हैदराबाद / पुणे / दिल्ली – भारत में विश्व का सबसे बड़ा कोरोना वैक्सीन टीकाकरण अभियान रफ़्तार पकड़ रहा है। इस देशी वैक्सीन की मांग विदेशों में भी खूब हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को ध्यान में रखते हुए भारत ने पड़ोसी मुल्कों के अलावा कई देशों को वैक्सीन मुहैया कराने का बीड़ा उठाया है। उसकी नीति वसुदैव कुटुम्भकम और सर्वे सन्तु निरामया की विश्व में चर्चा हो रही है। लेकिन क्या आप जानते है कि इस वैक्सीन को बनाने में किन – किन का योगदान रहा। यदि नहीं तो रूबरू होइए उस शख्सियत से जो इस महामारी की रोकथाम में जोर -शोर से जुटे रहे। उन्ही के अथक प्रयासों से ये वैक्सीन जनता तक पहुँच रही है।
इसमें सबसे पहले नाम आता है, सीरम इंस्टिट्यूट का। उसका ध्येय है, सब स्वस्थ रहें, इसलिए सस्ता टीका, पर गुणवत्ता से समझौता नहीं। कोरोना काल में सीरम की चर्चा रोजाना होते रही। डॉ. सायरस पूनावाला पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के चेयरमैन हैं। यह देश की सबसे सर्वश्रेष्ठ बायोटेक कंपनी है। इसके साथ दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन उत्पादक कंपनी होने का श्रेय भी उसे जाता है। उसका नारा ही इनका ध्येय है ‘गुणवत्ता से समझौता नहीं, सभी स्वस्थ रहें इसलिए सस्ता टीका’। बताया जाता है कि डॉ. सायरस ने पुणे के बृहन महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ कॉमर्स से शिक्षा ली थी। उन्होंने पुणे विश्वविद्याल से ‘बेहतर तकनीक से विशेष एंटी-टॉक्सिनन्स निर्माण और समाज पर प्रभाव’ विषय से पीएचडी भी की।
सायरस के करीबी बताते है कि इतने बड़े इंस्टिट्यूट की नींव घोड़ा पालन व्यवासय से रखी गई। सायरस के पिता घोड़ा पालन का काम करते थे। लगभग 20 साल की उम्र में उन्हें आभास हुआ कि इस काम में उनका भविष्य नहीं है। सायरस ने सभी घोड़ों को सरकारी हॉफकिन इंस्टीट्यूट को बेच दिया, जो घोड़ों के सीरम से टीका तैयार करता था। यहीं से उन्हें सीरम निर्माण क्षेत्र में काम करने का विचार आया और पिता को रजामंद कर 1966 में संस्थान की शुरुआत की।सीरम संस्थान को टिटनस, डिप्थीरिया और सर्पदंश से बचाव के टीके के निर्माण का श्रेय भी जाता है। सीरम संस्थान हर साल 1500 करोड़ टीके का उत्पादन कर रहा है। पूरे विश्व में उसका निर्यात होता है। अपनी स्थापना के दो वर्ष बाद ही इस संस्थान ने एंटी-टिटनस सीरम लॉन्च किया था। और इसके अगले दो वर्ष में इसके टीके का उत्पादन शुरू कर दिया। उसने डिप्थेरिया से बचाव का टीका 1974 में और सर्पदंश से बचाव का टीका 1981 में बनाया गया।
कोरोना काल में अदार पूनावाला मीडिया में छाए रहे। वे सीईओ, सीरम इंस्टीट्यूट के पद पर है। उन्होंने वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी की। फिर 2001 से अपने संस्थान में काम में जुट गए। उन्होंने कई उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में लाया। उनके नेतृत्व में आज 35 देशों को सीरम संस्थान में बने चिकित्सा उत्पाद निर्यात हो रहे हैं। वे 2011 में कंपनी के सीईओ बने और 2012 में नीदरलैंड की सरकारी वैक्सीन उत्पादक कंपनी बिल्थोवन बायोलॉजिक्स का अधिग्रहण किया। उन्ही की देख रेख में 2014 में मुंह से दिया जाने वाला पोलियो का टीका लॉन्च किया गया था।
कोरोना काल में एक अन्य कंपनी भारत बायोटेक भी सुर्ख़ियों में रही। हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक के प्रबंध निदेशक 51 वर्षीय कृष्णा एला किसान परिवार से हैं। वे मूल रूप से तमिलनाडु के थिरूथानी गांव के हैं। उन्होंने कृषि की पढ़ाई करने के बाद आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए बेयर कैमिकल्स एंड फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के कृषि विभाग में काम करना शुरू किया था। उनके अच्छे कार्यों के चलते उन्हें स्कॉलरशिप मिली थी। उन्होंने मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में अमेरिका के हवाई विश्वविद्यालय से मास्टर्स की डिग्री ली। इसके बाद वे यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉनसिन-मेडिसिन से पीएचडी करने के बाद 1995 में भारत लौटे। स्वदेश वापसी के बाद उन्होंने भारत में ही अपना कारोबार स्थापित करने की ठानी।
उन्होंने 1996 में अपनी कंपनी शुरू की। मां के कहने पर पत्नी सुचित्रा के साथ भारत लौटे कृष्णा ने 12.5 करोड़ की लागत से हैदराबाद में 1996 में भारत बायोटेक की स्थापना की थी। उनके अथक प्रयास से तीन साल के भीतर उनकी कंपनी ने हेपेटाइटिस-बी का टीका तैयार किया। इस टीके को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने वर्ष 1996 में लॉन्च किया था।
बताया जाता है कि उस दौरान भी देश की आर्थिक स्थिति के मद्देनजर इस कंपनी ने हेपेटाइटिस-बी टीकाकरण अभियान के लिए मात्र दस रुपये प्रति डोज के हिसाब से टीका मुहैया कराया था। जबकि उस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हेपेटाइटिस-बी के टीके की एक डोज 1400 रुपये की थी। आज यह कंपनी दुनिया के 150 देशों को यूनिसेफ और गावी के तहत विभिन्न टीकों की 300 करोड़ डोज मुहैया करा रही हैं। इनकी कंपनी के पास कुल 160 पेटेंट हैं और कंपनी के पास स्वयं के 16 तरह के टीके हैं।
1996 में भारत बायोटेक की स्थापना के बाद मेडिकल साइंस के क्षेत्र में इस कंपनी ने कई रिकॉर्ड अपने नाम किये। इसमें 1999 में हेपेटाइटिस-बी का टीका लॉन्च किया। फिर 2002 में गेट्स फाउंडेशन की ओर से मदद, 2006- रेबीज का टीका लॉन्च किया।2010- स्वाइनफ्लू का टीका किया इजात, 2013- टायफॉयड का टीका बनाया गया, 2014- जेई का स्वदेशी टीका देश को समर्पित, 2015- मेड इन इंडिया अभियान के तहत सबसे पहले रोटावायरस वैक्सीन इसी कंपनी ने तैयार की थी। यह भी उल्लेखनीय है कि 2020 में विश्वव्यापी कोरोना बीमारी के टीके पर संस्थान ने अध्ययन शुरू किया। इसके कामयाब परीक्षणों के बाद 2021 में इसे मिली मंजूरी है।