेस प्रवेश तो सुनिश्चित हो गया है, राजधानी रायपुर स्थित राजीव भवन में कांग्रेस प्रवेश कर नंदकुमार साय ने बीजेपी के अरमानो पर पानी फेर दिया था, लेकिन अब कांग्रेस में उनके लिए नई चुनौती खड़ी हो गई है,मामला उनकी ताजपोशी से जुड़ा है,इस पर पार्टी आलाकमान ने अपनी मुहर अब तक नहीं लगाईं है। नतीजतन कांग्रेस में कदम रखते ही नंदकुमार साय की हालत “कटी पतंग” की तर्ज पर नजर आ रही है, सूत्रों का दावा है कि पार्टी प्रवेश के 24 घंटे के भीतर नंदकुमार साय को बड़ी जिम्मेदारी कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का भरोसा दिलाया गया था। फिलहाल नंदकुमार साय के हाथो में “ना माया लगी ना राम” जैसी परिस्थितियां निर्मित हो गई है।

छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव 2023 का कांग्रेस ने बिगुल फूंक दिया है। इसका आगाज ही दल बदल के साथ हुआ है,बीजेपी के वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय ने अचानक कांग्रेस प्रवेश कर सबको चौंका दिया है, साय बीजेपी में अपनी ख़त्म होती पूछ परख से खफा थे,लगातार 4 महीनो से विभिन्न धड़ो में अपना लोहा मनवाने में जुटे नंदकुमार साय को उस समय अ’सहज स्थिति का सामना करना पड़ा,जब पीएम मोदी और अमित शाह जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओ के कार्यक्रमों में शामिल होने वाले न्यौतो से भी उन्हें हाथ धोना पड़ गया था। 

बताते है कि लम्बे समय से नंदकुमार साय ने अपनी नई राह का खांका खींच लिया था, सूत्रों पर यकीन करें तो बीजेपी के कई बड़े नेताओ के दरवाजे से खाली हाथ लौटने के बाद साय ने कांग्रेस प्रवेश का फैसला लिया था। राज्य में वर्ष 2023 में बीजेपी को सत्ता की बागडोर सौपने की मुहिम के वे प्रणेता बने थे।बीजेपी के आंदोलन को कुचलने के लिए तत्कालीन पुलिस के अधिकारियो ने बतौर नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय की टांगे तक तोड़ दी थी। लाठी चार्ज में घायल बीजेपी के दर्जनों नेताओ के साथ सरकारी अस्पताल में भर्ती नंदकुमार साय ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी की नाक में दम कर दिया था। परिणामस्वरुप बीजेपी, सत्ता में तो आई लेकिन सत्ता की नीव रखने वाले कई नेताओ के साथ-साथ नंदकुमार साय की राजनीति भी सिमटती चली गई। 

कांग्रेस प्रवेश कर नंदकुमार साय एक नई उलझन में है,बताते है कि उनके साथ किए गए वादों को निभाने के लिए कांग्रेस के भीतर अब कोई सूरमा नजर नहीं आ रहा है। सूत्र बताते है कि हफ्तेभर पहले दिल्ली कांग्रेस मुख्यालय में साय के पार्टी प्रवेश की तैयारी की गई थी। लेकिन आखिरी वक्त इसे रद्द कर रायपुर में ही कार्यक्रम आयोजित करने के फरमान सुनाए गए थे। 

सूत्र बताते है कि कांग्रेस प्रवेश कराने वाले सूत्रधारों ने आधे-अधूरे सपने और वादे कर नंदकुमार साय को नई मुसीबत में डाल दिया है। उन्होंने वादे के अनुसार कांग्रेस प्रवेश तो कर लिया,लेकिन अब तक उन वादों पर अमल शुरू नहीं हो पाया है। बताते है कि हफ्तेभर पहले से दिल्ली में कांग्रेस के कई बड़े नेताओ के घंटो चक्कर काटने के बावजूद भी ना तो उनकी सोनिया,राहुल गाँधी से मुलाकात हो पाई है,और ना ही कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे और महामंत्री प्रियंका गाँधी ने उन्हें कोई तवज्जो दी है, ऐसे में साय ने अपनी रणनीति को लेकर चिंता जाहिर की है। 


छत्तीसगढ़ कांग्रेस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पार्टी अध्यक्ष मोहन मरकाम के बीच कभी तनातनी तो कभी राजनैतिक प्रतिद्धवंदिता की खबरे आम है।बताते है कि संगठन में अपनी मजबूत पकड़ कायम करने के लिए मोहन मरकाम की काट के रूप में नंदकुमार साय की कांग्रेस प्रवेश की रणनीति को बतौर हथियार अस्तित्व में लाया गया है। हालाँकि दिलचस्प बात यह है कि नंदकुमार साय से पूर्व उनकी बेटी प्रियम्वदा ने काँग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था। 

