दिल्ली वेब डेस्क / देश के बड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भारत में जुलाई में कोरोना के मामले चरम पर होने के आसार हैं | उन्हें अंदेशा है कि इस महामारी से 18 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो सकती है। उनके मुताबिक देश में महामारी का संकट लगातार बढ़ते जा रहा है। भीषण गर्मी के बावजूद संक्रमण में कमी नहीं दिखाई दे रही है | सेंटर फॉर कंट्रोल ऑफ क्रॉनिक कंडीशन के प्रोफेसर डी प्रभाकरन ने कहा है कि जुलाई के शुरुआत में संक्रमण चरम पर होगा। उन्होंने लोगों से अपील की है कि सिर्फ मेडिकल गाइड लाइन का पालन करने से वे सुरक्षित रह सकते है |

उन्होंने कहा कि जरुरी कार्य से लोगों को घरों से बाहर निकलना चाहिए | अनावश्यक नहीं | उन्होंने कहा कि मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने से ही बचा जा सकता है | उनके मुताबिक मौजूदा स्थिति में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है | विशेषज्ञों ने संक्रमण के खतरे से आगाह करने से पूर्व कई शोध का अध्ययन किया है |
उनका यह आकलन प्रकाशित विभिन्न मॉडलों के अध्ययनों पर आधारित है, जिसमें दिखाया गया है कि अन्य देशों में मामले कैसे बढ़े और कैसे कम हुए। उनके मुताबिक भारत में औसतन तीन फीसदी की मृत्युदर से करीब चार से छह लाख मामले होंगे। यानी जुलाई माह में करीब 12 से 18 हजार लोगों की जान जा सकती है।

भारत में कम मृत्युदर और इसके संभावित कारणों पर प्रभाकरन ने कहा, वास्तविक मृत्युदर तभी पता चलेगी, जब महामारी खत्म होगी। हालांकि जो सीमित डाटा मिल रहा है, उसके मुताबिक मृत्युदर अन्य देशों के मुकाबले कम है। उन्हें लगता है कि इटली या अमेरिका की तुलना में भारत में युवाओं की संख्या ज्यादा होना भी एक अहम कारण हो सकता है।

उन्होंने बताया कि उम्र एक महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि उम्र ज्यादा होने पर बीमारी की चपेट में आने का जोखिम ज्यादा है। उन्होंने कहा कि बीसीजी टीकाकरण, संक्रमण के संपर्क में आना, अस्वाभाविक परिस्थितियों से प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि, गर्म मौसम सहित अन्य कारक भी हैं, लेकिन इनको लेकर कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है।
हैदराबाद स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक प्रोफेसर जीवीएस मूर्ति ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि दक्षिण एशिया में मृत्युदर कम है। श्रीलंका में प्रति एक लाख पर 0.4 फीसदी है, जबकि भारत, सिंगापुर, पाकिस्तान, बांग्लादेश और मलयेशिया में प्रति लाख आबादी पर भी मृत्युदर कम है। हालांकि यह कहना मुश्किल है कि इन देशों में ऐसा क्यों है। फ़िलहाल विशेषज्ञों का यह अध्ययन राज्य सरकारों और जनता के लिए काफी महत्वपूर्ण बताया जा रहा है | लोगों को इसे ध्यान में रखकर प्रशासन को सहयोग भी करना चाहिए, ताकि वे खुद भी स्वस्थ रहे और लोगों को भी स्वस्थ रखने में मदद कर सके |
