अकबर-बीरबल ने भ्रष्ट्राचार में लिप्त ठेकेदार भाई अजगर और दोषसिद्ध अधिकारियों को बचाने के लिए दांव पर लगा दी छत्तीसगढ़ सरकार की साख , छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड की योजनाओं में अरबों के भ्रष्टाचार की जांच रिपोर्ट में नामजद किये गए अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए लगाया गले  , कांग्रेस सरकार की “अब होगा न्याय” की मुहीम को खुद मंत्री जी लगा रहे गहरा धक्का , देखे जांच रिपोर्ट 

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रायपुर / छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड की दुर्ग स्थित तालपुरी परियोजना में अरबों के फर्जीवाड़े को लेकर अकबर-बीरबल ने आंखे मूंद ली है | इस योजना में हुए भ्रष्ट्राचार को लेकर पहले कैग की रिपोर्ट में आपत्ति उठाई गई थी | इसके बाद वर्ष 2013 में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने मामले की जांच कराई | जांच रिपोर्ट में बड़े पैमाने पर सुनियोजित भ्रष्ट्राचार की पुष्टि हुई थी | भ्रष्ट्राचार के इस गंभीर मामलों को लेकर जिम्मेदार मौजूदा विभागीय मंत्री के रुख से कांग्रेस सरकार की साख पर बट्टा लग रहा है | खासतौर पर भ्रष्ट्राचारियों के खिलाफ “अब होगा न्याय” जैसी मुहीम को हाऊसिंग बोर्ड के ठेकेदार समेत भ्रष्ट्र अफसर मुंह चिढ़ा रहे है | दरअसल  तत्कालीन बीजेपी सरकार ने अपने मंत्रियों और हाऊसिंग बोर्ड के पदाधिकारियों को बचाने के लिए उन अफसरों की ओर से मुंह मोड़ लिया था  , जिन्होंने अपने पद और अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए शासन को करोड़ों का चूना लगाया था | कांग्रेस के सत्ता में आते ही इस मामले की जांच रिपोर्ट समेत पूरी फाइल ही मुख्यालय से गायब करा दी गई है  |

बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड में भ्रष्ट्राचार के खेल में एक प्रभावशील कांग्रेसी नेता का भाई शामिल है | यह शख्स बतौर ठेकेदार ना केवल घटिया निर्माण कार्यों के लिए जिम्मेदार है , बल्कि इस सुनियोजित भ्रष्ट्राचार में उसकी मुख्य भूमिका है | पुख्ता जानकारी के मुताबिक तत्कालीन बीजेपी सरकार के कार्यकाल में अजगर नामक ठेकेदार ने कुछ प्रभावशील अधिकारियों के अलावा तत्कालीन सीएम सचिवालय में पदस्थ चर्चित अफसरों से सांठगांठ कर भ्रष्ट्राचार का ऐसा खेल खेला कि सरकारी तिजोरी में अरबों की सेंध लगी |

आपराधिक भ्रष्ट्राचार के इस मामले की जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के बजाए तत्कालीन बीजेपी सरकार ने उसे फाइलों में कैद कर दिया | तत्कालीन सरकार ने ठेकेदार समेत दोषसिद्ध पाए गए अधिकारियों के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई करने में भी कोई रूचि नहीं दिखाई | लोगों को उम्मीद बंधी थी कि कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद “न्याय” होगा | लेकिन हुआ उल्टा , हाऊसिंग बोर्ड मुख्यालय से तालपुरी घोटाले की जांच रिपोर्ट व फाइल समेत रायपुर स्थित क्वींस क्लब की फाइल तक गायब करा दी गई | फाइल गायब कराने के मामले में ठेकेदार अजगर समेत अतिरिक्त कमिश्नर एचके वर्मा का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है |

बताया जा रहा है कि आरटीआई के जरिये मांगे जा रहे दस्तावेजों को अफसर यह कहकर इंकार कर रहे है कि मुख्यालय में फाइल ही नहीं है | हालांकि तद दौरान दो साल पूर्व  RTI के जरिये कई दस्तावेज छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड ने सम्बंधित व्यक्तियों को जारी किये थे | जांच रिपोर्ट समेत इन दस्तावेजों की प्रतिलिपि न्यूज़ टुडे के पास मौजूद है | पाठकों के लिए इन दस्तावेजों को इस समाचार के साथ संलग्न किया गया है , ताकि वे अवगत हो सके कि अकबर-बीरबल की जोड़ी आखिर क्यों भ्रष्ट्राचार की जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के बजाये दोषी करार दिए गए अफसरों को बचाने में जुटी है | बताया जाता है कि एक प्रभावशील कांग्रेसी नेता के ठेकेदार भाई को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की साख दांव पर लगा दी गई है |

