 
                  दिल्ली / रायपुर : – छत्तीसगढ़ कैडर के दो आईपीएस अधिकारी क्रमशः 2001 बैच के आंनद छाबड़ा और 2005 बैच के शेख आरिफ की कार्यप्रणाली को लेकर इन दिनों पूरे प्रदेश में कोहराम मचा है। हालत यह है कि छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय में डबल इंजन की बहार इस क़दर छाई हुई है कि कई अधिकारी अब ”शरीयत” कानून के पालन की वकालत तक करने में पीछे नहीं है। छत्तीसगढ़ कैडर में संशोधन कर कम से कम ”दो पत्नी पालन” की क़ानूनी इजाज़त स्वीकृत किये जाने की उनकी दलीलें कम रोचक नहीं बताई जाती है। उनका यह भी कहना है कि वर्षो पुरानी इस मांग की पूर्ति नहीं होने से ”डबल इंजन” लगाने की प्रवृत्ति तेजी से महकमे में अपने पैर पसार रही है। राज्य में कई वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ”बहु पत्नी विवाह” के चक्कर में आल इंडिया सर्विस कोड ऑफ कंडक्ट का घोर उल्लंघन कर रहे है। उनकी मनमर्जी के चलते सरकारी संसाधनों का न केवल दुरुपयोग जोरो पर हो रहा है बल्कि कई महिला अधिकारियो को भी तनाव और असहज स्तिथि के दौर से गुजरना पड़ रहा है। आप जानकर हैरत में पड़ जाएंगे की रायपुर समेत प्रदेश के कई चर्चित इलाकों में ”कॉल गर्ल” के कारोबार को लेकर ”पीटा एक्ट” की शिकार युवतियों और महिलाओं को ग्राहकों के साथ साथ ख़ाकी वर्दी वाले जिस्म के सौदागरों के साथ हमबिस्तर भी होना पड़ता है। यह तथ्य यूँ ही नहीं चर्चा में आया है, बल्कि ऐसी कई दास्तान उन पीड़ितों की है, जो पुलिसिया कार्यवाही में पहले तो छापेमारी की भेंट चढ़ी थी। फिर जेल की हवा खाने के बाद जमानत पर रिहा हुई और अदालत से भी बेदाग बरी हो गई। लेकिन कॉल गर्ल का दाग एक बार जो चरित्र पर लगा उसका दंश कई पीड़िताएं आज भी झेल रही है। वे हमबिस्तर होने वाले उन अधिकारियो का हुलियाँ और चाल – चरित्र बेहतर तरीके से बयां करती है, जिनकी पूरवर्ती कांग्रेस की भू – पे राज के दौर में तूती बोला करती थी। हालांकि मौजूदा बीजेपी शासनकाल में भी जिस्म के ऐसे सौदागरों की दास्तान पर विराम अभी भी नहीं लग पाया है, उनका बेलगाम डबल इंजन अपनी पूरी रफ़्तार पर है। ऐसे अधिकारी उसकी चपेट में आ रहे है, जो विधिसंगत रूप से एक ही पत्नी के साथ गुजर बसर कर रहे है। राज्य में उन आईपीएस अफसरों की जमात लगातार बढ़ती जा रही है, जो ”बिन फ़ेरे हम तेरे” का गुणगान जोर – शोर से कर रहे है।

एक जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ कैडर के वर्ष 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी शेख आरिफ़ की ”स्टडी लिव” की गैरकानूनी मंजूरी को लेकर नया बवाल मच गया है। यह मंजूरी उनके रसूख का इज़हार कर रही है। जानकारी के मुताबिक पुलिस मुख्यालय ने इस विवादित छबि के अधिकारी को ”सोलर ऐनर्जी” के क्षेत्र में अध्ययन के लिए लम्बी छुट्टी मंजूर की है। जबकि नियमानुसार विभागीय उपयोग में आने वाले संबंधित विषयों के अध्ययन के लिए ही ”स्टडी लिव” स्वीकृत करने का प्रचलित प्रावधान है। सवाल उठ रहा है कि पुलिस महकमे का सोलर एनर्जी से ऐसा कौन सा नाता है कि पुलिस मुख्यालय ने बगैर गौर फरमाए शेख आरिफ़ की हाथों – हाथ ”स्टडी लिव” मंजूर कर दी। यह भी बताया जाता है कि गैरकानूनी रूप से छुट्टी हासिल करने के बाद इस अधिकारी ने पढाई – लिखाई के बजाय नए मिशन में अपने पैर पसार लिए है। वो वर्ष 2028 में कांग्रेस की सरकार को सत्ता में लाने का ब्लू प्रिंट तैयार करने में व्यस्त बताए जाते है। सूत्रों के मुताबिक रायपुर में ”आनंदम ठिकाने” पर इस अधिकारी की नियमित बैठके जारी है, इन बैठकों में पूर्व मंत्री मो. अकबर के विधानसभा चुनाव क्षेत्र का चयन और जीत की रणनीति के एजेंडे के अलावा भू – पे बघेल को सत्ता की बागडोर दोबारा सौंपने की रणनीति पर विचारमंथन किया जा रहा है।

