
छत्तीसगढ़ में केंद्र सरकार ने 4 मेडिकल कॉलेजों की स्वीकृती प्रदान की थी लेकिन बजट स्वीकृति के उपरांत भी अस्तित्व में नजर आएंगे सिर्फ 3 मेडिकल कॉलेज, ये अजूबा इस प्रदेश में नया गुल खिला रहा है। दरअसल कमीशनखोरी के बढ़ते चलन से दंतेवाड़ा में स्वीकृत मेडिकल कॉलेज नक़्शे से ही नदारत कर दिया गया है। जबकि बाजार भाव से लगभग 25 फीसदी अधिक दर से 3 जिलों कवर्धा, जांजगीर – चांपा और मनेन्द्रगढ़ में कुल बजट की 1,077 करोड़ की रकम ठिकाने लगाने की अद्भुत वारदात सामने आई है। तस्दीक की जा रही है कि नक्सल प्रभावित इलाको के विकास और स्वास्थ पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय विशेष ध्यान दे रहे है, ऐसे में दंतेवाड़ा के साथ बरता गया भेदभाव का मामला राजनैतिक गलियारों में भी सुर्खियां बटोर रहा है। इसमें दावा किया जा रहा है कि बीजेपी के ”महतो एंड संस” की ठेकेदारी साय सरकार पर भारी पड़ रही है।

मुख्यमंत्री साय एक ओर बुनियादी मांगो को पूरा करने पर जोर लगा रहे है, वही पार्टी के कारोबारी नेता अपनी ही सरकार की महती योजनाओं पर पलीता लगाने के मामले में अव्वल नंबर पर नजर आ रहे है। प्रदेश की PWD समेत अन्य निर्माण एजेंसियां जहाँ स्वीकृत दर से 25 फीसदी कम दरों पर टेंडर निविदा जारी कर सरकारी धन बचाने में जुटी है, वही CGMSC 25 फीसदी अधिक दरों पर वर्क ऑर्डर जारी करने पर आमादा है। ठेकेदार – नुमा नेताओं का येन – केन प्रकारेण टेंडर – निविदा हासिल करने का मंसूबा बीजेपी सरकार के अरमानों पर पानी फेर रहा है। मेडिकल कॉलेज निर्माण में बरती गई धांधली से CGMSC में भ्रष्टाचार का नया प्रकरण सामने आया है। इसके पूर्व दवा घोटाले को लेकर यह संस्थान विवादों में रहा है।

दिल्ली / रायपुर : – छत्तीसगढ़ में स्वास्थ सेवाओं के विस्तार के लिए केंद्र सरकार गंभीर है, राज्य की लोक कल्याणकारी योजनाओं से लेकर विकास के तमाम कार्यो में डबल इंजन सरकार का भरपूर फायदा इस प्रदेश को प्राप्त हो रहा है। जबकि दूसरी ओर कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार के बढ़ते मामलों से बीजेपी सरकार की साख पर भी सवालियां निशान लगने लगे है। इस बीच कलेक्टर और एसपी कॉन्फ्रेंस सुर्ख़ियों में है, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने प्रदेश की कानून व्यवस्था चुस्त – दुरुस्त बनाए रखने को लेकर नए दिशा – निर्देश जारी किये है, बेहतर प्रदर्शन करने वाले अधिकारियों की जहाँ पीठ थपथपाई है, वही औसतन कार्य प्रणाली के चलते कई अफसरों को फटकार लगाई और हिदायत भी दी है। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो ट्रॉलरेंस नीति का पालन सुनिश्चित करने के साथ ही जनता के साथ किये गए वायदों को पूरा करने के लिए सख्त रुख अपनाए जाने पर जोर दिया है। इस बीच प्रदेश की स्वास्थ सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में बीजेपी सरकार के अरमानों पर पानी फेरने वाला एक नया मामला उजागर हुआ है।

इसके मुताबिक केंद्र सरकार ने प्रदेश में 4 नए मेडिकल कॉलेजों की स्वीकृती प्रदान की थी, इसके लिए हजार करोड़ का बजट भी फौरी तौर पर स्वीकृत किया गया था। स्वास्थ महकमें ने 4 मेडिकल कॉलेजों क्रमशः दंतेवाड़ा, कवर्धा, चांपा – जांजगीर और मनेन्द्रगढ़ में इसके निर्माण के लिए ”निविदा – टेंडर” भी जारी किये थे। लेकिन एक भ्रष्ट कुचक्र से विभागीय कमीशनखोरी इतनी बढ़ी की अब पूर्व स्वीकृत रक़म से 4 के बजाय मात्र 3 मेडिकल कॉलेज ही अस्तित्व में नजर आएंगे। कमीशनखोरी का ग्राफ 25 फ़ीसदी तक उछाल मारने के बाद सत्ता के कर्णधारों ने आदिवासी बाहुल्य दंतेवाड़ा को मेडिकल कॉलेज के नक़्शे से बाहर कर दिया है।