दरअसल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मुहीम अब होगा न्याय के चलते भ्रष्ट्राचारियों में हड़कंप मचा हुआ है | ऐसे में CGHB में बीते 15 सालों में हुए भ्रष्ट्राचार के मामले सुर्ख़ियों में है | हालांकि कांग्रेस शासन में भी इन मामलों को रफा-दफा करने के प्रयास जोरो पर है | इसके चलते विभागीय मंत्री मोहम्मद अकबर की कार्यप्रणाली पर भी सवाल लग रहा है | हाऊसिंग बोर्ड से पीड़ित तबका मंत्री जी के इस्तीफे की मांग के साथ निष्पक्ष कार्रवाई की मांग कर रहा है | उसकी दलील है कि पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार से सांठगांठ कर भ्रष्ट्राचार में लिप्त तत्वों को अब कांग्रेस शासनकाल में भी बचाने की मुहीम को अकबर-बीरबल जिस तरह से अंजाम दे रहे है , वह शर्मनाक है  | 

जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी हाऊसिंग परियोजना दुर्ग-भिलाई स्थित तालपुरी में निर्मित की गई है | यहां अलग-अलग आय वर्ग के लोगों के लिए लगभग दो हजार मकान ,ड्यूप्लेक्स और दुकानें ग्राहकों को बेचीं गई थी | लेकिन घटिया निर्माण कार्य और अनियमितता के चलते यह योजना फ्लाप हो गई है | न्याय की मांग को लेकर कई उपभोक्ताओं ने CGHB के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है | 

इंटरसिटी कॉलोनी तालपुरी दुर्ग में फर्जीवाड़ा और करोड़ों का घोटाला इस तरह से हुआ : 

जानकारी के मुताबिक इस योजना के लिए ब्लॉक – ए और ब्लॉक – बी के लिए दो टेंडर 2008 में किये गए। जबकि इसी योजना हेतु तकनीकी स्वीकृति के निविदा आमंत्रण निविदा स्वीकृति और कार्यादेश जारी किया गया, जो कि नियम विरुद्ध है।  निविदा में से धारा class -3 (C) को हाउसिंग बोर्ड में पहली बार आयुक्त, संजय शुक्ला (आईएफएस) के द्वारा को जानबूझकर विलोपित कराकर NIT स्वीकृत किया गया। धारा CLASS -3 (C) वह महत्वपूर्ण नियम है। जिसके अनुसार ठेकेदार के द्वारा कार्य पूरा नहीं किया जाता है और अधूरा छोड़े कार्य को अलग से निविदा आमंत्रित किया जा कर कार्य को पूरा कराया जाता है,  स्थिति में अगर बैलेंस वर्क के लिए टेंडर का रेट ज्यादा आने की स्थिति में अंतर की राशि मूल ठेकेदार से वसूल की जाती है। 

324 लिली और 226 जूही भवनों का निर्माण ब्लॉक -ए और ब्लॉक -बी के लिए स्वीकृत टेंडर के विपरीत सैकड़ों भवनों का निर्माण टेंडर में शामिल से भिन्न प्रकार से किया गया। यह कार्य संजय शुक्ला और मंत्री राजेश मुणत के कार्यकाल में किया गया। हाउसिंग बोर्ड को मज़बूरी में इस विधि विपरीत किये कार्य की स्वीकृति बाद में मंडल सम्मलेन द्वारा दी गई।  ठेकेदार को बहुत प्रकार से अनुचित लाभ दिया गया। तालपुरी वासियों के द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री, आवास मंत्री श्री मुणत एवं सचिव, आवास को अनेकों बार शिकायत किए गए। कॉलोनी वासियों के द्वारा हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी का घेराव तथा भारी संख्या में तत्कालीन मुख्यमंत्री से मिलकर जब रोष व्यक्त किया गया तब जाकर लीपा – पोती करने के लिए ही सही जाँच का ढोंग रचा गया।

