
जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा 2025 की महत्वपूर्ण रस्म मावली परघाव देर रात जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण में धूमधाम के साथ संपन्न हुई। दो देवियों के मिलन का यह अनूठा आयोजन इस बार भी हजारों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में हुआ।
बारिश के बावजूद उत्साह बना रहा
मौसम ने इस बार थोड़ी चुनौती दी, लेकिन भारी बारिश के बावजूद रस्म की भव्यता और श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ। दंतेवाड़ा शक्तिपीठ से माता मावली की डोली और छत्र को परंपरा अनुसार जगदलपुर लाया गया। बस्तर राजपरिवार के सदस्य और भक्तों ने भव्य आतिशबाजी और पुष्पवर्षा के बीच देवी का स्वागत किया।
600 वर्षों से चली आ रही परंपरा
नवरात्र की नवमी को होने वाली यह रस्म लगभग 600 वर्षों से निरंतर निभाई जा रही है। मान्यता है कि इसका प्रारंभ बस्तर रियासत के महाराजा रूद्र प्रताप सिंह के समय हुआ था। मावली देवी मूलतः कर्नाटक के मलवल्य गांव की देवी हैं, जिन्हें छिंदक नागवंशीय शासकों ने बस्तर लाकर प्रतिष्ठित किया। बाद में चालुक्य राजा अन्नम देव ने उन्हें कुलदेवी के रूप में मान्यता दी और तभी से मावली परघाव की परंपरा शुरू हुई।
राजपरिवार और पुजारियों की परंपरागत भागीदारी
इस अवसर पर बस्तर के राजा, राजगुरु और पुजारी नंगे पांव राजमहल से मंदिर तक देवी की डोली का स्वागत करते हैं और दशहरे के समापन पर ससम्मान विदाई देते हैं। यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक विरासत और परंपरा का भी प्रतीक है।