यह भी बताया जाता है कि 15 हजार करोड़ के महादेव एप सट्टा घोटाले में तमाम आरोपियों की जमानत स्वीकृत होने के बाद सीबीआई ने संदेही आईपीएस अधिकारियो की ओर से अपना मुँह मोड़ लिया है। प्रदेश में सीबीआई की सक्रियता उस समय देखी जा रही थी जब एजेंसी ने शेख आरिफ और आनंद छाबड़ा समेत लगभग आधा दर्जन पुलिस अधिकारियो के ठिकानों पर छापेमारी की थी। इस कार्यवाही के बाद सीबीआई के कदम थमे हुए नजर आ रहे है। सट्टा कारोबार में करोड़ो की कमाई करने वाले पुलिस अधिकारियो के खिलाफ कोई सुसंगत कार्यवाही अब तक सामने नहीं आई है। जबकि ऐसे संदेही अधिकारियो की कार्यप्रणाली सुर्ख़ियों में है। यह भी बताया जाता है कि कायदे – कानूनों को दरकिनार करने वाले अधिकारियों की मौजूदा बीजेपी शासनकाल में भी हनक कम नहीं होने के चलते उनकी गैरकानूनी गतिविधियां अभी भी जस की तस जारी है।

जानकारी के मुताबिक वर्ष 2018 से लेकर 2023 तक प्रदेश के खुफियां चीफ की कमान संभालने वाले आनंद छाबड़ा की गैरकानूनी गतिविधियों की जाँच का मामला भी अधर में लटका बताया जाता है। यह भी बताया जाता है कि इस अफसर ने प्रदेश में SS फंड का जिस तर्ज पर घोटाला किया था उससे नक्सल प्रभावित इलाको में बड़े पैमाने पर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों को जानमाल का नुकसान उठाना पड़ा था। मुख़बिरी फंड का दुरुपयोग होने से पुलिस का खुफियां तंत्र कई बड़ी वारदातों के बावजूद शून्य साबित हुआ था। जबकि सालाना 15 करोड़ से ज्यादा की रकम मुख़बिरी फंड के नाम पर निजी और राजनैतिक कार्यक्रमों में लुटाये गए थे। इस प्रकरण की ”इंटरनल ऑडिट” करा कर दोषियों  पर कार्यवाही की मांग आज भी फ़ाइलों में कैद बताई जाती है। एक गंभीर शिकायत में बताया गया था कि तत्कालीन खुफियां चीफ ने करीब 200 सिमकार्ड का उपयोग किया था। उन्होंने मोटी रकम राजनेताओं की तीमारदारी में लुटा दी थी। जबकि पुलिस बल साल दर साल SS फंड की रकम प्राप्ति की राह तकते रहा। आनंद छाबड़ा की बाजार से मनचाही ख़रीदी में बेगार लादने और थानेदारों से अवैध वसूली के कई किस्से कहानियां प्रभावितों की जुबान पर है। इस बीच कवर्धा में उनकी ”पूजा – पाठ अभी भी अनवरत जारी बताई जाती है। बताया जा रहा है कि कवर्धा में बतौर पुलिस अधीक्षक की कमान संभालने के बाद शहर की पूजा से उनका गहरा नाता जुड़ गया था। पूजा – पाठ के लिए वे अक्सर यहां के एक निजी लॉज, जो पहले सुप्रित लॉज के नाम से जाना जाता था और वर्तमान में सेलेब्रेशन लॉज कहलाता है, में ठहरते थे। उनकी कई दास्तान जन चर्चा में बताई जाती है। 

छत्तीसगढ़ में आधा दर्जन से ज्यादा वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियो की इश्क़ मिजाजी पीड़ितों की आत्महत्या की राह पकड़ चुकी है। धमतरी में निवासरत एक महिला ऐसे ही इश्क़ के चक्कर में फांसी पर झूल चुकी है। इस मामले की जाँच तो शुरू नहीं हो पाई अलबत्ता महिला सुरक्षा से जुडी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित ”विशाखा कमेटी” की जाँच रिपोर्ट तक बगैर कार्यवाही रद्दी की टोकरी में डाल दी गई है। ऐसी गतिविधियों में लिप्त अफसरों की फेहरिस्त में ज्यादातर अधिकारी IG स्तर के सामने आ रहे है, जो डबल इंजन के मायने भी अपनी मन – मर्जी से गढ़ रहे है। यही नहीं पत्नीव्रता कुछ अधिकारी किसी सुनियोजित षड्यंत्र के तहत तनाव और अप्रिय स्थिति के दौर से गुजरते भी बताये जाते है। पुलिस मुख्यालय की बेरुखी उन पर भारी गुजर रही है। एक जानकारी के मुताबिक महिला अपराधों में लिप्त आईपीएस अधिकारियों के अलावा लम्बी फेहरिस्त उन थानेदारों और SP – CSP की भी बताई जाती है, जिनके खिलाफ पिछले वर्षो में बलात्कार के मामले दर्ज किये गए थे। विभागीय सूत्रों के मुताबिक डबल इंजन की बयार बहने से पुलिस महकमे में हालात दिनों – दिन बत से बत्तर हो रहे है। ऐसे कई पुलिस अधिकारियों के खिलाफ बलात्कार के आपराधिक प्रकरण दर्ज होने के बावजूद विभागीय नरमी बरती गई है। कभी राजनैतिक दबाव तो कभी क़ानूनी दांवपेचों से आरोपी अफसर मस्ती में नौकरी और छोकरी दोनों का लुफ्त उठा रहे है। बहरहाल, महिला अपराधों के जंजाल में आईपीएस अधिकारियो की भूमिका और करीब के नाते के चलते मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सुशासन पर चोट लगना लाज़िमी बताया जाता है।

 
         
         
         
         
         
        