रायपुर: छत्तीसगढ़ में खादी, खाकी और खाड़ी का गजब संयोग है। इस गठजोड़ से सरकारी तिजोरी पर हाथ साफ किया जा रहा था। यही नहीं बघेल गिरोह मनी लॉन्ड्रिंग के जरिये भारतीय मुद्रा दुबई और खाड़ी देशों में ठिकाने लगा रहे थे। ED के कई आरोपियों का कारोबार दुबई तक फैला बताया जाता है। यह भी बताते है कि केंद्र और राज्य सरकार की आंखों में धूल झोंक कर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल समेत कई आईपीएस अधिकारी सट्टा तक खिलाने में पीछे नहीं थे। उनकी अवैध आय का महत्वपूर्ण स्रोत महादेव ऐप सट्टा संचालन और उसका बाजार ही बताया जाता है।

सूत्र तस्दीक करते है कि खादी का कुर्ता पहने पूर्व मुख्यमंत्री बघेल खाकी वर्दीधारी गिने चुने आईपीएस अधिकारियों के साथ रोजाना बैठक कर नगदी का हिसाब-किताब भी किया करते थे। पुलिस अधिकारी चंद्रभूषण वर्मा द्वारा ED में दर्ज बयानों से पता चलता है कि हर महीने की आखिरी तारीख से पूर्व आईपीएस अधिकारियों और पूर्व मुख्यमंत्री बघेल को करोड़ों का भुगतान किया जाता था।
चंद्रभूषण वर्मा के मुताबिक बघेल के रिश्तेदार विनोद वर्मा के हिस्से की नगदी रायपुर के कोटा स्थित एक स्कूल में जमा कराई जाती थी। जबकि बाकी लोगों को उनके आवास और बताये गए ठिकानों पर भुगतान किया जाता था।

बीजेपी के सत्ता में आते ही तत्कालीन ख़ुफ़िया प्रमुख 2001 बैच के आईपीएस अधिकारी आनंद छाबड़ा ने मुख्यमंत्री बघेल के सरकारी और गैर-सरकारी आवास समेत अन्य ठिकानों में रखे सरकारी रजिस्टर और दस्तावेज नष्ट कर दिए थे।
यह भी बताया जाता है कि मुख्यमंत्री आवास में आवाजाही और मिलने-जुलने वालों का पूरा ब्यौरा सरकारी रजिस्टर में दर्ज किया जाता था। चंद्र भूषण वर्मा के मुताबिक जब भी वे रकम देने के लिए मुख्यमंत्री आवास आवाजाही करते थे, तब-तब उनका नाम रजिस्टर में लिखा जाता था, यहाँ के CCTV कैमरों में उनकी आवाजाही का वीडियो भी उपलब्ध था।

इधर यह तथ्य भी सामने आया है कि महादेव ऐप घोटाले की ED जांच शुरू होते ही तत्कालीन ख़ुफ़िया प्रमुख आनंद छाबड़ा ने अपनी देख-रेख में समस्त सरकारी रिकॉर्ड नष्ट कर दिया था। यह भी बताते है कि रायपुर के एक अस्पताल संचालक डॉक्टर के ठिकाने पर कुछ माह पूर्व पड़ी ED रेड में जब्त करोड़ों की नगदी आनंद छाबड़ा की ही थी। उसने अपने सहयोगी डॉक्टर के कारोबार में निवेश के लिए यह रकम उसे सुपुर्द किया था। सूत्र यह भी तस्दीक करते है कि केंद्रीय एजेंसियों की जासूसी करने और छापेमारी की सूचना भूपे बघेल गिरोह तक पहुंचाने के लिए छाबड़ा अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग कर रहे थे।

ED ने तत्कालीन राज्य सरकार को उनके काले-कारनामों से अवगत भी कराया था। इस दौरान जासूसी के आरोप में छाबड़ा के करीबी सिपाही को ED ने धर दबोचा भी था। सीबीआई ने रायपुर के तत्कालीन ASP क्राइम अभिषेक माहेश्वरी के ठिकानों पर भी दबिश दी है।
बताते है कि पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के कार्यकाल में अवैध फ़ोन टेपिंग और पुलिस तंत्र के दुरुपयोग की जिम्मेदारी माहेश्वरी के कन्धों पर थी। सट्टे की खिलाफत करने वाले व सटोरियों को रकम नहीं चुकाने पर वसूलीकर्ता के रूप में वे सरकारी कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे। इस कार्य में उनके सहयोगी सिपाही हरदेव, संदीप दीक्षित और राधा कांत पांडे के ठिकानों पर भी सीबीआई डटी है।

बताते है कि आईपीएस अधिकारियों की नगद रकम उनके रिश्तेदारों तक सुरक्षित पहुंचाने के मामले में ये सिपाही काफी माहिर थे। महादेव ऐप में घोटाले लिप्त होने के बावजूद उनके रसूख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद संदीप दीक्षित और राधा कांत पांडे को EOW में पदस्थ कर दिया गया था। जबकि यह एजेंसी भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावी कार्यवाही के लिए गठित की गई है।
बताते है कि मामले के खुलासे के बाद दोनों ही सिपाहियों को EOW से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। छत्तीसगढ़ में आईपीएस अधिकारियों में सबसे अधिक धनवान और रिश्वत लेने के मामलों में कुख्यात अधिकारियों में 2005 बैच के शेख आरिफ और 2007 बैच के प्रशांत अग्रवाल का नाम शुमार बताया जाता है।