वर्ष 2021 के नवम्बर माह में भाजपा नेता नंदकुमार साय की बेटी प्रियम्वदा ने कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी में प्रवेश कर लिया था। बताते है कि पिता के साथ हुई ना’इंसाफी से नाराज होकर प्रियम्वदा ने बीजेपी के खिलाफ हल्ला बोला था। उन्होंने इसके पूर्व 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समक्ष कांग्रेस प्रवेश कर अपने पिता नन्दकुमार साय को भी चौंका दिया था। बताते है कि इस दौरान भी प्रियम्वदा के बाड़ीबंदी के प्रयास उनके पिता की तर्ज पर बेकार साबित हुए थे। छत्तीसगढ़ बीजेपी के मुताबिक नंदकुमार साय को पार्टी में रोके जाने के प्रयास आखिरी वक्त तक जारी रहे थे। इस दौरान भी निराशा उस वक्त हाथ लगी जब पानी सिर से गुजर गया था। हालाँकि इस साल राज्य में होने वाले विधान सभा चुनाव में ताल ठोकने के लिए प्रियंवदा मैदान में है। 

प्रियंवदा,आखिर काँग्रेस से नाता क्यों तोड़ कर भाजपा में वापस क्यों आई ? यही नहीं साल भर में ही नंदकुमार साय ने बीजेपी का दामन छोड़ कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया यह बहुत बड़ा सवाल है।प्रियम्वदा ने एक अनौपचारिक चर्चा में बताया था कि काँग्रेस पार्टी के ब्लॉक अध्यक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष और स्थानीय विधायक तक से स्वयं और फोन पर उन्होंने कांग्रेस विस्तार कैसे हो ,संगठन को मजबूती कैसे मिले और क्षेत्र का विकास कैसे हो, इस मुद्दे पर संपर्क किया था। उन्होंने फरसाबहार ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के समक्ष भी अपनी बात रखना चाही लेकिन उनकी बात को समझने की बात तो दूर किसी ने उनकी सुनी तक नहीं,उनकी अनदेखी की जाती रही।  

बकौल  प्रियंवदा,15 सालों बाद कांग्रेस की प्रदेश में सरकार आयी तो यह उम्मीद भी जगी थी कि अब क्षेत्र का बेहतर विकास होगा ,महिलाओं के लिए अच्छी योजना बनेगी और महिलाएं सशक्त होंगी लेकिन सरकार बने 3 साल हो गए, किसी ने इस ओर नहीं सोचा,और जब उन्होंने इस दिशा में काम करने पार्टी के नेताओं से मिली और बात करना चाही तो किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया बल्कि उनकी बातों को अनसुना करते रहे । 

उन्होंने आगे कहा-“मैं किसान की बेटी हूँ ,गाँव मे रहती हूं ,एक महिला भी हूँ इसलिए महिला ,किसान ,और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले आमजनों के विकास और उत्थान के बारे में शुरू से सोचती रही और जब इस दिशा में काम करने की बारी आई तो किसी ने इस ओर सोचना तक गंवारा नहीं समझा ऐसे में पार्टी में रहना बहुत मुश्किल हो गया था । प्रियम्वदा ने आगे कहा कि जिस पिता ने उन्हें जन्म दिया, जिनकी गोद मे बैठकर राजनीति का क ख ग सीखा आगे भी उन्हीं के मार्गदर्शन में काम करती रहूंगी, उस दिन को याद नहीं करना चाहती जब मैंने काँग्रेस प्रवेश किया था,आगे कुछ अच्छा करना है ताकि क्षेत्र की उन्नति हो ,नारी शक्ति को बल मिले।

प्रियम्वदा पैकरा भाजपा के हालिया कांग्रेस प्रवेश करने वाले कद्दावर नेता नंदकुमार साय की वो बेटी हैं,माना जा रहा है कि,वो अपने पिता की राजनैतिक विरासत संभालने में अग्रिम मोर्चे पर है। 2003 विधान सभा चुनाव के दौरान उन्होंने काँग्रेस प्रवेश कर सियासत में भूचाल ला दिया था।रायपुर में भाजपा की तत्कालीन प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी की मौजूदगी में आयोजित एक कार्यक्रम में करीब डेढ़ साल पहले प्रियम्वदा ने पुनः पार्टी प्रवेश किया था।लेकिन अब वक्त का पहिया उसी मोड़ पर आ गया है,उनकी तर्ज पर पिता नंदकुमार साय की कसौटी कसी जा रही है ? 

News Today की जानकारी के मुताबिक तीन बार लोकसभा सदस्य और तीन बार विधायक रह चुके 77 वर्षीय नंदकुमार साय का बीजेपी में उत्कृष्ट कार्यकाल रहा है। साय को 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।छत्तीसगढ़ से पूर्व अविभाजित मध्य प्रदेश में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर संभाल चुके, साय का राज्य के उत्तरी सरगुजा संभाग में आदिवासी बहुल हिस्सों में काफी प्रभाव बता कर,कांग्रेस प्रवेश की मंजूरी ली गई थी। लेकिन परते खुल रही है,उन्हें मुख्यमंत्री बघेल की राजनीति का आदिवासी मोहरा बताया जा रहा है।

