Chandrayaan-3 का एक और कमाल, खोला ऐसा राज कि वैज्ञानिक भी हैरान, चांद पर कभी था गर्म लावा का समंदर

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नई दिल्ली: दुनिया भर में Chandrayaan-3 भारतीय स्पेस एजेंसी ISRO के साथ-साथ भारत की शान बढ़ा चुका है. अब इससे प्राप्त डेटा से एक नया खुलासा हुआ है. वैज्ञानिकों के अनुसार, चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव कभी तरल पिघली हुई चट्टानों के समुद्र से ढका हुआ था. इसका मतलब है कि कभी चंद्रमा के अंदर और बाहर लावा ही लावा हुआ करता था. इसे मैग्मा महासागर भी कहा जाता है. यह खुलासा हाल ही में Nature जर्नल में प्रकाशित हुई रिसर्च पेपर से हुई है.

ये खुलासे चंद्रमा के निर्माण के बारे में लूनर मैग्मा महासागर सिद्धांत नामक एक विचार का समर्थन करते हैं. वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि जब 4.5 अरब साल पहले चंद्रमा का निर्माण हुआ, तो यह ठंडा होना शुरू हो गया और फेरोअन एनोर्थोसाइट नामक एक हल्का खनिज सतह पर तैरने लगा. इस फेरोअन एनोर्थोसाइट – या पिघली हुई चट्टान – ने चंद्रमा की सतह का निर्माण किया. नए खुलासे के पीछे की टीम ने दक्षिणी ध्रुव में फेरोअन एनोर्थोसाइट के सबूत पाए.

फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी के डॉ. संतोष वडावले ने कहा, “हमारे अवलोकनों के प्रकाश में चंद्रमा के प्रारंभिक विकास का सिद्धांत और अधिक मजबूत हो जाता है.” भारत के मिशन से पहले, अपोलो कार्यक्रम के हिस्से के रूप में चंद्रमा के मध्य अक्षांशों में मैग्मा महासागरों के मुख्य साक्ष्य पाए गए थे.

हाइपोथेसिस के अनुसार, चंद्रमा का निर्माण दो प्रोटोप्लैनेट (ग्रह निर्माण से पहले की अवस्था) के बीच टकराव के परिणामस्वरूप हुआ था. जबकि बड़ा ग्रह पृथ्वी बन गया, छोटा ग्रह चंद्रमा बन गया. परिणामस्वरूप, चंद्रमा बहुत गर्म हो गया, जिससे उसका पूरा आवरण पिघलकर ‘मैग्मा महासागर’ में बदल गया. यही है मैग्मा महासागर. वहीं बता दें कि इस साल चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग की खुशी में पहला नेशनल स्पेस डे मनाया जा रहा है. अब यह दिन हर साल इसी तरह से सेलिब्रेट किया जाएग. अहमदाबाद स्थित फिजिकल रिसर्च लोबोरेटरी के जियोलॉजिस्ट संतोष वी. वडावले ने कहा कि हमारे इंस्ट्रूमेंट ने यह प्रमाणित कर दिया है कि चांद पर लूनर मैग्मा ओशन (LMO) था.