विश्वसनीय जानकारी के मुताबिक प्रदेश की तमाम सरकारी निर्माण एजेंसियों के निविदा – टेंडर मौजूदा दौर में 20 से 25 फीसदी निम्नतम दरों ( Below Cost ) पर स्वीकृत किये जा रहे है, लेकिन CG MSC ने इसी निर्माण कार्य को लगभग 25 फीसदी अधिक दर ( Above Price ) पर स्वीकृत कर खलबली मचा दी है। यह भी बताया जा रहा है कि कमीशनखोरी का पैमाना उच्चतम अंक पर पहुंचने के चलते कर्ता – धर्ताओं ने टेंडर निविदा जारी करने के बावजूद दंतेवाड़ा में स्वीकृत मेडिकल कॉलेज के निर्माण पर रोक लगा दी है। अब मामला चीफ सेकेट्री के कार्यालय में गंभीर शिकायत के रूप में विचारणीय बताया जा रहा है। अफसरों द्वारा तस्दीक की जा रही है कि अब दंतेवाड़ा – सुकमा को छोड़ शेष 3 जिलों कवर्धा, चांपा – जांजगीर और मनेन्द्रगढ़ में ही मेडिकल कॉलेजो का निर्माण सुनिश्चित कराया जायेगा। उनके मुताबिक दंतेवाड़ा में अब मेडिकल कॉलेज अस्तित्व में आएगा या नहीं ? इसका फैसला प्रशासनिक मुखिया पर ही निर्भर है।

दंतेवाड़ा – सुकमा पर भारी पड़ा भ्रष्टाचार
नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा आदिवासी बाहुल्य इलाका है। यहाँ प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज की स्थापना को लेकर इलाके की आबादी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की जय – जयकार में जुटी है। नक्सली दंश की मार झेल रहे आदिवासी समुदाय ने इलाके की स्वास्थ सेवाओं को कारगर बनाने की पहल के रूप में मेडिकल कॉलेज के निर्माण को जरुरी बताया था। लेकिन अब नक्शे से ही गायब हो जाने के चलते उनके अरमानों पर पानी फिरता नजर आने लगा है। यह भी बताया जा रहा है कि स्वीकृत किये गए 4 नए शासकीय मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिए 1,077 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई थी। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने स्वास्थ्य सेवाओं को कारगर बनाने की दिशा में सक्रिय पहल करते हुए तत्काल बजट स्वीकृति प्रदान की थी। उन्होंने ऐलान किया था कि आदिवासियों के हितों के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जाएगी। लेकिन सरकार के प्राथमिकता वाले दंतेवाड़ा को ही दरकिनार कर दिया गया।जांजगीर-चांपा के लिए 357.25 करोड़, कबीरधाम में 357.25 करोड़ और मनेंद्रगढ़ में 362.57 करोड़ रूपये की अधिकतम दरों पर टेंडर निविदा जारी कर स्वीकृत बजट की बंदरबाट भी सुनिश्चित कर दी गई है।