हालाँकि सरगुजा में साय के प्रभाव की मौजूदा जमीनी हकीकत अब पहले जैसे नहीं रह गई है,ऐसा इलाके के लोग तस्दीक करते है। उनके मुताबिक कांग्रेस की गुटबाजी और वरिष्ठ नेता टी एस सिंहदेव की नाराजगी दूर करने के लिए कांग्रेस के एक गुट ने आदिवासी इलाको में साय को वोटरों के घर-घर भेजने के निर्देश दिए है। इसे टीएस सिंहदेव की नाराजगी की भरपाई दूर करने का चुनावी कदम के रूप में देखा जा रहा है। चर्चा है कि नंदकुमार साय को तपकरा विधान सभा सीट से टिकट देने का भरोसा भी दिलाया गया है।

सूत्र तस्दीक कर रहे है कि कांग्रेस की मजबूती नहीं बल्कि मुख्यमंत्री गुट में आदिवासी नेता की मौजूदगी के मकसद से साय का कांग्रेस प्रवेश कराया गया है। इसके चलते दिल्ली दरबार नंदकुमार साय के पार्टी प्रवेश से कतई उत्साहित नहीं है,सूत्र तो यह भी दावा कर रहे है कि वादे पूरे नहीं होने पर साय अपने समर्थको के साथ नई राह भी पकड़ सकते है।

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सूत्र बताते है कि नंदकुमार साय के कांग्रेस प्रवेश की पूर्व सूचना के उपरांत भी पार्टी आलाकमान समेत सभी बड़े नेताओ ने रायपुर से दूरिया बनाए रखी थी। इन नेताओ को पार्टी के एक साफ़-सुथरी छवि के आदिवासी नेता की राह में रोड़े अटकाने के लिए विपक्ष के किसी नेता का आयात करना,नागवार गुजर रहा था। बताते है कि इसके चलते प्रदेश पार्टी प्रभारी शैलजा ने भी कार्यक्रम से दूरियां बनाए रखी थी। जबकि मोहन मरकाम खुद के अध्यक्ष होने के नाते अपने पार्टी कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे।  

साय ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अपनी आपबीती सुनाई थी। साय ने कहा, ”भारतीय जनता पार्टी का जो स्वरूप था वह आज बचा नहीं है। मैंने अटल जी,अटल बिहारी वाजपेयी आडवाणी जी, लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज जी और अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ काम किया है, लेकिन आज मैं भाजपा में साधारण सदस्य था। मुझे किसी दायित्व में नहीं लगाया था। मुझे दायित्व की आवश्यकता नहीं है लेकिन पार्टी काम कैसे करे, इसमें शामिल तो किया जाना चाहिए।”

उन्होंने कहा, ”पार्टी से मुझे बहुत परेशानी नहीं है। दल से कोई दिक्कत नहीं था। दल कोई महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन सारे लोगों को मिलकर आम लोगों का काम करना चाहिए। पार्टी का यह महत्वपूर्ण उद्देश्य होना चाहिए। मैंने तय किया कि भूपेश जी के नेतृत्व में कांग्रेस अच्छा काम कर रही है। यहां गरीब, पिछड़े और तमाम प्रकार के लोग हैं, उनके उत्थान का काम हो रहा है।”

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फिलहाल तो नंदकुमार साय,कॉंग्रेस की झोली में गिर जरूर गए है, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की रणनीति के तहत नए समीकरणों से जूझ रहे है। उनकी छवि छत्तीसगढ़ कांग्रेस में आदिवासी नेता मोहन मरकाम की काट के रूप में उभर रही है,दिल्ली के गलियारों में तो यही माना जा रहा है,कई नेता तस्दीक करते है कि साय के कांग्रेस प्रवेश से आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग और मजबूत होगी। साय और मरकाम के डबल इंजन से 2023 में आदिवासी ही मुख्यमंत्री की कुर्सी में बैठेगा। 

बस्तर के सर्वमान्य आदिवासी नेता मोहन मरकाम का सरगुजा में भी जबरदस्त प्रभाव है,छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाको में उन्हें उतनी ही मान्यता प्राप्त है,जितनी की मध्य प्रदेश की पहाड़ी बसाहट वाले घने वनांचलों में। बताते है कि राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर प्रदेश के आदिवासी इलाको में मरकाम की पैदल यात्रा ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम की है। ऐसे में बेदाग़ छवि के मोहन मरकाम के सामने उनके विरोधियो का विपक्ष से आयातित हथियार कितना कारगर साबित होगा,यह तो वक्त ही बताएगा।

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फिलहाल बीजेपी के सीएम इन वेटिंग का सपना कांग्रेस में पूरा होगा,या फिर कांग्रेस के सीएम इन वेटिंग का सपना साकार करने के लिए नंदकुमार साय चर्चित रहेंगे यह देखना भी गौरतलब होगा। बहरहाल, राजनैतिक पंडित तो कह रहे है कि नंदकुमार साय,अब नहीं बनेगे किसी की गाय।वृन्दावन हो या फिर सरगुजा और बस्तर की पहाड़िया,सबै भूमि नंदलाल की, मोहन की बंशी नंदलाल के द्वारे नहीं तो क्या दुर्योधन के किले में सुनाई देगी, कौरवो का मायूस होना लाजिमी है,भले ही वे नंदलाल को नंदकुमार क्यों ना बना दें।