News Today : नंदिनी के डेयरी प्रोडक्ट्स को टक्कर देने में अमूल के छूटेंगे पसीने, वजह जेब से जुड़ी है, जान लीजिए

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नई दिल्लीः News Today : अमूल ने 5 अप्रैल को ऐलान किया कि वो कर्नाटक में एंट्री लेने जा रहा है. अमूल गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन का प्रोडक्ट (GCMMF) है. पर कर्नाटक के पास अपना कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन (KMF) है, जिसका दूध नंदिनी ब्रांड नेम से बिकता है. इसे लेकर राजनीति भी हो रही है. विपक्ष के नेता आशंका जता रहे हैं कि अमूल को कर्नाटक में लाकर स्थानीय नंदिनी के मार्केट पर चोट करने की कोशिश की जा रही है. पर राजनीति को अलग रखकर अगर आंकड़ों की बात करें तो ऐसा लगता नहीं कि अमूल से नंदिनी के मार्केट पर कोई खास असर पड़ने वाला है.

अमूल को नंदिनी के सामने बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है. इसकी बड़ी वजह है कीमतें. नंदिनी ब्रैंड के दूध अमूल की तुलना में काफी सस्ते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, नंदिनी के एक लीटर टोन्ड मिल्क की कीमत बेंगलुरु में 39 रुपये है, जबकि अमूल का एक लीटर टोन्ड दूध दिल्ली में 54 रुपये और गुजरात में 52 रुपये में मिलता है. इसी तरह अमूल का फुल क्रीम मिल्क दिल्ली में 66 रुपये लीटर और गुजरात में 64 रुपये लीटर मिलता है, जबकि नंदिनी का फुल क्रीम मिल्क 50 रुपये में 900 ml और 24 रुपये में 450 ml आ जाता है.

इस हिसाब से नंदिनी की कीमतें अमूल की तुलना में काफी कम हैं. नंदिनी की दही भी एक किलो 47 रुपये में जा जाती है, जबकि अमूल का 450 ग्राम का पैकेट 30 रुपये में आता है. कीमतों को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि किसी भी ब्रांड के लिए नंदिनी से कंपीट करना एक बड़ी चुनौती होगी.

पर नंदिनी के प्रोडक्ट्स इतने सस्ते कैसे हैं?
GCMMF के बाद KMF भारत का दूसरा सबसे बड़ा डेयरी को-ऑपरेटिव है. दोनों लगभग एक ही तरीके से काम करते हैं. साल 2008 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे बीएस येदियुरप्पा. उन्होंने KMF की यूनिट्स में दूध जमा करने पर दूध उत्पादकों को दूध की कीमत के साथ-साथ हर एक लीटर दूध पर 2 रुपये की सब्सिडी देना शुरू किया. पांच साल बाद, यानी 2013 में सिद्धारमैया की सरकार ने सब्सिडी को दोगुना किया, तीन साल बाद उन्होंने इसे बढ़ाकर 5 रुपये प्रति लीटर कर दिया. 2019 में जब येदियुरप्पा फिर से सीएम बने तो उन्होंने सब्सिडी को बढ़ाकर 6 रुपये प्रति लीटर कर दिया. कर्नाटक सरकार दूध उत्पादकों को करीब 1200 करोड़ की सालाना सब्सिडी देती है.

किसी भी प्रोडक्ट को बेचने पर जब उसके उत्पादकों को ज्यादा सब्सिडी मिलती है तो उत्पादक उसे बेचने के लिए प्रोत्साहित होते हैं. इससे उस प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई का बैलेंस बना रहता है. अच्छी सब्सिडी के चलते दूध उत्पादक KMF को दूध बेचते हैं. KMF का रोज़ का दूध प्रोक्योरमेंट करीब 84.5 लाख लीटर हुआ करता था. हालांकि, इस साल जनवरी में आई एक रिपोर्ट के चलते दूध का प्रोक्योरमेंट करीब 10 लाख लीटर तक कम हुआ है. इसके चलते बीते दिनों KMF ने दूध की कीमतें बढ़ाई भी थीं. इसके बाद भी अमूल की तुलना में नंदिनी के प्रोडक्ट्स काफी बजट फ्रेंडली हैं.

पैसों के साथ-साथ एक बड़ी वजह सेंटीमेंट्स की भी है. कर्नाटक की जनता के लिए नंदिनी उनके घर का ब्रांड है. उनके अपने किसानों के घर से आने वाला दूध. पैसों के मामले में एक बार आदमी समझौता कर भी ले, पर सेंटिमेंट्स के मामले में लोग कॉम्प्रोमाइज़ करना पसंद नहीं करते. ऐसे में लोगों के मन में जगह बनाना भी अमूल के लिए एक बड़ा टास्क होगा.वैसे बता दें कि GCMMF यानी अमूल का प्लान फिलहाल ई-कॉमर्स के जरिए ही कर्नाटक में प्रोडक्ट्स बेचने का है. फिलहाल नंदिनी से सीधी टक्कर लेने का अमूल का कोई प्लान नहीं है.