पूर्ववर्ती भूपे राज में इन अधिकारियों ने पीड़ितों से 100 करोड़ से ज्यादा की रकम वसूली थी। इसके अलावा सट्टा संचालन में भी महारथ हासिल की थी। पुलिस थानों में FIR दर्ज करने, ना करने, गंभीर धारा जोड़ने-हटाने और कई क़ानूनी प्रक्रियाओं के लिए कभी पीड़ितों से तो कभी आरोपियों से इनके द्वारा मोटी रकम वसूला जाना इन आईपीएस अफसरों की कार्यप्रणाली का अहम् हिस्सा बताया जाता है।
मुंबई, दिल्ली, पुणे लखनऊ जैसे महानगरों में इनका बड़ा निवेश बताया जाता है। यह भी बताया जाता है कि शेख आरिफ और प्रशांत अग्रवाल ने कोल घोटाले में भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। आईपीएस प्रशांत अग्रवाल, आईपीएस भोजराम पटेल और आईपीएस पारुल माथुर का नाम कोल घोटाले की महत्वपूर्ण कड़ी में शामिल बताया जाता है।

जानकारों के मुताबिक भूपे गिरोह द्वारा पुलिस के जरिये उन उद्योगपतियों और कारोबारियों पर जानबूझ कर शिकंजा कसा जाता था, जिनका कारोबार दूर-दूर तक फैला था। ये गिरोह कभी ऐसे कारोबारियों से अवैध वसूली तो कभी उनके कारोबार और उद्योग-धंधों में ब्लैक मनी खपाने के लिए विवश करता था।

जानकारी के मुताबिक प्रदेश के घोटालेबाज तमाम दागी आईपीएस अफसर ब्लैक मनी खपाने के मामले में 24X7 सक्रिय रहते थे। वे किसी पेशेवर गिरोह की तर्ज पर छत्तीसगढ़ को लूट रहे थे। नेता बघेल और उनके विश्वसनीय आईपीएस-आईएएस अधिकारी प्रदेश में दिन दहाड़े डकैती डाल रहे थे।

भूपे गिरोह पूरे 5 साल तक एक से बढ़ कर एक कई घोटालों और अपराधों को अंजाम दे रहा था। लेकिन अब सीबीआई ने उन पर शिकंजा कस दिया है, जिन ठिकानों पर सीबीआई की रेड जारी है, जिन इलाकों में छापेमारी जारी है, वहां के रास्ते सील कर दिए गए है। इन इलाकों में यातायात को डायवर्ट कर एजेंसियां अपने कार्य में जुटी है। उनकी सहायता के लिए पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान भी तैनात है। संदेहियों के ठिकानों पर एजेंसियों की छापेमारी को लेकर सीबीआई की ओर से अभी कोई बयान सामने नहीं आया है।

अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि जिन नेताओं और आईपीएस अफसरों के ठिकानों पर छापेमारी जारी है, उनका सीधा नाता दुबई में बैठे महादेव ऐप के सटोरियों के साथ था। पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के खास मीडिया मैनेजर विनोद वर्मा के ठिकानों पर भी सीबीआई ने छापेमारी की है। विनोद वर्मा इसके पूर्व फर्जी सेक्स सीडी कांड में सीबीआई के हत्थे चढ़ चुके है। यह भी बताया जाता है कि घोटाले में लिप्त नेताओं समेत ज्यादातर आईपीएस अधिकारियों ने करोड़ों की नगदी कमाई और काफी पहले उसे ठिकाने भी लगा दिया था।

ऐसे नेताओं और अफसरों के ठिकानों में नगदी की जब्ती के बजाय जमीन जायजाद के आधिकारिक दस्तावेज ही उपलब्ध होने के आसार है। लिहाजा जानकार यह भी तस्दीक कर रहे है कि बीते 5 वर्षों में इन नेताओं और उनके रिश्तेदारों द्वारा अर्जित की गई आकूत संपत्ति की भी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। यह भी बताते है कि घोटाले में लिप्त आईपीएस अधिकारियों की ढेरों शिकायतें पुलिस मुख्यालय और राज्य सरकार के पास लंबित है। लेकिन मौजूदा बीजेपी शासन काल में भी इन अफसरों की तूती बोल रही है।

सरकार में प्रभावशील एक लॉबी दागी आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ लंबित वैधानिक कार्यवाही ‘शून्य’ करने पर जुटा है। यही नहीं ऐसे दागी अफसरों को मलाईदार पदों पर बनाये रखने पर भी कामयाब रहा है। गौरतलब है कि राज्य में सत्ता में आते ही बीजेपी सरकार ने कुख्यात आईपीएस अफसरों को ठिकाने लगाने के बजाय मनचाहे स्थानों पर नियुक्ति दे दी थी। मौज-मस्ती में जुटे अफसरों ने महादेव ऐप घोटाले की जांच सीबीआई कों सौंपे जाने के पूर्व ही बड़े पैमाने पर चल-अचल संपत्ति ठिकाने लगा दी थी। एजेंसियां उनकी भी खोजबीन में जुटी बताई जाती है।

सूत्र यह भी तस्दीक कर रहे है कि पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के करीबी रामगोपाल अग्रवाल की भी जोर-शोर से तलाश की जा रही है। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद ही रामगोपाल अग्रवाल ने दुबई समेत खाड़ी देशों का रुख कर लिया था। शराब घोटाले और महादेव ऐप सट्टा घोटाले की जद में आये ज्यादातर आरोपियों को पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल के कार्यकाल में लूटमार करने का सरकारी लाइसेंस प्राप्त था। फ़िलहाल, सीबीआई की छापेमारी जारी है, अभी एजेंसियों की ओर से छापेमारी को लेकर को आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है।