तत्कालीन उपयुक्त -1 डी के दीवान (जो की भ्रष्टाचार के आरोप में 22 माह जेल में रहने के पश्चात् अभी वर्तमान में उच्च न्यायलय में बेल पर है।) के साथ मुख्य संपदा अधिकारी बाजवा (जो कि चार साल पूर्व रिटायर होने और वर्तमान सरकार के सेवानिवृत्त अधिकरियों को सविदा से हटाने के आदेश के बावजूद हाउसिंग बोर्ड में सविदा में पदस्थ है) मुख्य लेखा अधिकारी श्री सोनवानी तत्कालीन प्रशासकीय अधिकारी, डी एल वर्मा और तत्कालीन तकनीकी सलाहकार परोहा की सयुक्त टीम ने जाँच किया था, जिसमे मार्च 2013 तक की स्थिति में राशि रुपये 115.32 करोड़ जैसे भारी भड़कम रकम का ठेकेदार को अधिक भुगतान और अनेक फर्जीवाड़ा करने का मामला सामने आया था। इसके बाद इस योजना के कार्यपालन अभियंता एमडी पंडरिया को हटाकर जशपुर भेज दिया गया और हेमंत वर्मा को तालपुरी पदस्थ किया गया। संजय शुक्ला पुनः आयुक्त गृह निर्माण मंडल पर पदस्थ होते ही उपायुक्त दुर्ग का प्रभार भी हेमंत वर्मा को दे दिया और शुरुआत हुई तालपुरी फर्जीवाड़ा रूपी बहती गंगा में हाथ धोने की।

हेमंत वर्मा तत्कालीन कार्यपालन अभियंता तालपुरी योजना के द्वारा उपरोक्त जाँच के अलावा अपने स्तर पर पुनः जाँच किया गया और ठेकेदार तथा अधिकारीयों का भयादोहन कर लाभ प्राप्त किया | पूर्व में अनुभवी अधिकारीयों के द्वारा गणना किया गए कम करके बताने की कोशिश की गई।  सेक्युटिरि एडवांस देने के मामले में भी नियम विरुद्ध रूप से ठेकेदारों को लाभ पहुँचाने का मामला भी प्रकाश में आया है। सेक्युरिटी एडवांस देने से पहले ठेकेदार के द्वारा लाये गए सामान का वेरिफिकेशन नहीं किया गया। मटेरियल एवं स्टोर का अकाउंट नहीं बनाया गया। मटेरियल के खपत का ब्यौरा भी माप पुस्तिका में नहीं लिखा गया।

 एस्केलेशन के भुगतान में भी गंभीर भ्रष्टाचार किया गया। मटेरियल पर जब पूर्व में ही सेक्युरिटी एडवांस प्रदान कर दिया गया तो फिर उस मटेरियल के कीमत में बढ़ोत्तरी के नाम पर एस्केलेशन का भुगतान की जरुरत नहीं होती है। अधिकारीयों के द्वारा राशि रुपये 80.00 करोड़ से ज्यादा की राशि एस्केलेशन भुगतान कर ठेकेदार को लाभ पहुंचाया गया है। एस्केलेशन की गणना में मटेरियल की कीमत में बढ़ोत्तरी को ही शामिल किया गया जबकि कुछ समय अंतराल में मटेरियल की कीमत बहुत कम हो गई थी। जिससे गणना में शामिल नहीं किया गया।  

ठेकेदार को ब्लॉक -ए और ब्लॉक – बी दो साल का समयावधि प्रदान किया गया था। किन्तु कार्य 5 साल से ज्यादा के समय में पूरा किया गया।  जिसमे ठेकेदार की लापरवाही और ठसनबाजी ही मुख्य कारण रहा है। इसके बावजूद भी ठेकेदार को बिना पेनाल्टी के समयावधि स्वीकृत किया गया और इस प्रकार ठेकेदार को लाभ दिया गया। यहाँ यह बताना जरुरी है कि प्रथम और द्वितीय समयावधि में ठेकेदार को जिम्मेदार मानते हुए पेनाल्टी के साथ समयावधि स्वीकृत की गई थी। फिर 5 साल बाद किस आधार पे ठेकेदार को विलंब के लिए जिम्मेदार नहीं मानते हुए समयावधि स्वीकृत किया गया। यह जाँच का विषय है।