तश्तरी में परोस कर ऐसे दिया जा रहा महतो एंड संस को लाभ
जानकारी के मुताबिक CGMSC द्वारा EPC मोड नंबर 1 पर पहले चार मेडिकल कॉलेज क्रमशः 1 – कवधी, 2 – चांपा जांजगीर, 3 – मनेन्द्रगढ़, 4 – दंतेवाडा / सुकमा के लिए निविदा आमंत्रित की गयी थी। विभाग में चलनशील तत्कालीन अधिकारियों ने निविदा – टेंडर में सुनियोजित शर्तें कुछ इस तरह से रखी थी, कि केवल दो ही बोलीदाता क्वॉलिफाय हो पाए और प्रतियोगिता में शामिल अन्य कंपनी को कार्यआदेश निविदा निरस्त मिल पाए। हालांकि प्रतियोगिता में शामिल L&T समूह द्वारा 148 % से ऊपर की बोली लगाए जाने के कारण इस निविदा को निरस्त कर दिया गया था। इसके बाद यह निविदा पुनः चारों मेडिकल कॉलेजों के लिए EPC मोड नंबर 1 पर बुलाई गयी थी। इसमें क्वालिफिकेशन हेतु गैर जरूरी शर्त रखी गयी कि कोई भी कंपनी जिसने मोड 1, मोड 2 या मोड 3 में से किसी में भी काम किया हो, यह निविदा दाखिल कर सकती है। जबकि निविदा मोड नंबर 1 पर बुलाई गयी थी, जिसके अनुसार केवल एक ही कंपनी क्वालीफाई हो रही थी। सूत्रों के मुताबिक विशेष व्यक्ति को लाभान्वित करने के लिए खासतौर पर दो कंपनियों को निविदा देने के लिए अफसरों ने टेंडर की शर्तों में परिवर्तन कर दिया। इस दौरान निर्देशित किया गया और नई शर्त तय की गई कि प्रतियोगी कंपनी उपरोक्त किसी भी मोड में निविदा भर सकती है। सूत्रों के मुताबिक उपरोक्त टेंडर की प्रक्रिया में मुख्यतः दो खामियां बरतते हुए CVC गाइडलाइन व CPWD मैन्युअल के ठीक विपरीत नई शर्ते जोड़ी गई।

जानकारी के मुताबिक CVC गाइडलाइन के विरुद्ध निविदा में “फॉर्म-J” (UNDERTAKING FOR SITE INSPECTION) की विशेष शर्त रखी गयी थी, इसके अनुसार प्रत्येक बोलीदाता को यह फॉर्म निविदा के साथ सलंग्न करना अनिवार्य किया गया था। अन्यथा साफ़ कर दिया गया था कि इसके अभाव में उसकी बोली निरस्त कर दी जाएगी। सूत्रों के मुताबिक पसंदीदा कम्पनी को लाभ पहुंचाने के लिए नई शर्ते जोड़ी गई, ताकि निविदाकर्ता को मालूम पड़ जाये कि, कौन कौन सी कंपनियां निविदा टेंडर में गंभीरता से भाग ले रही है ? यही नहीं ऐसी कंपनियों को एक साथ चिन्हित कर नया ”कार्टल” बनाया जा सके। इसके पीछे मकसद दो कंपनियों विशेष को ही कार्य आदेश प्राप्त हो सके और शेष कम्पनी इन्ही दो कंपनियों की दरों का समर्थन कर सकें। बताया जाता है कि जिस विशेष दो कंपनियों को कार्य आदेश देने की मंशा जाहिर की गई थी उनमे से एक को NRDA में भी लगभग सारे टेंडर – निविदा और कार्य आदेश जारी किये जाने की परम्परा है। यह कंपनी कोरबा के महतो एंड संस की बताई जाती है। इसके संचालक और ठेकेदार का बीजेपी से करीब का नाता बताया जा रहा है।

दंतेवाड़ा की जनता की मुख्यमंत्री से गुहार
मेडिकल कॉलेज की स्थापना का मामला लटकने का मामला दंतेवाड़ा में लोगों की जुबान पर है। सत्ताधारी दल के कई नेता हैरत में है। उनके मुताबिक मेडिकल निर्माण निविदा – टेंडर में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए CVC गाइडलाइन व CPWD मैन्युअल का पालन सुनिश्चित किया जाये। उनकी मांग है कि एक कारोबारी नेता विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए जारी किये जा रहे वर्क ऑर्डर व उक्त निविदा को फ़ौरन निरस्त किया जाये। उनकी दलील है कि जनता के धन का अपव्यय रोकने के लिए किसी केंद्रीय कंसल्टेंसी एजेंसी को टेंडर बुलाने व नए सिरे से DPR बनाने हेतु आदेशित किया जाए। ताकि अधिक से अधिक प्रतिस्पर्धी निविदाएँ – टेंडर में शामिल हो सके। जानकार भी तस्दीक कर रहे है कि बीजेपी सरकार यदि निष्पक्षता पर जोर देगी तो मौजूदा लागत में सीधे तौर पर 25 फीसदी की कमी आएगी, इससे शासन को आर्थिक बचत प्राप्त होगी और स्वीकृत बजट 1,077 करोड़ में ही चारों मेडिकल कॉलेजों का निर्माण सुनिश्चित होगा।
न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ ने इस मामले में आधिकारिक जानकारी के लिए CGMSC के अफसरों और विभागीय मंत्री से संपर्क स्थापित किया। लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई।