मुंबई | 1 अगस्त 2025 —
मालेगांव बम ब्लास्ट केस को लेकर एक बार फिर राजनीति और जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल खड़े हो गए हैं। इस बार खुलासा किया है मामले की जांच टीम में शामिल रहे महाराष्ट्र एटीएस के पूर्व अधिकारी महबूब मुजावर ने। रिटायर्ड इंस्पेक्टर मुजावर ने आरोप लगाया है कि उन्हें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को इस केस में फंसाने के निर्देश दिए गए थे और भगवा आतंकवाद को साबित करने के लिए जांच को दिशा दी जा रही थी।
“फर्जी जांच, राजनीतिक दबाव और झूठी थ्योरी” – महबूब मुजावर
मुजावर ने दावा किया कि तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारी परमबीर सिंह और उनके ऊपर के अधिकारियों ने उन्हें “भगवा आतंकवाद” की थ्योरी को स्थापित करने के लिए केस में मोहन भागवत और अन्य लोगों को फंसाने के आदेश दिए थे। उन्होंने कहा,
“कोई भगवा आतंकवाद नहीं था। सब कुछ एक प्रोपेगेंडा था। अगर मैंने विरोध नहीं किया होता, तो शायद मोहन भागवत भी आज जेल के अंदर होते।”
पूर्व अधिकारी ने बताया कि जब उन्होंने इन झूठे आदेशों का विरोध किया तो उनके खिलाफ ही कई फर्जी केस दर्ज किए गए। लेकिन बाद में वे सभी मामलों में कोर्ट से बरी हुए।
एनआईए कोर्ट ने सभी आरोपी बरी किए
गौरतलब है कि 2008 के मालेगांव बम धमाके के मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने 31 जुलाई 2025 को सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया, जिनमें बीजेपी नेता और पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी शामिल हैं। कोर्ट ने महाराष्ट्र एटीएस के तत्कालीन अधिकारी शेखर बागड़े की भूमिका की जांच के आदेश दिए हैं। बागड़े पर आरोप है कि उन्होंने जानबूझकर एक आरोपी के घर में RDX के अंश रखे थे।
“जिंदा को मृत, मृत को जिंदा दिखाया”
महबूब मुजावर ने आरोप लगाया कि एटीएस ने जानबूझकर मृत हो चुके संदिग्धों — संदीप डांगे और रामजी कलसंगरा — को चार्जशीट में जिंदा दिखाया।
“मुझे आदेश दिया गया था कि उनकी लोकेशन ट्रेस करो, जबकि मुझे पहले ही पता था कि वे मर चुके हैं। जब मैंने सच उजागर करना चाहा, तब मुझ पर ही झूठे केस थोपे गए।”
पूर्व गृहमंत्री सुशील शिंदे पर भी सवाल
मुजावर ने पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे पर भी निशाना साधा और कहा कि उन्हें देश के सामने स्पष्ट करना चाहिए कि क्या “हिंदू आतंकवाद” जैसी कोई संकल्पना वास्तव में थी या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक हथकंडा था।
“निर्दोषों की रिहाई से राहत”
सभी आरोपियों के बरी होने पर प्रतिक्रिया देते हुए मुजावर ने कहा,
“मैं खुश हूं कि सभी निर्दोषों को न्याय मिला। कोर्ट ने एटीएस की फर्जी जांच को पूरी तरह खारिज कर दिया है।”
उन्होंने यह भी कहा कि उनका यह बयान न सिर्फ जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि राजनीतिक हस्तक्षेप और एजेंडा-चालित जांच की गंभीरता को भी उजागर करता है।