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समयावधि बिना पेनाल्टी के स्वीकृत करने से छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल को दो प्रकार से नुकसान और ठेकेदारों को दो प्रकार से लाभ प्रदान किये गए।  एक तो समयावधि स्वीकृत में लगाने वाले पेनाल्टी का लाभ  ठेकेदार को दिया गया और दूसरा बिना पेनाल्टी समयावधि स्वीकृत करने से एस्केलेशन के भुगतान का लाभ भी ठेकेदार को होता है। फाउंडेशन खुदाई में लगभग राशि रुपये 10.00 करोड़ का भुगतान कर ठेकेदार को अनुचित लाभ दिया गया। मजेदार बात यह है कि फाउंडेशन खुदाई का यह भुगतान तब किया गया जब भवनों के छत की ढलाई प्रगति पर थे। जब कार्य छत लेवल प्रगति पर था, ऐसे में फाउंडेशन खुदाई भी मैप का सत्यापन और रिकॉर्ड कैसे मेंटेंट किया गया यह जाँच का विषय है।

ब्लॉक – ए और ब्लॉक के ठेकेदार के द्वारा पांच साल में भी योजना को पूरा नहीं किया गया। ठेकेदार पर कार्यवाही करने, ब्लेक लिस्ट करने और वसूली करने की दिशा में तत्कालीन कार्यपालन अभियंता और इसी प्रोजेक्ट मात्र का उपयुक्त के प्रभार में रहते हुए हेमंत वर्मा के द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी, इसके विपरीत शेष कार्य को विभिन्न 18 टुकड़ों में बांटते हुए अवैध रूप से अपने मनपंसद ठेकेदारों को निविदा बहुत ज्यादा दर पर प्रदान कर दी गयी। बड़े टेंडर को छोटे – छोटे टेंडरों में बांटा जाना नियम विरुद्ध है, इसकी कोई अनुमति किसी सक्षम अधिकारी से नहीं ली गयी। (अधिक दर पर निविदा स्वीकृत होने की स्थिति में पूर्व ठेकेदार से वसूली की धारा CLASS -3 (C) को पूर्व में ही NIT से अलग कर दिया गया था।  

तालपुरी योजना के फर्जीवाड़ा का वर्ष 2008 से लेकर मार्च, 2013 तक का जाँच किया गया, किन्तु मार्च, 2013 से कार्यपूर्णता की दिनांक वर्ष 2016 तक भारी फर्जीवाड़ा का कोई जाँच नहीं किया गया। जबकि इस काय्काल में हेमंत वर्मा के द्वारा निविदा राशि से राशि रुपये 23.00 करोड़ से भी अधिक का भुगतान किया गया, जिसकी स्वीकृति सक्षम अधिकारी से नहीं लिया गया। इनके द्वारा नॉन एग्रीमेंट आइटम से कार्य कराए जाने का मामला भी ऑडिट के दौरान प्रकाश में आया है। इस प्रकार से पुरे मामले की उच्च स्तरीय जाँच की आवश्यकता है। ताकि पिछले सरकार के कार्यकाल में तालपुरी दुर्ग योजना में किये गए फर्जीवाड़ा का उजागर हो सके। और संबंधितों पर क़ानूनी कार्यवाही किया जा सके।   

हालांकि प्रदेश की महती इस योजना में व्यापक भ्रष्ट्राचार को लेकर उच्च स्तरीय जांच और वैधानिक कार्रवाई की आवश्यकता है | बताया जा रहा है कि विभागीय मंत्री जिस तरह से जांच में दोषसिद्ध पाए गए भ्रष्ट्र अफसरों को संरक्षण दे रहे है , उससे ना तो निष्पक्ष जांच की अपेक्षा की जा रही है , और ना ही दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की |  दरअसल सत्ताधारी कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के 2 साल बीत चुके है | 24 माह बाद भी विभागीय मंत्री ने ना तो भ्रष्ट्राचार के मामलों पर कार्रवाई की और ना ही सरकारी रकम की वसूली को लेकर कोई रूचि दिखाई | अलबत्ता वे दोषसिद्ध आरोपियों के संरक्षण में जुट गए |  लिहाजा अब RTI कार्यकर्ता और CGHB के पीड़ित ग्राहक अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में है | वो विभागीय मंत्री के इस्तीफे की भी मांग कर रहे है |  

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