छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बघेल के आरक्षण के दांव से पशोपेश में बीजेपी, रातो -रात कांग्रेस के पक्ष में लहर, भानुप्रतापपुर विधान सभा सीट की चुनावी फिज़ा में आरक्षण का तड़का

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कांकेर /रायपुर : छत्तीसगढ़ में भानुप्रतापपुर विधान सभा सीट पर चुनाव प्रचार ने जोर पकड़ लिया है। बीजेपी और कांग्रेस के बीच इस उपचुनाव में जबरदस्त रस्साकसी देखने को मिल रही है। कांग्रेस के लिए यह सीट नाक का सवाल है ? सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर है, और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के 4 साल के कार्यकाल पर जनता की मुहर लगने वाली है। लिहाजा कांग्रेस के लिए इस उपचुनाव का परिणाम विधानसभा चुनाव 2023 का सेमीफाइनल साबित होगा। उधर सत्ता में वापसी का सपना देख रही बीजेपी के लिए भी इस उपचुनाव के परिणाम रीढ़ की हड्डी साबित होंगे। दोनों ही दलों के लिए चुनाव परिणाम उनकी भविष्य की राजनीति तय करेंगे। 

भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट पर आरक्षण का मुद्दा कांग्रेस की राह में रोड़ा बनता नजर आ रहा था। उसके नेताओं की जगह -जगह घेराबंदी शुरू हो गई थी। कही आदिवासियों के लिए तो कही OBC वर्ग के लिए समुचित आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलनकारी कांग्रेसी नेताओ से जवाब -तलब करते नजर आते।

पार्टी के नेताओं के लिए उनके सवालों का जवाब देना मुश्किल साबित हो रहा था। बावजूद इसके कांग्रेसी नेता नपा -तुला जवाब देकर बीजेपी को निशाने पर ले रहे थे। लेकिन आंदोलनकारियों के निशाने पर बीजेपी नहीं बल्कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार थी। आंदोलनकारियों ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालियां निशान दागते हुए कई इलाको में मुख्यमंत्री और कांग्रेस सरकार के खिलाफ नारेबाजी भी शुरू कर दी थी। ताजा राजैनतिक उठा -पठक को बीजेपी ने भी अच्छी -खासी हवा दे दी थी। उसने आरक्षण के हथियार से कांग्रेस पर पलटवार किया था। 

बीजेपी ने आरक्षण के मुद्दे को भानुप्रतापपुर के राजनैतिक मैदान में ऐसा भुनाया की यह मामला दिनों -दिन कांग्रेस के गले की फ़ांस बनता नजर आ रहा था। लेकिन किसी क्रिकेटर की तर्ज पर आखिरी ओवर की अंतिम गेंद में मुख्यमत्री बघेल ने छक्का मारकर गेंद बीजेपी के पाले से बाहर फेंक दी है। बघेल ने मतदान के हप्ते भर से ज्यादा वक्त पहले  ही आरक्षण के हथियार को ही नेस्तनाबूद  कर दिया है। मुख्यमंत्री बघेल ने छत्तीसगढ़ आरक्षण संशोधन विधेयक को केबिनेट से मंजूरी देकर एक बड़ा मुद्दा बीजेपी के हाथो से छीन लिया है। बघेल सरकार 1 दिसंबर को विधानसभा में पारित कर इस विधेयक को मंजूरी के लिए राज्यपाल को भेजेगी। 

बघेल सरकार के आरक्षण के नए फार्मूले की खबर भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट में जंगल में आग की तरह फ़ैल गई। इस इलाके के सैकड़ो गांव में आदिवासियों और पिछड़े वर्ग की बहुलता है। उपचुनाव की घोषणा के बाद से पूरी विधानसभा सीट में आरक्षण का मुद्दा लोगो की जुबान पर था। बीजेपी के अलावा सर्व आदिवासी समाज ने भी गांव -गांव में इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। लेकिन शुक्रवार की सुबह कई गांव -कस्बो और नुक्क्ड़ों में ग्रामीण मुख्यमंत्री बघेल के ”हथौड़े” की चर्चा करते देखें गए।

इस बार ग्रामीणों की जुबान पर आरक्षण को लेकर काफी नरमी देखी गई। पहले की तर्ज पर ग्रामीणों की जुबान में तल्खी नहीं बल्कि सरकार के प्रति सहानुभूति का भाव दिखाई दे रहा था। ग्रामीणों के चेहरे देखकर बीजेपी के कई प्रचारक नेता भी सकते में देखे गए। उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी कि बघेल सरकार के प्रति ग्रामीणों का रातों -रात ह्रदय परिवर्तन हो जायेगा। हालांकि बीजेपी नेता मुखर नजर आये। 

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को 32 फीसदी ओबीसी -27, एससी -13 और ईडब्लूएस को – 4 प्रतिशत आरक्षण को केबिनेट ने मंजूरी दी है। इस तरह, विधानसभा में पेश किये जाने वाले संशोधन विधेयक में कुल आरक्षण करीब 76 प्रतिशत होने की संभावना है। जबकि हाईकोर्ट से 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण पूर्व में ख़ारिज किया जा चूका है। माना जा रहा है कि बघेल का आरक्षण का दांव दूरगामी परिणाम डालेगा। यह मुद्दा आने वाले समय बीजेपी की काट का बड़ा हथियार साबित होगा। हालांकि राजनैतिक धरातल पर इसका विरोध भी शुरू हो गया है।

 बीजेपी नेता केदार कश्यप ने आरक्षण के ताजा फैसले को कांग्रेस की नौटंकी और ड्रामा कारर दिया है। उन्होंने सवाल किया कि भूपेश सरकार बताये क्या 3 दिसंबर से आदिवासियों को नौकरी मिलने लगेगी। मेडिकल सीटों पर मौजूदा आरक्षण का लाभ छात्रों को मिल पाएगा, ऐसे सवाल कर कश्यप ने मुख्यमंत्री बघेल को घेरा है। 

उधर बीजेपी ने आरक्षण के फार्मूले को गोलमाल बताते हुए पार्टी ने कहा है कि 58 फीसदी आरक्षण बचा नहीं पाई है कांग्रेस लेकिन अब जनता को 76 फीसदी का सपना दिखा रही है। फिलहाल भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट पर बघेल का आरक्षण फार्मूला ठीक -ठाक फिट हो गया है। देखना गौरतलब होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है।