Artificial Rain: गुरुग्राम सोसायटी में कराई गई आर्टिफिशियल बारिश, दिल्ली में चल रहा मंथन

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Artificial Rain: दिल्ली में बीते कुछ दिनों में वायु प्रदूषण हद से ज़्यादा बढ़ गया है. आज छठ पूजा के सुबह के अर्घ्य जिसके कारण दिल्ली सरकार काफी दिनों से कृत्रिम बारिश कराने पर विचार कर रही है. आर्टिफिशियल रेन पहले अमेरिका, रूस, चीन और यूएई जैसे देशों में देखी-सुनी जाती थी. लेकिन बीते कुछ सालों से भारत में भी इसकी खूब चर्चा हो रही है. इसकी वजह तो शहरों में बढ़ता वायु प्रदूषण है. दरअसल आर्टिफिशियल रेन को वायु प्रदूषण से निपटने के कारगर तरीके के रूप में देखा जाता है. हालांकि अभी तक इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले हैं.

तमाम रिसर्च और उसके नतीजे बताते हैं कि सर्दियों की शुरुआत होते ही दिल्ली में होने वाले प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह खुद दिल्ली के लोग हैं. गाड़ियों से निकलने वाले धुएं के अलावा खेत में पराली जलाने जैसे तमाम कारणों को इसकी वजह बताया जाता है. प्रदूषण तकनीकी रूप से तीन वजहों से एकदम ठीक हो सकता है. पहला उपाय मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं. वो ये कि लोग रेड लाइट पर ही गाड़ी का इंजन बंद न करें बल्कि पूरी तरह से दिल्ली मेट्रो या सीएनजी बसों जैसी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर आश्रित हो जाएं, जहां ऐसी बसें न हो, वहां सरकार फौरन चलवाए. इसके साथ ही कुदरत मेहरबान हो यानी हवा तेज चले और समय-समय पर बारिश हो जाए तो धूल-धुआं-धक्कड़ से होने वाला प्रदूषण आसमान से फुर्र हो जाएगा.

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय केंद्र सरकार को कृत्रिम बारिश कराने के लिए तीन-चार पत्र लिख चुके हैं. ये बारिश करवाना केंद्र की जिम्मेदारी है या दिल्ली सरकार की इस विमर्श से इतर दिल्ली वाले जब तक अपनी सोच को अमलीजामा पहनाते तब तक गुरुग्राम की एक सोसायटी ने आर्टिफिशियल रेन कराकर बता दिया कि ठान लिया जाए तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है.

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क्लाउड सीडिंग का मतलब है बादलों की बुवाई. इसके जरिए लोगों की जरूरत के मुताबिक कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है. IIT कानपुर ने इस टेस्ट को काफी पहले ही सफलतापूर्वक पूरा कर लिया था. बारिश के लिए बादलों का घिरना अनिवार्य है. ऐसे में क्लाउड सीडिंग तकनीक की भूमिका यही है कि एक विमान आसमान में जाकर बादलों की बुवाई कर देता है. इसके लिए खास केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. बादल में बीज के रूप में सूखी बर्फ, नमक, सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम क्लोराइड और सोडियम क्लोराइड जैसे तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है. जब ये बीज बादलों से मिलते हैं तो प्रतिक्रिया स्वरूप ये घने बादल में तब्दील हो जाते हैं और बढ़िया बारिश हो जाती है. इस बारिश की बूंदे सामान्य बारिश से मोटी होती हैं.

बारिश के बीज बोने से बादलों का घनत्व बढ़ जाती है और एक निश्चित इलाके के बादल बर्फीले स्वरुप में बदलकर इतने भारी हो जाते हैं कि ज्यादा देर तक आसमान में लटके नही रह सकते हैं, ऐसे में वो नेचुरली बारिश के रूप में आसमान से बरसने लगते हैं. सिल्वर आयोडाइड इस काम के लिए सबसे मुफीद माना जाता है. कृत्रिम वर्षा कराने के लिए इसी प्रक्रिया का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है. एक निश्चित इलाके में निर्धारित बादलों में बारिश के बीज डालने के लिए हवाई जहाज, रॉकेट या गुब्बारे का प्रयोग किया जा सकता.