रायपुर: छत्तीसगढ़ में आल इंडिया सर्विस के कई अधिकारियों की बानगी ही अलग है। उनकी कार्यप्रणाली का खास हिस्सा मौज-मस्ती, एशो-आराम, सरकारी रकम पर हाथ साफ करना तो आम बात है। लेकिन कई अफसर ऐसे भी है, जो खाने-पीने के बाद बिल चुकाना तो दूर डकार तक लेना मुनासिब नहीं समझते। उनकी कमजोर याददाश्त और भूलने की बीमारी का खामियाजा उन लोगों को उठाना पड़ रहा है, जो ऐसे अफसरों के लिए ‘पार्टी और मौज-मस्ती’ का प्रबंध करते है। ऐसे ही दर्जनों मामलों में इन दिनों पुलिस ऑफिसेस मेस के कर्ताधर्ताओं को जूझना पड़ रहा है।

एक ताजा मामले में दर्जन भर से ज्यादा आईएएस-आईपीएस अधिकारियों पर खाने-पीने और पार्टी आयोजित करने का लाखों का बिल कई महीनों से बकाया है। पुलिस ऑफिसर्स मेस में विभिन्न अवसरों पर की गई ऐसी दर्जनों पार्टियां ख़त्म होने के बाद ‘मेजबान’ भी ‘धन्यवाद’ देकर अपने गंतव्य पर रवाना हो गए, फिर दोबारा रुख ही नहीं किया। किसी खास अवसरों पर ‘पधारे’ तो कैटरिंग स्टाफ से तक मुँह मोड़ लिया। अब ऐसे अफसरों का बिल चुकाए भी तो कौन ? कोई फंड नहीं, कोई बंदोबस्त नहीं, साहब को अनेकों बार ‘रिमाइंडर’ भेजने के बाद भी कोई दिलचस्पी बिल चुकाने में नहीं दिखाई।

लिहाजा पुलिस ऑफिसर्स मेस के ‘मजबूर’ कर्मियों ने भी ‘बकायादारों’ की सूची उच्चाधिकारियों को भेज दी। सूत्रों के मुताबिक इस सूची में पूर्व चीफ सेक्रेटरी, पूर्व डीजीपी समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारियों का नाम शुमार है। जानकारी के मुताबिक पुलिस ऑफिसर्स मेस में कभी पार्टियां तो कभी लंच और डिनर का लुफ्त उठाने वाले बकायादारों में अव्वल नंबर पर आईएएस अधिकारियों के नाम का जिक्र है। इसके बाद उन आईपीएस अधिकारियों का नाम भी ‘सुशोभित’ हो रहा है, जों कभी महकमे के डीजीपी जैसे वरिष्ठ पदों पर आसीन रह चुके है। सूत्र तस्दीक करते है कि पार्टी करने में ‘आगे’ और बिल चुकाने में ‘पीछे’ रहने के मामलों से पुलिस ऑफिसर्स मेस के कर्मी पापड़ बेलने को मजबूर हो गए है।

पीड़ितों के मुताबिक नो प्रॉफिट, नो लॉस का हवाला देने एवं कैटरिंग एवं अन्य सामग्री का लेखा-जोखा पेश करने के बावजूद ज्यादातर अफसरों ने ‘बाद में आना’ कह कर मेस स्टाफ को रुखसत कर दिया था। इसके बाद कुछ तो लाखों का बिल बकाया छोड़ कर चले गए, दोबारा ऐसे अफसरों ने दर्शन देना तो छोड़ फ़ोन तक उठाने में कोई रूचि नहीं दिखाई। रायपुर पुलिस लाइन में स्थित ऑफिसर्स मेस अपने लाजवाब खाने-पीने के लिए नौकरशाही में मशहूर है। मेस का मेंटेनेंस एवं सामग्री का खर्चा राज्य शासन के फंड से नहीं बल्कि मेजबान पुलिस अधिकारियों से वार्षिक कलेक्शन ‘सहयोग’ से संचालित किया जाता है। यहाँ की गतिविधियां 4th बटालियन के अधीनस्थ बताई जाती है।

पीड़ितों के मुताबिक मार्च माह आ गया है, पुराने हिसाब-किताब का दौर जारी है, ऐसे में बकायादारों से वसूली नहीं होने का खामियाजा उन्हें उठाना पड़ रहा है। बताया जाता है कि ऐसे अफसरों की सूची कार्यालय कमांडेंट 4th बटालियन CAF को सौंप कर ‘मार्गदर्शन’ माँगा गया है। पुलिस मुख्यालय को भी उन अफसरों की सूची भेजी गई है, जिन्हे ‘भूलने की बीमारी’ बताई जाती है।

यह भी तथ्य सामने आया है कि पुलिस ऑफिसर्स मेस में बिलों के भुगतान को लेकर पूर्ण पारदर्शिता बरती जाती है। यहाँ आवाजाही करने वाले आगंतुक कार्यालय कमांडेंट 4th बटालियन CAF में RTI लगाकर किन अधिकारियों का बकाया बिल किस तारीख से भुगतान के लिए भटक रहा है, इसकी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। फ़िलहाल, न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ ने पुलिस ऑफिसर्स मेस के प्रभारी से संपर्क साधा लेकिन कोई आधिकारिक जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी।